Exclusive interview: वोट कटवा हूं, तो किसका वोट काट रहा, डरे हुए तो दोनों पक्ष हैं: प्रशांत किशोर
पिछले 25-30 वर्ष से लालू-नीतीश के शासन से ऊब चुके हैं और एक नया विकल्प चाहते हैं। भितिहरवा से जो काम शुरू किया तो सामाजिक कार्यकर्ता राजनीतिक एक्टिविस्ट या बिहार का बेटा कह लीजिए। मैं बिहार के गांव-गांव गया। जिन विषयों की समझ थी उसको जाकर जमीन पर जांचा-परखा।चिराग युवा और सुलझे हैं इसलिए पसंद करता हूं।

विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। अब वे नाम-दाम-काम के मोहताज नहीं, पहचान इतनी तगड़ी है। पहले ख्याति राजनीतिक गलियारे तक थी, अब बिहार के गांव-गली तक पहुंच-बात हो गई है। यह जन सुराज पदयात्रा का सुफल है, जिसकी परिणति जन सुराज पार्टी के रूप में सामने आ चुकी है। सूत्रधार प्रशांत किशोर का अब एकमात्र लक्ष्य जसुपा को चुनावी जीत दिलानी है, ताकि बिहार की व्यवस्था में बदलाव का संकल्प पूरा हो सके। इस संकल्प के साथ अभी वे बिहार बदलाव यात्रा पर हैं, जो विधानसभा चुनाव तक अनवरत चलेगी। चलने को तो वे 2022 में गांधी जयंती से ही चले जा रहे, कभी पैदल तो कभी वाहन से। तीन वर्ष होने को आए, बिहार के गांव-गली की खाक छानते वे रात-दिन एक किए हुए हैं। यह परिश्रम उनके चेहरे से चिपका हुआ-सा प्रतीत होता है और आंखों में तैरते हुए संकल्प साफ दिखाई देते हैं। यह संकल्प उन्हें सोने का अवसर तक नहीं दे रहा। पांच-छह घंटे की नींद भी बमुश्किल पूरी होती है। ऐसी ही एक अधसोई हुई रात की अगली सुबह प्रशांत किशोर से विकाश चन्द्र पाण्डेय की लंबी बातचीत हुई।
सवाल : पहले आप चुनावी रणनीतिकार थे। उसके बाद सामाजिक कार्यकर्ता की-सी भूमिका और अब प्रत्यक्ष राजनीति में। इन तीनों भूमिकाओं में कैसी अनुभूति रही?
उत्तर : मूलत: कोई अंतर नहीं। रणनीतिकार के रूप में सामाजिक विषयों को समझ पार्टी के मुद्दे-एजेंडा, नेता के बयान, सांगठनिक मजबूती और चुनावी तैयारी का निर्धारण करता था। आज भी वही काम कर रहा। पहले स्थापित पार्टियों और तथाकथित नेताओं के लिए काम करता था। अब बिहार के लोगों के लिए कर रहा, जो पिछले 25-30 वर्ष से लालू-नीतीश के शासन से ऊब चुके हैं और एक नया विकल्प चाहते हैं। भितिहरवा से जो काम शुरू किया तो सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक एक्टिविस्ट या बिहार का बेटा कह लीजिए। मैं बिहार के गांव-गांव गया। जिन विषयों की समझ थी, उसको जाकर जमीन पर जांचा-परखा। आंकड़ों को जानना और जमीनी सच्चाई को समझना, दोनों में अंतर है। समझने के साथ उस रास्ते व विचार को बताया कि किस तरह समाज अपने लिए सशक्त व ईमानदार विकल्प बना सकता है। उसकी परिणति जन सुराज पार्टी (जसुपा) है।
सवाल: पिछले तीन-चार चुनावों से बिहार की राजनीति से आपका प्रत्यक्ष वास्ता रहा है। इस बार का चुनाव अलग कैसे और क्यों है?
