बिहार पंचायत चुनाव 2026: ओबीसी आरक्षण पर फंस सकता है पेच, SC के ट्रिपल टेस्ट का पालन अनिवार्य
बिहार में 2026 में होने वाले पंचायत चुनाव से पहले ओबीसी आरक्षण को लेकर स्थिति उलझती दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, ओबीसी आरक्षण को वैध बनाने के लिए त्रिस्तरीय जांच अनिवार्य है। इसके लिए राज्य सरकार को एक स्वतंत्र आयोग का गठन करना होगा, जो ओबीसी की राजनीतिक सहभागिता और पिछड़ेपन का अध्ययन करेगा। आयोग की रिपोर्ट में आरक्षण की सीमा का उल्लेख होगा, जो 50% से अधिक नहीं हो सकती।

ओबीसी आरक्षण पर फंस सकते है पेच, SC के ट्रिपल टेस्ट का पालन अनिवार्य
राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार में वर्ष 2026 में होने वाले पंचायत चुनाव से पहले ओबीसी आरक्षण को लेकर स्थिति उलझती दिख रही है। ऐसी ही स्थिति वर्ष 2022 के नगर निकाय चुनाव के समय बनी थी। उस समय राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप अंतिम समय में त्रिस्तरीय जांच की प्रक्रिया पूरी करानी पड़ी थी, ताकि नगर निकायों में ओबीसी आरक्षण लागू किया जा सके।
पंचायत चुनावों में अभी पर्याप्त समय है, इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार चाहे तो समय रहते यह प्रक्रिया बिना किसी दबाव के पूरी कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने के कृष्णामूर्ति बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण को वैध एवं संवैधानिक बनाने के लिए ट्रिपल टेस्ट का फॉर्मूला तय किया है। इसके तहत किसी भी राज्य सरकार को ओबीसी आरक्षण लागू करने से पहले तीन अनिवार्य शर्तें पूरी करनी होती हैं।
पहली शर्त: समर्पित आयोग का गठन
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार त्रिस्तरीय जांच पूर्ण कराने के लिए राज्य सरकार को स्थानीय निकायों में ओबीसी की राजनीतिक सहभागिता एवं उनके सामाजिक-शैक्षिक पिछड़ेपन का अध्ययन कराने के लिए एक अलग स्वतंत्र आयोग बनाना होगा।
यह आयोग केवल स्थानीय निकायों के लिए ही डेटा एकत्र करेगा। आयोग गांव-गांव एवं पंचायत स्तर पर वास्तविक ओबीसी आबादी, उनकी शिक्षा-सामाजिक स्थिति के साथ ही अब तक मिले राजनीतिक प्रतिनिधित्व की विस्तृत जांच करेगा।
दूसरी शर्त: आयोग की विस्तृत रिपोर्ट
त्रिस्तरीय जांच के दूसरे चरण में आयोग अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगा। रिपोर्ट में यह स्पष्ट उल्लेख होगा कि किस पंचायत में ओबीसी की कितनी आबादी है, वहां उनका प्रतिनिधित्व कितना है और किस स्तर पर कितना आरक्षण वाजिब होगा।
यानी वार्ड स्तर, पंचायत में मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, प्रमुख, जिला परिषद सदस्य एवं जिलाध्यक्ष के पद पर कितने पदों को ओबीसी के लिए आरक्षित किया जाएगा।
तीसरी शर्त: आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं
सुप्रीम कोर्ट की तीसरी और अंतिम शर्त यह है कि पंचायत या किसी भी स्थानीय निकाय में आरक्षण की कुल सीमा किसी भी स्थिति में 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती। बिहार में यह प्रविधान पहले से लागू है। नगर निकाय चुनाव में भी यहीं तर्क दिया गया था। पर अंतिम समय में राज्य सरकार को पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करना पड़ा था।
एएन सिन्हा सामाज अध्ययन शोध संस्थान के माध्यम से नगर निकाय क्षेत्र में ओबीसी की सूची तैयार कराई गई थी। पंचायत चुनाव को लेकर प्रशासनिक स्तर पर अभी से तैयारी शुरू होने वाली है।
ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि सरकार समय रहते ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया शुरू कर दे तो 2026 के चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर किसी प्रकार का कानूनी संकट नहीं आएगा।
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