अब बाहर आएगा तेल्हाड़ा और चिरांद की 'मिट्टी' में दफन बिहार का इतिहास, खोदाई शुरू करने की मिली अनुमति
बिहार के तेल्हाड़ा और चिरांद में शुरू होगी पुरातात्विक खुदाई। नालंदा के तेल्हाड़ा में कुषाणकालीन बुद्ध विहार के मिले हैं अवशेष खोदाई शुरू। सारण के चिरांद के नवपाषाणकाल की संस्कृति से जुड़ रहे हैं तार जल्द शुरू होगा काम।

पटना, कुमार रजत। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने बिहार के दो पुरातात्विक स्थलों की खोदाई की अनुमति दी है। इसमें नालंदा का तेल्हाड़ा और सारण का चिरांद शामिल है। पूर्व की खोदाई में दोनों स्थलों के हजार साल से अधिक पुराने होने का प्रमाण भी मिला है। कला, संस्कृति एवं पर्यटन विभाग के प्रधान सचिव रवि परमार ने बताया कि नालंदा के तेल्हाड़ा और सारण के चिरांद में पहले भी खोदाई हो चुकी है। इसमें कई पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं। एएसआइ से फिर से यहां खोदाई करने की अनुमति मांगी गई थी जो मिल गई है। एक साल तक खोदाई करने की अनुमति मिली है। तेल्हाड़ा में काम शुरू हो गया है, चिरांद में भी जल्द खोदाई का काम शुरू होगा।
व्हेनसांग का तिलढक है आज का तिल्हाड़ा
पुरातत्व निदेशालय ने नालंदा के तेल्हाड़ा गांव में खोदाई का जिम्मा बिहार विरासत विकास समिति के कार्यकारी निदेशक विजय कुमार चौधरी को दिया है। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी अपनी यात्रा वृतांत में का तिलढक (तेल्हाड़ा) का जिक्र किया है। विजय चौधरी बताते हैं कि तेल्हाड़ा में बड़े-बड़े ऐतिहासिक टीले शुरू से ही नोटिस में रहे। यहां ग्रामीणों को अकसर ऐतिहासिक मूॢतयां मिलती थीं। 1860 ई. के आसपास अंग्रेज अफसर ब्रॉडले तेल्हाड़ा गए। उन्होंने प्रतिमाओं और अन्य अवशेषों को देखकर अंदाजा लगाया कि हो न हो व्हेनसांग के वृतांत में जिस तिलढक का जिक्र है, वह यही जगह है। इसके कुछ साल बाद ही मशहूर इतिहासकार कनिंघम भी तेल्हाड़ा आए और उन्हेंं अभिलेख मिला जिस पर तिलढक लिखा था। हालांकि इसकी ढंग से खोदाई नहीं हो पाई।
सीएम की पहल के बाद दोबारा शुरू हुआ काम
वर्ष 2009 में चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सभा तेल्हाड़ा टीले के पास ही थी। स्थानीय ग्रामीणों के कहने पर वह टीले को देखने गए और वहां से लौटकर आने के बाद विशेषज्ञों को भेजकर खोदाई का काम शुरू कराया। इसके बाद लगातार चार-पांच वर्षों तक खोदाई हुई। अभी तक की खोदाई में बौद्ध विहार की सरंचनाएं, कई पत्थर और कांस्य की प्रतिमाएं, 1000-1200 साल पुराने अभिलेख आदि मिले हैं। तेल्हाड़ा में मिले बौद्ध विहार को कुषाणकाल से लेकर पालकाल के बीच का माना जाता है। इसके स्ट्रक्चर की पहचान को और ठोस रूप से प्रमाणित किया जाएगा। इसके लिए खोदाई से चारकोल एकत्र कर रेडियो कार्बन डेटिंग कराई जाएगी।
चिरांद में हजारों साल पुरानी सभ्यता दबी होने का अनुमान
छपरा शहर से 11 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में डोरीगंज बाजार के निकट स्थित गंगा व घाघरा (सरयू) नदी तट के तट पर ऐतिहासिक स्थल चिरांद है। स्थानीय ग्रामीण रामतिवारी बताते हैं कि चिरांद में उत्खनन कार्य 1962-63 के सत्र में ही शुरू हुआ था लेकिन 1969-70 के सत्र में यहां की गई खुदाई सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसी सत्र में इसके तार नवपाषाणकाल से जुड़े होने का प्रमाण मिला। यह उस कालखंड का पूर्वी भारत का एकमात्र स्थल है, जो गंगा के क्षेत्र में है। खोदाई में यहां मिट्टी के अतिप्राचीन बर्तन मिले जिसमें चावल के दाने लगे थे। इसके अलावा खोदाई में हड्डियां और पत्थर के औजार भी मिले हैं।
डेक्कन कॉलेज की टीम को जिम्मा
हाल ही में वर्ष 2018-19 में भी पुरातत्व निदेशालय के दिशा-निर्देश में डेक्कन कॉलेज, पुणे की टीम ने यहां खोदाई की थी। इस बार भी इसी टीम को खोदाई का जिम्मा दिया गया है। टीम का उद्देश्य चिरांद के कालखंड को और अधिक विश्वसनीय अवशेषों के साथ प्रमाणित करना है।
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