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    स्पीकर की कुर्सी पर सियासी घमासान: नीतीश को टूट का डर, BJP को पाला बदलने की चिंता; स्पीकर पद क्यों बना पावर सेंटर

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 11:38 AM (IST)

    बिहार में स्पीकर पद को लेकर राजनीतिक उथल-पुथल मची है। नीतीश कुमार को अपनी पार्टी में विभाजन का डर है, जबकि बीजेपी को उनके पाला बदलने की आशंका है। स्पीकर पद सदन की कार्यवाही में निर्णायक होने के कारण एक महत्वपूर्ण शक्ति केंद्र बन गया है। सभी की निगाहें इस पद पर टिकी हुई हैं।

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    राधा कृष्ण, पटना। बिहार में नई सरकार के शपथ ग्रहण से पहले सत्ता के गलियारों में सबसे ज़्यादा चर्चा अगर किसी मुद्दे पर है तो वह है, विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) की कुर्सी। यह सिर्फ एक औपचारिक पद नहीं है, बल्कि गठबंधन सरकारों में सत्ता की स्थिरता और जोड़-तोड़ की राजनीति को रोकने वाला सबसे बड़ा संवैधानिक हथियार भी है। यही वजह है कि इस बार भाजपा और जदयू दोनों इसे अपने पास रखना चाहते हैं। स्पीकर की कुर्सी को लेकर जारी रस्साकशी के पीछे कई राजनीतिक संकेत छिपे हैं।

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    इस पूरे विवाद के मूल में है, अविश्वास, संभावित पाला-बदल, और दलबदल कानून पर स्पीकर की निर्णायक शक्ति।
    इस खेल को समझने के लिए राजनीतिक समीकरण और पिछले अनुभवों को जोड़कर देखना जरूरी है।

    स्पीकर क्यों है सरकार की ‘सुरक्षा कवच’?

    गठबंधन सरकारों में अस्थिरता का खतरा हमेशा बना रहता है। खासकर बिहार जैसे राज्य में, जहां पाला बदलने की राजनीति कोई नई बात नहीं है।

    1985 में लागू दलबदल कानून ने स्पीकर को इतनी शक्तियां दी हैं कि वह किसी भी विधायक को दल-बदल के आरोप में अयोग्य घोषित कर सकता है।

    यही नहीं, स्पीकर के फैसले की न्यायिक समीक्षा भी सीमित है। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि दल-बदल मामलों में समय-सीमा निर्धारित करना कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

    इसका मतलब यह कि स्पीकर चाहे तो लंबा समय लगाकर भी फैसला रोक सकते हैं, या चाहे तो तत्काल कार्रवाई कर सकते हैं।

    यही वह बिंदु है जिसने स्पीकर की कुर्सी को बिहार में सबसे निर्णायक बना दिया है।

    क्यों नीतीश और भाजपा दोनों को ‘डर’ है?

    यह डर अलग-अलग कारणों से है, लेकिन दोनों की चिंता की जड़ एक ही है, सरकार का सुरक्षित भविष्य।

    जदयू का डर: अपने विधायकों को बचाने का सवाल

    भाजपा 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर निकली है। वहीं जदयू 85 सीटों पर है। एनडीए के अन्य सहयोगियों— LJP(R), HAM और RLM —के साथ भाजपा की संख्या 117 हो जाती है, जो बहुमत से केवल 5 कम है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा आगे चलकर कुछ निर्दलीयों या छोटे दलों को मिलाकर सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है।

    ऐसे में स्पीकर भाजपा के पास हुआ तो जदयू के लिए खतरा बढ़ जाएगा।
    जदयू के कई विधायक पहले भी टूट की राजनीति का हिस्सा रहे हैं। नीतीश कुमार इस बार बेहद सतर्क हैं और स्पीकर को अपने साथ रखना चाहते हैं ताकि भविष्य में किसी भी “इंजीनियरिंग” को समय रहते रोका जा सके।

    भाजपा का डर: नीतीश कहीं चौथी बार पाला न बदल दें

    नीतीश कुमार तीन बार पाला बदल चुके हैं— 2017, 2022 और 2024। बिहार चुनाव के इस नतीजे ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि नीतीश अगर चाहें तो महागठबंधन के साथ फिर सरकार बना सकते हैं।
    महागठबंधन के पास कुल 41 विधायक हैं और जदयू के 85 मिलाकर यह आंकड़ा 126 हो जाता है, यानी बहुमत से अधिक।

    भाजपा का मानना है कि अगर नीतीश ने फिर पाला बदला तो उनकी राजनीतिक छवि को नुकसान नहीं होगा, क्योंकि जनता मान लेगी कि “पहलकदमी नीतीश ने ही की।”
    इसलिए भाजपा चाहती है कि स्पीकर उसका ही हो, ताकि अगर कभी गठबंधन टूटे तो दलबदल का फैसला उसके मुताबिक हो।

    स्पीकर सरकार को कैसे मुश्किल में डाल सकता है?

    लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी बताते हैं, 'स्पीकर से उम्मीद होती है कि वह सरकार के साथ खड़ा हो, लेकिन अगर स्पीकर विपक्षी विचार वाला हो तो वह विधेयकों को रोक सकता है, प्रक्रिया को धीमा कर सकता है या विपक्ष के प्रस्तावों को तरजीह दे सकता है।'

    स्पीकर तय करता है

    • कौन विधेयक सदन में आएगा
    • किस मुद्दे पर वोटिंग होगी
    • कौन सा बिल ‘मनी बिल’ माना जाएगा
    • अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार होगा या नहीं

    मनी बिल पर स्पीकर का फैसला बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे विधान परिषद रोक नहीं सकती है। इसलिए सरकार अगर चाहे तो किसी महत्वपूर्ण बिल को मनी बिल घोषित कराकर पास करा सकती है, और इसका अंतिम निर्णय स्पीकर के पास होता है।