उत्तर : 2014 व 2019 में लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनाव में मैं रहा। 2020 के चुनाव में मेरी कोई भूमिका नहीं रही। पिछले 20-25 वर्षों में बिहार में बहुतायत मतदाताओं के पास कोई विकल्प नहीं रहा। मतदान का सबसे बड़ा मुद्दा गवर्नेंस व अपने बच्चों का भविष्य नहीं। लालू की सरकार वापस न आ जाए या मोदी-भाजपा की सरकार न बन जाए, इस पर मतदान हुआ। एक बहुत बड़ा वर्ग नीतीश-भाजपा को मात्र इसलिए वोट दे रहा, क्योंकि वह जंगल-राज को वापस नहीं देखना चाहता। यह विचारणीय विषय हो सकता है कि मुसलमान लालू को पसंद करते हैं या नहीं, लेकिन वे राजद को इसलिए वोट देते हैं, क्योंकि किसी भी कीमत पर भाजपा की सरकार नहीं चाहते। इस संदर्भ में यह चुनाव अलग है, क्योंकि पहली बार एक विकल्प होगा। जसुपा चुनाव के समय बनी पार्टी नहीं। तीन वर्ष गांव-गांव लोगों को एकत्र कर यह व्यवस्था बनी है। आज राजनीतिक तौर पर जसुपा बिहार का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। भाजपा के 70 लाख प्राथमिक व सक्रिय सदस्य हैं, जबकि जसुपा से 1.25 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं। चुनाव का परिणाम बाद का विषय है, लेकिन जनता के सामने एक विकल्प है। इसका छोटी-सा उदाहरण हमने 2020 मेंं देखा। तब चिराग पासवान ने बिना तैयारी या बड़ी विचारधारा के चुनिंदा सीटों पर प्रत्याशी उतारे और जदयू धराशायी हो गया। वह संकेत है कि लोग बदलाव के लिए मन बना रहे थे। उसके पांच वर्ष बाद जिस तरह की सरकार व शासन-व्यवस्था है, उससे लगता है कि बदलाव की वह चाहत बड़े पैमाने पर बढ़ी है। इस संदर्भ से यह बिहार के लिए नया चुनाव है। दो-तीन दशकों में पहली बार त्रिकोणीय चुनाव है। जनता के पास एनडीए है। बदलाव चाहने वालों के पास दो विकल्प हैं। या तो वे जंगलराज को वापस ले आएं या जसुपा को अवसर दें।
सवाल : चुनावों और वोटों में हेराफेरी कैसे होती है। मतदाता-सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर आशंका को आप किस तरह देख-समझ रहे?
उत्तर : चुनाव के दो-तीन माह पहले गहन पुनरीक्षण का कोई औचित्य नहीं। इससे सत्ताधारी दलों के लाभ की आशंका से मैं सहमत हूं। निर्वाचन आयोग कह रहा कि हमारा दायित्व मतदाता-सूची की शुद्धता है। तो क्या लोकसभा चुनाव में मतदाता-सूची शुद्ध नहीं थी। अगर नहीं तो क्या निर्वाचन आयोग स्वीकार करेगा कि चुनाव सही मतदाता-सूची से नहीं हुआ। उसी चुनाव से मोदी प्रधानमंत्री बने। अगर लोकसभा चुनाव के बाद आतंकी, घुसपैठिये व गलत लोग आ गए, तो कैसे। सरकार क्या कर रही थी। बिहार में तो एनडीए की सरकार है। यह तो अपने ही मुंह पर कीचड़ लगाने की बात हुई, क्योंकि दोनों बात तो सही नहीं हो सकती। हमारा स्पष्ट मत है कि इस बार का चुनाव 2024 की मतदाता-सूची से हो। उसमें चुनाव की उम्र पूरी करने वालों का नाम जोड़ दिया जाए और मरने या छोड़ जाने वालों का नाम हटा दिया जाए। बिहार से बाहर नौकरी-मजदूरी करने वाले 50 लाख के लगभग लोग दीपावली पर आएंगे। पुनरीक्षण नहीं होने पर उनका नाम कट जाएगा। वे मताधिकार से वंचित हो जाएंगे। उन लोगों में एनडीए से नाराजगी है। बिहार की परिस्थिति बिगड़ने के कारण वे बाहर गए हैं। वे आएंगे तो नीतीश-भाजपा के विरुद्ध वोट करेंगे। पुनरीक्षण का एक बड़ा कारण यह है कि प्रवासी बिहारियों को मतदान का अवसर न मिले।
सवाल : एनडीए और महागठबंधन से जसुपा अलग कैसे है, जबकि वही बिहार है और राजनीति करने वाले वही लोग हैं?
