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    सीमांचल के दंगल में जोर लगा रहे महागठबंधन और NDA, इन 4 सीटों के समीकरण में ओवैसी लगाएंगे सेंध?

    Updated: Mon, 22 Apr 2024 02:32 PM (IST)

    लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को किशनगंज कटिहार व पूर्णिया में मतदान होना है वहीं तीसरे चरण में अररिया में चुनाव है। सीमांचल में चुनावी दंगल की तस्वीर साफ हो चुकी है। यहां एक ही मुद्दा है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिनकी गारंटी को महागठबंधन चुनौती देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। इस रस्साकशी में राजग और महागठबंधन एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।

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    सीमांचल के दंगल में जोर लगा रहे महागठबंधन और NDA, इन 4 सीटों के समीकरण में ओवैसी लगाएंगे सेंध?

    दीनानाथ साहनी, पटना। बिहार का सीमांचल मुस्लिम बहुल इलाका है। सीमांचल में किशनगंज, कटिहार, अररिया व पूर्णिया ऐसी लोकसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक साबित होते हैं, इसलिए सभी राजनीतिक दलों के लिए सीमांचल का खासा महत्व है।

    लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को किशनगंज, कटिहार व पूर्णिया में मतदान होना है, वहीं तीसरे चरण में अररिया में चुनाव है। सीमांचल में चुनावी दंगल की तस्वीर साफ हो चुकी है। यहां एक ही मुद्दा है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जिनकी गारंटी को महागठबंधन चुनौती देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।

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    इस रस्साकशी में राजग और महागठबंधन के बीच सीमांचल में मतदाताओं को अपने-अपने पाले में करने की अंतिम लड़ाई जारी है।

    किशनगंज में ओवैसी फैक्टर से महागठबंधन को नुकसान!

    सबसे पहले किशनगंज की चुनावी परिदृश्य की बात करें। सीमांचल के चार मुस्लिम बहुल जिलों में किशनंगज में सर्वाधिक 68 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। यह सीट कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। किशनंगज सीमांचल के उन जिलों में चर्चित है जहां बंग्लादेशी घुसपैठ भी बड़ा मुद्दा रहा है।

    किशनगंज के पिछले चुनाव के नतीजे पर गौर करें तो 2009 और 2014 में कांग्रेस प्रत्याशी असरार उल हक और 2019 में कांग्रेस के ही प्रत्याशी डॉ. मोहम्मद जावेद चुनाव जीते थे। रोचक यह कि जब एनडीए ने बिहार की 40 में से 39 लोकसभा सीट जीती थी। उस समय किशनगंज एक मात्र सीट थी जहां कांग्रेस प्रत्याशी ने जीते थे।

    2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने सीमांचल क्षेत्र में चुनाव लड़कर हलचल मचा दी थी। तब ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी।

    इस चुनाव में कांग्रेस ने मौजूदा सांसद डॉ. जावेद को उम्मीदवार बनाया है। जदयू ने मुजाहिद आलम प्रत्याशी हैं। वहीं, ओवैसी ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व विधायक अख्तरुल इमान को प्रत्याशी बनाया है। इनके आने से किशनगंज की लड़ाई दिलचस्प मोड़ में आ चुकी है। विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने जिस तरीके से महागठबंधन का खेल बिगाड़ा था, वहीं डर इस बार चुनाव में कांग्रेस व राजद को सता रहा है।

    कटिहार में कांटे की टक्कर

    कटिहार में 45 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। हर चुनाव में यहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक साबित होते हैं। पिछले चुनाव परिणाम दिलचस्प रहे हैं। 2009 के चुनाव में कटिहार सीट से भाजपा के निखिल चौधरी ने जीत हासिल की थी। वहीं 2014 में एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) के तारिक अनवर जीते थे। वो इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। 2019 में जदयू के दुलाल चंद गोस्वामी जीते थे। इस बार कटिहार में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है। मुद्दा यही है मोदी की गारंटी और विकास।

    पूर्णिया में प्रतिष्ठा की लड़ाई

    पूर्णिया की कुल आबादी में 40-41 प्रतिशत मुस्लिम हैं। यहां के तीन चुनाव नतीजों पर गौर करें तो इस सीट पर एनडीए का दबदबा रहा है। 2009 में भाजपा के पप्पू सिंह जीते थे। 2014 से यह सीट जदयू के खाते में आ गई। तब से जदयू के संतोष कुशवाहा दो बार जीत चुके हैं। एक बार फिर जदयू ने संतोष कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि, जदयू से विधायक बीमा भारती ने पार्टी से इस्तीफा देकर राजद की टिकट पर चुनाव में है।

    वहीं, कांग्रेस से टिकट पाने से वंचित राजीव रंजन उर्फ पप्पू यादव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव में डटे हैं। उनके आने से पूर्णिया सीट पर महागठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर है। चुनाव जीतने की प्रतिष्ठा पप्पू यादव से भी जुड़ी है। वहीं जदयू के लिए भी यह सीट बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए यहां मुकाबला अब एक त्रिकोणीय संघर्ष में बदल गया है।

    अररिया का राजनीतिक समीकरण

    अररिया का राजीतिक समीकरण बेहद दिलचस्प है। यहां की 43 प्रतिशत मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है। भाजपा के लिए यहां हमेशा से बंगलादेशी घूसपैठ बड़ा मुद्दा रहा है। पिछले चुनाव नतीजों पर गौर करें तो अररिया सीट पर कभी भाजपा तो कभी राजद का दबदबा रहा है। 2009 में यहां से भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह जीरे थे।

    2014 में राजद के मो.तस्लीमुद्दीन ने जीत दर्ज की थी। 2019 में एक बार फिर भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह जीते थे। इस चुनाव में भी भाजपा ने प्रदीप कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया है। वहीं राजद से मो.तस्लीमुद्दीन के छोटे पुत्र एवं विधायक मो.शाहनवाज को प्रत्याशी बनाया है। यहां मुस्लिम-यादव समीकरण के अतिरिक्त अगड़ी जातियों के साथ-साथ अत्यंत पिछड़ा वर्ग, दलित वर्ग के मतदाता भी निर्णायक रहे हैं।

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