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    Bihar Election: बिहार चुनाव से पहले नया चोला पहनने लगे नेता, तीन चरणों में बदल जाती है राजनीतिक आस्था

    Updated: Mon, 06 Oct 2025 12:28 PM (IST)

    बिहार की राजनीति में चुनाव से पहले नेताओं का पाला बदलना आम बात है। टिकट की आकांक्षा सामाजिक समीकरण सत्ता की हवा और असंतोष जैसे कारणों से नेता दल बदलते हैं। इस बार भी कई नेताओं ने पार्टियां बदली हैं जैसे जदयू विधायक डॉ. संजीव कुमार अब राजद में हैं। जनार्दन यादव भाजपा से जन सुराज में शामिल हो गए हैं।

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    बिहार चुनाव से पहले नया चोला पहनने लगे नेता

    विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। कुछ दलीय प्रत्याशियों की आस्था और वैचारिकता का डगरा का बैगन हो जाना विधानसभा के इस चुनाव का कोई खास मुद्दा नहीं है। यह चिंता भी नागरिकों की ही है, जिनके पारदर्शिता से जुड़े प्रश्न राजनेताओं के स्वार्थ के गुच्छे बन गए हैं।

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    विधानसभा चुनाव के कार्यक्रमों की घोषणा के कुछ माह पहले से ही राजनीतिज्ञों की मेढक कूद और आस्था के कायांतरण का नट करतब और उस पर गड़गड़ ढोल लगातार जारी है। तालियों के साथ स्वागत और मीडिया में अचूक अवसर प्राप्त कर लेने की मुस्कुराहट वाली तस्वीरें भी।

    पाला बदल में नायक की तरह दिखते पात्रों के पीछे सारे दलों के शिखर नेतृत्व के बीच साजिशी एका भी हो सकती है। एक-दूसरे के लोगों को झटकने की स्पर्द्धा वस्तुत: उनके बीच कुर्सी दौड़ वाली खेल भावना ही है।

    अपने पाले में दूसरे पाले के लोगों को महत्व देने के पीछे संगठन में नेतृत्व के आगे पहले से जमी-जमाई फौरी चुनौती हटा देने की चाल भी हो सकती है। दूसरे दलों के जिताऊ चेहरे को साथ जोड़ने के पीछे किसी दल का अपने काडरों पर भरोसा कम हो जाना भी हो सकता है।

    जो हो, राजनीतिक आस्था लगातार केंचुल बदल रही है। कल का सांस्कृतिक राष्ट्रवादी आज समाजवादी, सामाजिक न्याय का समर्थक हिंदुत्व का ध्वजवाहक और आंबेडकरी आस्था जाने किस राजनीतिक सन्निपात में एकात्म मानववाद की तरफदार हो गई।

    हालांकि, वे पहले भी वो नहीं थे, जो स्वयं को बताते थे और अब भी नहीं हैं, जो आज हो गए हैं। दुखद है कि वैचारिक चरित्रहीनता कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं। अब किस मुखौटे में कौन किस रंग को पोत कर सामने आएगा, यह ठीक नहीं।

    इस बार दिख रहा भयानक रूप

    इस बार पाला बदल का यह खेल और फूहड़ शक्ल में सामने आ रहा है। छलांग भी दक्षिण से सीधे उत्तर और पूरब से सीधे पश्चिम की ओर। यह लोकतंत्र में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता है, बूझो तो जाने कि हम कौन हैं। जनता जब तक अपने मन में नई पहचान बनाएगी, तब तक चुनाव निकल चुका होगा।

    जदयू विधायक डॉ. संजीव कुमार के साथ इमोशनल अत्याचार हो गया। कभी होंठ नहीं सटते थे राजद की जातीय राजनीति के विरुद्ध चीखते-चिल्लाते। आज उससे गलबहियां हैं। पाला बदल राजनीति के एक बड़े सूरमा जनार्दन यादव हैं।

    यह भगवा ध्वजवाहक अब गले में पीला पट्टा डाले घूम रहे। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के कुछ ऐसे ही नेताओं की अंतर्रात्मा रविवार को अचानक जागी और उन्हें एनडीए से जन सुराज पार्टी में धकिया ले आई। अंतर्रात्मा की यह पुकार महागठबंधन से पशुपति कुमार पारस का मोहभंग कराने ही वाली है।

    पाला बदलने के कारण

    1. टिकट की आकांक्षा : अपने दल में बेटिकट होने का खटका भांप दूसरे खेमे का रुख करते हैं। हालांकि, आकांक्षा हमेशा पूरी भी नहीं होती और टिकट मिलने पर कभी-कभार मतदाता भी उम्मीदों पर पानी फेर देते हैं।

    2. सामाजिक समीकरण : बिहार में जीत-हार का सबसे बड़ा कारण जातीय और क्षेत्रीय समीकरण होता है। समय और गठबंधन के स्वरूप में परिवर्तन के बाद अनुकूल समीकरण की लालसा में इधर-उधर होते हैं।