उत्तर : बिल्कुल, कोई तुलना नहीं। पहली बात, जसुपा किसी व्यक्ति, परिवार या जाति-विशेष की पार्टी नहीं। यह आंदोलन से नहीं बनी। ढाई वर्ष तक 5500 गांवोंं मेंं पैदल चलकर एक करोड़ लोगों की सहायता से यह दल बना। यह अप्रत्याशित और नई घटना है। दूसरा, हम लोग कल ही बिहार को सुधार देने का वादा नहीं कर रहे। हम बिहार की सबसे बड़ी समस्या पलायन बता रहे तो समाधान भी सुझा रहे। पलायन के तीनों पहलुओं (श्रम, बुद्धि और पूंजी का पलायन) को बता रहे। बिहार से होने वाले 2500 करोड़ रुपये का पलायन रोककर योग्य व बुद्धिमान लोगों का पलायन रोका जाएगा। ऐसे लोगों का पलायन रुकने पर श्रम का पलायन स्वत: रुक जाएगा। शिक्षा व्यवस्था पर हमारा फोकस है। सरकारी विद्यालय में सुधार होने तक सरकारी खर्च पर गरीबों के बच्चे निजी स्कूलों मेंं पढ़ेंगे। हर गांव में स्कूल बनाने से बेहतर हर प्रखंड में पांच-दस विश्वस्तरीय विद्यालय बनाएंगे। यह मूलभूत अंतर है। हमने कहा कि 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों का दायित्व सरकार और समाज को उठाना पड़ेगा। उन्हें 2000 रुपये मासिक सम्मान राशि मिलेगी। सबसे बढ़कर जसुपा में बिहार को सुधारने का जज्बा है। जसुपा में जुड़े लोग बड़े दायित्वों में रहे हैं। अपने जीवन में सब कुछ पाकर अब बिहार के प्रति दायित्व-बोध से समाज को कुछ देना चाहते हैं।
सवाल: आम आदमी पार्टी (आप) का हश्र क्या जसुपा के लिए आपको बेचैन नहीं करता?
उत्तर : आप आंदोलन से निकली पार्टी है, जबकि मेरा आंदोलनों मेंं विश्वास ही नहीं है। फ्रांस की क्रांति को अगर अपवाद मानें तो मानव सभ्यता के इतिहास मेंं आज तक किसी भी क्रांति या आंदोलन से सृजन नहीं हुआ। आंदोलन व क्रांति लोगों को सत्ता व व्यवस्था से हटाने का हथियार है, सृजन का नहीं। जेपी के आंदोलन से इंदिरा की सत्ता उखड़ गई और अन्ना के आंदोलन से यूपीए की, लेकिन नए समाज का सृजन नहीं हुआ। सृजन की अपनी एक प्रक्रिया है। इसलिए हम क्रांति-आंदोलन बंद और चक्का जाम की बात नहीं करते। हमारा मानना है कि राजनीति में सुधार तभी होगा, जब समाज में सुधार होगा।
सवाल: पहले दांव में आप असफल रहे। विधानसभा उप चुनाव में। क्या गारंटी कि इस बार उसकी पुनरावृत्ति न हो?
