Bihar Politics: लालू के लाल तेजस्वी यादव संग आए रुठे-अलग हुए मुस्लिम नेताओं के वारिस
राजद की हालत पतली हुई तो इन नेताओं ने भी दूरी बना ली। तीनों परिवारों ने निर्दलीय या दूसरे दलों का सहारा लेकर स्वयं को राजनीति में जीवित रखा। दरभंगा से चार बार सांसद और 2004-09 के बीच केंद्र में मंत्री रहे मो. अली अशरफ फातमी ने 2020 में राजद का साथ छोड़ दिया।

अरुण अशेष, पटना। राजद के माय समीकरण (मुस्लिम-यादव) के दौर में लालू प्रसाद के मजबूत साथी रहे मुस्लिम नेताओं के वारिस अब तेजस्वी यादव के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। ये ऐसे नेता हैं, जो लालू के करीब थे। कभी रुठे तो कभी अलग हो गए। सिवान के मो. शहाबुद्दीन, दरभंगा के मो. अली अशरफ फातमी और किशनगंज के मो. तस्लीमउद्दीन राजद के प्रमुख स्तंभ थे।
राजद की हालत पतली हुई तो इन नेताओं ने भी दूरी बना ली। तीनों परिवारों ने निर्दलीय या दूसरे दलों का सहारा लेकर स्वयं को राजनीति में जीवित रखा। दरभंगा से चार बार सांसद और 2004-09 के बीच केंद्र में मंत्री रहे मो. अली अशरफ फातमी ने 2020 में राजद का साथ छोड़ दिया। फातमी दरभंगा से जनता दल और राजद के टिकट पर 1991, 1996, 1998 और 2004 में लोकसभा गए। 2009 और 2014 में उनकी हार हुई तो 2019 में राजद ने उम्र भर दल के प्रति वफादार रहे अब्दुल बारी सिद्दीकी को दरभंगा से उम्मीदवार बनाया।
नाराज फातमी अपने पुत्र और केवटी से राजद के तत्कालीन विधायक डा. फराज फातमी के साथ जदयू में चले गए। फराज 2020 में दरभंगा ग्रामीण सेे जदयू के उम्मीदवार बने और हार गए। 2024 के लोकसभा चुनाव में अली अशरफ फातमी राजद में आ गए। मधुबनी से उम्मीदवार बने। हारे। इस समय राजद अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पुत्र फराज 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं।
सीमांचल के तस्लीम
सीमांचल की तीन लोकसभा सीटों-पूर्णिया, अररिया और किशनगंज से कुल पांच बार लोकसभा चुनाव जीते मो. तस्लीमउद्दीन उन नेताओं में थे, जिन्होंने हमेशा लालू प्रसाद से आंख में आंख डाल कर बात की। वे अंतिम बार 2014 में अररिया से राजद उम्मीदवार की हैसियत से लोकसभा में गए। 2017 में उनका निधन हुआ। उप चुनाव में उनके पुत्र सरफराज की जीत हुई। 2020 के विधानसभा चुनाव में उनके दूसरे पुत्र शहनवाज को राजद से टिकट नहीं मिला। एआइएमआइएम के टिकट पर चुनाव जीते। बाद में एमआइएम के चार विधायकों के साथ राजद में लौट आए। अब तस्लीमउद्दीन का पूरा परिवार राजद के साथ है। इनमें पूर्व सांसद सरफराज भी हैं।
मो. शहाबुद्दीन
1990 में पहली बार सिवान के जीरादेई से निर्दलीय चुनाव जीते मो. शहाबुद्दीन जल्द की उस समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के भरोसेमंद हो गए। 1995 में वे अविभाजित जनता दल के टिकट पर जीते। 1996 के लोकसभा चुनाव में से उनकी जीत हुई। शहाबुद्दीन 1996 के बाद 1998, 1999 और 2004 में भी इसी क्षेत्र से लोकसभा गए। अदालती कारणों से 2009 में मो. शहाबुद्दीन चुनाव लड़ने के योग्य नहीं रह गए थे। 2021 में उनका निधन हो गया। पत्नी हिना शहाब को राजद ने 2009, 2014 और 2019 में सिवान लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया। वह हर बार दूसरे नम्बर पर रहीं।
2024 में राजद ने सिवान में अपने पुराने नेता अवध बिहारी चौधरी को उतारा। वह तीसरे नम्बर पर रहे। हिना निर्दलीय लड़ कर दूसरे नम्बर पर रहीं। 2025 में हिना राजद में शामिल हुईं। इसी बुधवार को उन्हें राजद अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। उनके पुत्र ओसामा शहाब भी राजद में सक्रिय हैं। विधानसभा चुनाव में मां-बेटे में किसी एक को राजद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है।
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