    3. सत्ता की हवा : इस समीकरण ने तो बिहार की राजनीति में मौसम विज्ञानी तक की उपमा दिलाई है। चुनाव से पहले हवा का रुख देखते हैं। जिधर सत्ता की संभावना प्रबल होती है, उधर निकल जाते हैं।

    4. असंतोष और उपेक्षा : नेतृत्व के व्यवहार और दल की नीतियों से असंतुष्ट नेता भी पाला बदलते हैं। दूसरी पार्टी में उन्हें सम्मान और महत्वपूर्ण भूमिका की आस होती है, जो सदैव पूरी हो, इसकी गारंटी नहीं।

    5. गठबंधनों की अस्थिरता : घटक दलों की अपनी नीतियों और शीर्ष स्थान के लिए गठबंधन का स्वरूप बदलता है। ऐसे में दूसरी-तीसरी कतार के नेता सुरक्षित ठिकाना तलाशते हैं।

    6. नई शक्तियों का उदय : राजनीतिक स्थायित्व से कभी-कभार नीतिगत जड़ता भी बढ़ जाती है। ऐसे में जातिवाद-वंशवाद को छोड़ बुनियादी मुद्दों पर फोकस करने वाले नए दल (जन सुराज पार्टी) आकर्षित करते हैं।

    दल बदलने वाले नेता 

    डॉ. संजीव कुमार : जदयू विधायक अब राजद में।

    जनार्दन यादव : भाजपा के पूर्व विधायक अब जन सुराज में।

    डॉ. रेणु कुशवाहा : पूर्व मंत्री व सांसद, पहले जदयू, फिर भाजपा और लोजपा के बाद अब राजद में।

    बोगो सिंह : मटिहानी के पूर्व विधायक जदयू छोड़कर राजद में।

    सलमान रागीब मुन्ना : जदयू के पूर्व विधान पार्षद अब राजद में। l

    कौशल यादव : जदयू के पूर्व विधायक राजद में। l

    मुजाहिद आलम : जदयू के पूर्व विधायक अब राजद में। l

    ब्रज किशोर बिंद : पूर्व मंत्री, व चैनपुर के भाजपा विधायक का आकर्षण राजद की ओर। l

    निरंजन राम : भाजपा के पूर्व विधायक राजद में। l

    डॉ. अशोक राम : कांग्रेस से छह बार विधायक और पूर्व मंत्री, अब जदयू में। l

    डॉ. अच्युतानंद : लोजपा-रामविलास को छोड़ कांग्रेस में। l

    राजकिशोर प्रसाद ठाकुर : भाजपा छोड़ राजद में। l

    शंभू पटेल : जदयू के पूर्व प्रदेश महासचिव अब कांग्रेस में। l

    रामचंद्र सदा : पूर्व विधायक, लोजपा, भाजपा और वीआइपी के बाद फिर जदयू में। l

    डॉ. रविंद्र चरण यादव: पूर्व मंत्री, भाजपा छोड़ कांग्रेस में। l

    अली अनवर अंसारी : जदयू से राज्यसभा के पूर्व सदस्य अब कांग्रेस में। l

    फराज फातमी : जदयू के पूर्व विधायक राजद में। l

    अमरनाथ गामी : राजद के पूर्व विधायक भाजपा में।

    विनोद कुमार सिंह : जदयू के पूर्व विधान पार्षद अब कांग्रेस में। l

    खगड़िया जिला में लोजपा (आर)के 38 नेताओं ने छोड़ा दल। l

    गया जिला से हम के दर्जन भर नेता गए जनसुराज पार्टी में

    चुनाव से चुनाव तक पाला बदल के तीन चरण

    विधायक बनते ही बसपा और लोजपा के टिकट पर जीते क्रमश: जमा खान और राजकुमार सिंह के अलावा निर्दलीय विजयी रहे सुमित कुमार सिंह जदयू के साथ हो लिए।

    सरकार बदलने पर जनवरी 2024 में सरकार के करवट बदलने के समय राजद विधायक संगीता कुमारी, नीलम देवी, चेतन आनंद, प्रह्लाद यादव और कांग्रेस विधायक मुरारी गौतम सिद्धार्थ सौरव एनडीए के साथी हो गए।

    विधायक बनने हेतु राजद विधायक विभा देवी के साथ प्रकाश वीर और भरत बिंद भी एनडीए के हो चुके हैं। तेजप्रताप अलग राह पकड़े हुए हैं। जदयू विधायक डॉ. संजीव कुमार राजद में जा चुके हैं।

    असर दोतरफा

    राजनीति का अंतिम लक्ष्य सत्ता होता है, जो पहले सिद्धांत आधारित था, अब रणनीतिक हो गया है। ऐसे में टिकट वितरण तक पाला बदल का क्रम जारी रह सकता है। इससे मतदाताओं के बीच सिद्धांतहीन राजनीति की छवि बनेगी।