उत्तर : सफलता का क्या पैमाना है। 02 अक्टूबर, 2024 को बने जसुपा को नवंबर के उप चुनाव मेंं 10 प्रतिशत वोट मिले। परिणाम इसलिए अनुकूल नहीं रहा, क्योंकि चुनाव-चिह्न से हमें मतदान के 10-12 दिन पहले मिला। हम मतदाताओं को उसकी पहचान नहीं करा पाए। उसके बावजूद जसुपा को 10 प्रतिशत वोट मिले। बिहार मेंं 10 प्रतिशत वोट लाने में भाजपा जैसे दल को 20 वर्ष लगे। चुनाव-चिह्न का महत्व है, विधानसभा उप चुनाव के बाद हुए तिरहुत स्नातक क्षेत्र में विधान परिषद के उप चुनाव से समझिए। वहां प्रत्याशियों के नाम पर वोट हुआ तो 22 प्रतिशत वोट पाकर जसुपा दूसरे स्थान पर रही। उप चुनाव में सत्ताधारी दल को लाभ इसलिए मिलता है, क्योंंकि सरकार बदलने वाली नहीं होती। विधानसभा चुनाव में जसुपा को इसलिए लाभ मिलेगा, क्योंकि 60 प्रतिशत लोग बदलाव चाह रहे।
सवाल: जसुपा को बहुमत मिलने पर क्या आप मुख्यमंत्री बनेंगे। बहुमत नहीं मिला तो किस पार्टी या गठबंधन का समर्थन करेंगे?
उत्तर : बहुमत मिलने पर जसुपा के विधायक तय करेेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा। कई लोगों को लग रहा कि ये तो ऐसे ही कह रहे। आखिर किसने सोचा था कि मनोज भारती जसुपा के प्रदेश अध्यक्ष व उदय सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे। जनता जो तय करेगी, उस भूमिका में होंगे। जनता अगर कहेगी कि अभी सड़क पर तो सड़क पर रहकर काम करेंगे। किसी तरह का गठबंधन न चुनाव से पहले, न चुनाव के बाद।
सवाल: तेजस्वी-राहुल-मोदी बुरे और चिराग अच्छे, क्योंकि उनसे साथ-सहयोग की अपेक्षा है। अगर नहीं तो इस अच्छे-बुरे का पैमाना क्या है?
उत्तर : व्यक्तिगत तौर पर अच्छा-बुरा कहना न मेरा काम है, न योग्यता। हम काम पर टिप्पणी करते हैं। लोग कहते हैं कि बिहार में जाति पर वोट पड़ता है। मैं कहता हूं कि 15 वर्ष से अगर मोदी के नाम पर वोट पड़ रहा तो लोग जाति से ऊपर उठकर वोट दे रहे, क्योंकि मोदी के नाम का तो कोई बिहार में रहता नहीं। किस काम के लिए मोदी की सराहना होनी चाहिए। बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सुधार, उद्योगों की स्थापना, पलायन पर रोक या बाढ़ से मुक्ति के लिए क्या किए। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह राज्य सरकार का काम है। भई, हम लोगों ने एक सीरिज शुरू किया है। गुजरात और बिहार में मोदी के भाषण सुन लीजिए। गुजरात में मोदी 2035 के गुजरात की बात करते हैं। शिक्षा, रोजगार, उद्योग, आधारभूत संरचना, सांस्कृतिक क्षेत्र में काम की बात करते हैं। जब बिहार आते हैं तो कहते हैं कि यादव, कुर्मी, मुसहर, पासवान मेरा समाज है। ब्राह्मण यह और भूमिहार वह कर रहा। हम आपको पांच किलो अनाज दे रहे हैं। क्या अनाज की योजना मात्र बिहार में है। देश में 80 करोड़ लोगों को अनाज मिल रहा, लेकिन क्या गुजरात में मोदी ने अनाज पर वोट मांगा। इसलिए मोदी की आलोचना कर रहे। दूसरा नाम, तेजस्वी यादव। इनके मां-बाप की यहां 15 वर्ष सरकार रही। उस दौर को जंगल-राज हमने-आपने नहीं, न्यायालय ने कहा। वे स्वयं तीन वर्ष उप मुख्यमंत्री रहे। कैसे लोग हैं, क्या करते और क्या बोलते हैं, सब जनता के सामने है। हम उनके व्यक्तिगत पहलू पर नहीं, बल्कि उनकी सरकार ने जो किया, उस पर टीका-टिप्पणी कर रहे। चुनाव के अलावा राहुल गांधी कभी बिहार आए हों या बिहार के विषयों की चर्चा की हो, तो बताइए। 55 वर्ष की अपनी उम्र में राहुल एक रात भी बिहार के किसी गांव में गुजारे हों तो बताइए। वह व्यक्ति बता रहा कि बिहार में सुधार कैसे होगा। बिहार की समस्या और उनके समाधान पर अगर चर्चा व टीका-टिप्पणी नहीं होगी, तो फिर हम राजनीति में किसलिए हैं। कोई बालू या शराब की ठीका लेने तो आए नहीं।
सवाल: चिराग के साथ जाएंगे?
