Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Nitish Kumar ने CM पद से दिया इस्तीफा, NDA के साथ इस फॉर्मूले से बनाएंगे सरकार

    Updated: Sun, 28 Jan 2024 11:25 AM (IST)

    Nitish Kumar News नीतीश कुमार ने आखिरकार सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। अब एक बार फिर वो एनडीए में शामिल होंगे और बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाएंगे। ऐसे ...और पढ़ें

    Hero Image
    Nitish Kumar ने CM पद से दिया इस्तीफा, NDA के साथ इस फॉर्मूले से बनाएंगे सरकार

    डिजिटल डेस्क, पटना। Bihar Political Crisis Nitish Kumar बिहार की सियासत में एक बार फिर बड़ा उलटफेर देखने को मिला। नीतीश कुमार ने आज सीएम पद से इस्तीफा (Nitish Kumar Resign) दे दिया। अब नीतीश कुमार भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे। नीतीश कुमार की बात की जाए तो पाला बदलने के नाम से 'नेता जी' मशहूर हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    साल 2014 की बात करें तो नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव से पहले साल 2013 में एनडीए से अलग हुए थे। बाद में उन्होंने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया। साल 2017 की बात करें तो वो महागठबंधन से अलग होकर फिर से एनडीए में शामिल हुए। बाद में वो एनडीए से नाता तोड़कर फिर महागठबंधन में आए।

    अब एक बार फिर एनडीए में उनकी वापसी के कयास लग रहें हैं। ऐसे में एक बात तो साफ है कि नीतीश सत्ता की राजनीति करते हैं और वो अनप्रेडिक्टेबल हैं। तो सवाल उठता है ऐसे व्यक्तित्व के बावजूद बिहार में 'नीतीश फैक्टर' इतना स्ट्रॉन्ग कैसे है?

    'नीतीश फैक्टर' के बड़े कारण

    बिहार में मजबूत 'नीतीश फैक्टर' के 3 बड़े कारण हैं। पहला कारण है जाति, दूसरा वोटबैंक तीसरा खुले मौके रखना। नीतीश खुद कुर्मी जाति से आते हैं। नीतीश कुमार ने बिहार के अत्यंत पिछड़े समुदाय और दलितों का एक बड़ा वोट समूह बनाया और इस समूह ने लगातार उनका साथ दिया है। नीतीश के पास अपना बहुत वोट नहीं हैं, लेकिन जब वो किसी के साथ होते हैं तो उसके प्रभाव के साथ वो वोट उनके साथ होता है।

    बिहार में जाति की राजनीति की बात की जाए तो वो इतनी हावी है और जातिगत जनगणना के बाद हर जाति को अपना प्रतिनिधित्व भी दिख रहा है। बीते सालों में ये देखा गया है कि चाहे बीजेपी हो या फिर आरजेडी, दोनो ही पक्षों के लिए नीतीश कुमार ने खुद को प्रासंगिक बना कर रखा है।

    दोनों ओर से खुल रखते हैं दरवाजे

    जानकार कहते हैं कि बिहार में जब तक कोई दल किसी दूसरे का साथ न ले तब तक सरकार नहीं बना सकता है। नीतीश ने दोनों ओर से दरवाजे खुले रखे हैं - राजद के लिए भी और भाजपा के लिए भी। जब उनको राजद के साथ मुश्किल होती है तो वो भाजपा के साथ चले जाते हैं। जब भाजपा के साथ मुश्किल होती है तो वो राजद के साथ चले जाते हैं।

    इस बार नीतीश के एनडीए में आने से भाजपा को ये फायदा होगा कि अगर वो बिहार में सत्ता में आती है तो लोकसभा चुनाव उसके शासनकाल में होगा जिसका सीधा फायदा पार्टी को चुनाव में मिल सकता है। दूसरी तरफ, इंडी गठबंधन की बात करें तो सूत्रों के अनुसार, नीतीश एलायंस से खुश नहीं थे। उनका मानना था कि सीटों पर तालमेल पर काम बहुत धीमी गति से हो रहा है।

    अब जान लीजिए बिहार का नंबर गेम

    राष्ट्रीय जनता जल के पास अभी 79 सीटें हैं। 2022 के बाद AIMIM के पांच में से 4 विधायक राजद के साथ आ गए थे। जदयू का भी समीकरण बदल गया। 43 से 45 सीटें हो गईं। वहीं, कांग्रेस 19 पर है, सीपीआई एम-एल 12 पर है, सीपीआई 2 पर है, सीपीआई (एम) 2 पर है, निर्दलीय एक है। बीजेपी 78 सीटों के साथ राज्य में दूसरे नंबर की पार्टी है। वहीं हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के पास 4 सीटें हैं। अब AIMIM के पास सिर्फ एक विधायक है।

    नीतीश कुमार के पास है सत्ता की चाबी

    243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में सरकार के सामान्य बहुमत के लिए 122 सदस्यों का समर्थन चाहिए।भाजपा के 78, जदयू के 45 और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के चार विधायकों के अलावा निर्दलीय सुमित कुमार सिंह के समर्थन से बहुमत का आंकड़ा हासिल हो जाता है। 10 अगस्त 2022 से पहले तक नीतीश की सरकार इसी आंकड़े के बल पर चल रही थी।

    ये भी पढ़ें- Nitish Kumar: बिहार में खेला होई? अब कल पर टिकी नजर, 6 प्वाइंट में समझें दिनभर कैसे बनते बिगड़ते रहे समीकरण

    ये भी पढ़ें- Nitish Kumar : ललन की विदाई से गवर्नर की टी-पार्टी तक... 11 प्वाइंट में समझें कैसे बदली बिहार की सियासी हवा