उत्तर : किसी पार्टी से गठबंधन न तो चुनाव से पहले और न ही चुनाव के बाद। चिराग युवा और सुलझे हैं, इसलिए पसंद करता हूं। जाति-पात की राजनीति नहीं करते, जो मुझे पसंद है, लेकिन चिराग अभी भाजपा के साथ हैं। हम भाजपा के विरुद्ध हैं। हमारी सीधी लड़ाई भाजपा से है। चिराग के साथ गठबंधन का प्रश्न कहां।
सवाल:एनडीए और महागठबंधन दोनों आपको वोटकटवा कह रहे?
उत्तर : बिल्कुल ठीक बात है। वोट तो हम दोनों का काट रहे। जो वोट काटे, उसे तो वोटकटवा ही कहेंगे, लेकिन वोट कितना काटेंगे, इसका अनुमान तो किसी को भी नहीं। अगर दोनों (राजग और महागठबंधन) के वोट कट गए, तो जीतेगा कौन। वे तो स्वयं बता रहे कि जीतने वाली जसुपा है, क्योंकि वही एकमात्र दोनों का वोट काट रही। वोटकटवा तो वह होता, जो किसी एक का वोट काटता। अगर दोनों पक्ष कह रहा कि हमारा वोट जसुपा काटेगी तो इसका मतलब दोनों घबराहट में हैं। हम कह रहे कि जनता को लालू और भाजपा का सशक्त विकल्प मिल गया है।
सवाल: दिलीप जायसवाल से आप भिड़े हुए हैं। क्या इस बार चुनाव में सारी राजनीतिक मर्यादाएं तार-तार हो जाएंगी। संजय जायसवाल बता रहे कि आपके साथ आपराधिक छवि वाले जुड़े हुए हैं?
उत्तर : व्यक्ति से मेरा कोई लेना-देना नहीं। मैं उस भाजपा से भिड़ा हुआ हूं, जो अलग चाल-चरित्र-चेहरा की बात करती है, लेकिन एक दागी व्यक्ति को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाए हुए है, जो राजद से भी मिला हुआ है। वह सिखों के मेडिकल कालेज पर जबरदस्ती कब्जा किए हुए है। मैं इतना ही पूछ रहा कि जिस मेडिकल कालेज में दिलीप क्लर्क थे, उसके प्रबंधक-मालिक कैसे बन गए। वे सिख हैं भी नहीं। राजद से उनका क्या संबंध है। राजद वाले एक ओर दावा करते हैं कि भाजपा से लड रहे और दिलीप को राबड़ी देवी मुंहबोला भाई बताती हैं। विधान मंडल में उनका वीडियो देख लीजिए। दिलीप इस पर अपना स्पष्टीकरण दे दें। क्या आपने सुना है कि आरोप पर वह व्यक्ति या उसका दल एक शब्द न बोले। बिहार में भाजपा के 19 प्रवक्ता हैं, लेकिन अभी तक एक भी प्रतिक्रिया नहीं। अगर नजरअंदाज कर रहे तो वैसा भी नहीं। प्रेस-विज्ञप्ति जारी कर तीन-चार दिन में विस्तृत उत्तर देने का बोले थे। अभी कितने दिन चाहिए। अब आगे इनके विरुद्ध जसुपा नए किस्त जारी करेगी। इनके अपराध, भूमि पर कब्जा, हत्या के मुकदमे के मामले मेंं बड़े पर्दाफाश होगा। 50 से अधिक राजनेताओं का नाम बताया जाएगा, जिनके स्वजनों-संबंधियों को इस कालेज से डिग्री मिली है। उनमें सभी दलों के लोग हैं। रही बात संजय की, तो उन्हें मात्र फेसबुक पर पोस्ट करना आता है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उनके बचकाने पोस्ट के कारण ही नीतीश से इन लोगों का संबंध खराब हुआ था। हर दो दिन पर फेसबुक पर पोस्ट कर वे नीतीश सरकार की आलोचना करते थे और जदयू को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे। यह संजय की प्रवृत्ति और रानजीतिक समझ है। वे असल में राजद के हैं। जब स्वयं राजद से चुनाव लड़े तो 5400 वोट मिले थे। आज भाजपा के दम पर बड़े नेता होने का दंभ भर रहे। अगर जसुपा में कोई अपराधी है तो राज्य व केंद्र में आपकी सरकार है। उन अपराधियों को पकड़कर सजा दीजिए और लोगों को बता दीजिए कि जसुपा में यह-यह व्यक्ति अपराधी है।
सवाल: चुनाव को हाईटेक और महंगा आपने बनाया और अब गरीब बिहार के लोगों के लिए राजनीति में गुंजाइश की बात कर रहे?
उत्तर : 2011-12 से पहले तो वाट्स-एप नहीं था तो क्या इसका आविष्कार प्रशांत किशोर ने किया। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि संदेश वाट्स-एप से जा रहा कि फेसबुक या लिफाफे से। गांधीजी ने लिफाफा, अंतर्देशीय पत्र-कार्ड का उपयोग किया। तकनीकी के साथ टेलीग्राम, रेडियो, टेलीविजन आया। आज इंटरनेट मीडिया का जमाना है तो उसका उपयोग हो रहा। महत्व प्लेटफार्म का नहीं, इस बात का है कि संदेश कौन दे रहा और वह क्या कह रहा। हर चीज में महंगाई बढ़ गई। पूरे देश में चुनाव महंगा हुआ है। इसके लिए चुनाव प्रक्रिया में सुधार आवश्यक है। चुनाव महंगा होने का एक कारण पार्टियों के खर्च पर प्रतिबंध नहीं होना है। इंग्लैंड आदि में पार्टियों के खर्च पर भी प्रतिबंध है। चुनाव खर्च को कम करना है तो निर्वाचन आयोग और सभी दलों को मिलकर यह व्यवस्था बनानी चाहिए कि पार्टियों के खर्च पर नियंत्रण हो। प्रचार-प्रसार में उतना धन नहीं लगता, जितना लोग समझते हैं। धन खर्च होता है वोट खरीदने में। पार्टियों के पास अनलिमिटेड बजट है, वे धन अधिक खर्च करती हैं।
सवाल: बिहार की समस्या और समाधान क्या है। बदलाव होगा कैसे। महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु जैसा बिहार हो सकता है कि नहीं?
उत्तर : एक वीडियो में मैंने तेजस्वी को कहते सुना कि बिहार को स्काटलैंड बना दूंगा। यह बताता है कि या तो आप मूर्ख हैं या पूरे बिहार को मूर्ख बना रहे हैं। बिहार अगर आज से 20 प्रतिशत की दर से भी बढ़ना शुरू कर दे तो भी उसे नंबर वन बनने में 20 वर्ष लगेंगे, क्योंकि दूसरे राज्य भी बढ़ रहे होंगे। आज बिहार 28वें नंबर पर है, उसको 10 वर्ष में एक नंबर पर लाना संभव नहीं। 10 वर्ष में लक्ष्य यह होना चाहिए कि बिहार देश के 10 अग्रणी राज्यों में सम्मिलित हो जाए। 2005 में नीतीश कुमार जब मुख्यमंत्री बने तो बिहार देश का सबसे पिछड़ा और गरीब राज्य था। ऐसा नहीं कि उसके बाद सुधार और विकास कार्य नहीं हुए, लेकिन आज भी बिहार देश का सबसे पिछड़ा और गरीब राज्य है। इसलिए कि बिहार में सुधार के साथ दूसरे राज्यों में और तेजी से सुधार हुआ। इसलिए तुलनात्मक रूप से बिहार को नंबर वन बनना है तो वह लंबी लड़ाई है, लेकिन 10 वर्षों की अच्छी व्यवस्था से बिहार को देश के दस अग्रणी राज्यों में सम्मिलित कराया जा सकता है। इसीलिए मैं कहता हूं कि मैं उन नेताओं में नहीं, जो कहता है कि कल आऊंगा और बिहार को नंबर वन बना दूंगा।
सवाल: बिहार के विकास की अपनी अवधारणा से आपने नीतीश को क्यों नहीं अवगत कराया। क्या अनबन हुई थी?
उत्तर : बिहार में पहली बार 2015 का चुनाव जाति-धर्म पर न होकर, नीतीश के सात निश्चय पर हुआ। समाज की बेहतरी के लिए बिल्कुल सटीक सात बातें कही गई थीं। बेरोजगारी भत्ता, महिला आरक्षण, नली-गली, नल जल योजना आदि की परिकल्पना थी। वह मात्र परिकल्पना नहीं, बल्कि उसके लिए पांच वर्ष में तीन लाख करोड़ के बजट का प्रविधान हुआ और क्रियान्वयन के लिए बिहार विकास निगम की स्थापना भी कराई गई। वर्ष भर बाद मैं वहां से चला गया तो नीतीश और उनकी सरकार ने सात निश्चय को ठंडे बस्ते में डाल दिया। फिर वे भाजपा के साथ चले गए तो वह पूरा एजेंडा ही ड्राप हो गया।
सवाल: आरसीपी सिंह से क्यों खटपट हुई? अब तो साथ-बात हो गई?
उत्तर : यह मीडिया की मनगढ़ंत बात है। मैं नीतीश के साथ काम करता था। मेरी निकटता या दूरी जब भी रही, नीतीश से रही। उसमें दूसरे की कोई भूमिका नहीं। जब मैं नीतीश को छोड़कर गया तो विशुद्ध रूप से एक मुद्दे (एनआरसी और सीएए) पर, क्योंकि जदूय में उस समय मैं कथित रूप से दूसरे नंबर पर था। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था। पार्टी की बैठकों में तय हुआ था कि हम लोग इसका विरोध करेंगे और संसद में प्रस्तावित विधेयक के साथ नहीं खड़े होंगे। उस निर्णय के उलट संसदीय दल के माध्यम से नीतीश ने उस विधेयक के पक्ष में मतदान कराया। जब मैंने यह प्रश्न उठाया तो नीतीश ने कहा कि हमको पता नहीं चला, लोगों ने वोट कर दिया। अब हम लोग इसे बिहार में लागू नहीं करेंगे और आप बाहर भी जाकर यह बात कह सकते हैं। तो मुझे यह लगा कि यह सरासर धोखाधड़ी है। नीतीश किसी पक्ष या विरोध में नहीं, बल्कि मात्र अपना हित साध रहे। इसलिए उनका साथ छोड़ा। उसमें आरसीपी की कोई भूमिका नहीं। साथ में आने की बात है तो उन्हाेंने एक दल बनाया था, परिश्रम कर रहे थे, उन्हें लगा कि जसुपा से मिलकर काम करेंगे तो लक्ष्य की प्राप्ति त्वरित गति से होगी। जसुपा में बात हुई तो सबने विलय पर सहमति जताई। अब आरसीपी जसुपा के हिस्सा हैं और बड़ी भूमिका में हैं।
सवाल: नीतीश और मोदी में अंतर और समानता क्या है? किसका विजन बेहतर है?
उत्तर : समानता यह कि दोनों की राजनीतिक-सामाजिक यात्रा अपने दम की रही है। मोदी गुजरात के हैं और नीतीश बिहार के, दोनों की विचारधारा अलग-अलग है। आयु से दोनों समकालीन हैं। लगभग एक ही साथ मुख्यमंत्री बने, लेकिन 2012 के बाद नीतीश की वैसी गति नहीं रही, वैसा क्षेत्र नहीं रहा। दूसरा, मूलभूत अंतर यह कि नीतीश बिहार को राजनीतिक तौर पर कभी जीत नहीं पाए। पूरा नियंत्रण नहीं कर पाए। इस कारण उनकी जो राजनीतिक यात्रा हो सकती थी, वह नहीं हो पाई। इसके उलट मोदी का गुजरात की पार्टी इकाई पर तो पूर्णतया प्रभाव रहा ही, राष्ट्रीय स्तर पर पूरी भाजपा उनके प्रभाव में आ गई। लाभ यह कि वे प्रधानमंत्री बन गए।
सवाल: जसुपा का खर्च चंदा आदि से चलेगा या आपके धन से?
उत्तर : प्रारंभ में सर्वाधिक संसाधन मैंने और मेरे साथियों ने जुटाया। मुझ पर विश्वास करने वालों ने दिया। अब जैसे-जैसे यह दल आगे बढ़ेगा, उससे जुड़ने वाला हर व्यक्ति कुछ-न-कुछ योगदान करेगा। शुरू में जुड़े एक करोड़ लोग संस्थापक सदस्य बने। उन्होंने कोई शुल्क नहीं दिया। अक्टूबर के बाद 10 रुपये सदस्यता शुल्क मिल रहा। उसके बाद हर माह तीन-चार लाख लोग जुड़ रहे, तो 30-40 लाख रुपये तो मात्र सदस्यता शुल्क से आ रहे। आगामी कुछ वर्षों में मेरे द्वारा जुटाए जाने वाले संसाधन पर जसुपा की निर्भरता कम होगी। धीरे-धीरे ऐसे लोग आएंगे, जो सामूहिक तौर पर योगदान कर संसाधनों का जुगाड़ कर पाएंगे।
सवाल: क्या आप थकते नहीं। घर-परिवार से साथ की इच्छा नहीं होती। राजनीतिक महत्वाकांक्षा इतनी चरम है। स्वजनों को राजनीति में लाने की सोच रहे क्या?
उत्तर : माता-पिता हैं नहीं। भाई-बहन बिहार में रहते नहीं। बेटा दसवीं में पढ़ रहा। पत्नी डाक्टर हैं, जो दिल्ली में रहती हैं। संयुक्त राष्ट्र में काम करते समय, मोदी या अन्य बड़े नेताओं के साथ काम करते हुए भी मैं परिवार के साथ नहीं रहता था। आज जब बिहार में यह काम कर रहा, तब भी परिवार के साथ नहीं हूं। बात परिवार और महत्वाकांक्षा की नहीं। हमारे मां-बाप और गुरुओं ने सिखाया है कि किसी भी काम को इतनी ईमानदारी और शुद्धता से कीजिए कि पूरी सृष्टि आपकी सहायता के लिए खड़ी हो जाए। मुझे जो भी छोटी-मोटी सफलता मिली, वह इसलिए कि जिस काम को लेते हैं उसे बहुत ईमानदारी और शिद्दत से करते हैं। अगर बिहार को सुधारने का संकल्प लेकर आया हूं तो इससे बढ़कर कोई लक्ष्य व प्राथमिकता नहीं। इस पर अपना सब कुछ (बुद्धि, शक्ति, संसाधन) झोंक दिया हूं, क्योंकि हर हर हाल में बिहार को सुधारना है। अगर मेरे जैसे व्यक्ति को इसका साहस नहीं होगा तो कौन करेगा। यह राजनीतिक महत्वाकांक्षा का विषय नहीं। मैं बिहार में एमपी-एमएलए बनने नहीं आया। मुझे इस मिट्टी का कर्ज उतारना है।
सवाल: बिहार को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर : आपने जाति-धर्म के नाम पर और विचारधारा पर वोट दिया। लालू-नीतीश-मोदी को वोट दिया। नली-गली, पांच किलो अनाज के लिए वोट दिया। जीवन में एक बार अपने बच्चों के लिए, शिक्षा और रोजगार के लिए वोट दीजिए। संकल्प लीजिए कि अगला वोट किसी नेता व दल के लिए नहीं, बल्कि अपने बच्चों के लिए देंगे। तभी सुधार होगा। कोई एक क्या दस पीके बिहार को नहीं सुधार सकता। जब तक बिहार के लोग नहीं सुधरेंगे, संकल्प नहीं लेंगे तब तक बिहार नहीं सुधर सकता।
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