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BJP ने की असली 'सौदेबाजी', नीतीश-चिराग की सीटें कर दी 'माइनस'; मांझी-कुशवाहा को सिर्फ एक-एक पर समेटा

बीजेपी ने बिहार में असली सौदेबाजी की है। सबसे अधिक 17 सीटें अपने पास रखकर बीजेपी ने नीतीश को 16 सीटें दी। पिछली बार के मुकाबले एक सीट कम। वहीं चिराग की पार्टी पिछली बार 6 सीटों पर चुनाव लड़ी थी उनकी पार्टी को भी इस बार एक सीट कम मिली है। बीजेपी ने अपने पार्टनर मांझी और कुशवाहा को एक-एक सीट पर समेट दिया है।

By Vikash Chandra Pandey Edited By: Rajat Mourya Published: Mon, 18 Mar 2024 10:06 PM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2024 10:06 PM (IST)
BJP ने की असली 'सौदेबाजी', नीतीश-चिराग की सीटें कर दी 'माइनस'; मांझी-कुशवाहा को सिर्फ एक-एक पर समेटा

राज्य ब्यूरो, पटना। Bihar NDA Seat Sharing तमाम आशंकाओं को दरकिनार करते हुए भाजपा हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा (रालोमो) को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के बैनर तले एकजुट रखने में सफल रही है। पसंद पूरी कर उसने दोनों को संतुष्ट भी किया और एक-एक से अधिक सीट नहीं देकर अपने लिए भविष्य की संभावनाओं को भी बरकरार रखा।

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केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की तुलना में लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान उसे अधिक अनुकूल और जीत की गारंटी वाले लगे। ऐसे में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पारस की असंतुष्टि की नोटिस तक नहीं ली गई। गया में हम से जीतन राम मांझी और काराकाट में रालोमो से उपेंद्र कुशवाहा अपनी-अपनी पार्टी से एकमात्र प्रत्याशी होंगे। ऐसे में विजय के बाद भी गठबंधन पर दबाव की स्थिति नहीं के बराबर होगी।

2014 में कुशवाहा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष थे। तब राजग के बैनर तले तीन सीटों पर लड़कर उनकी पार्टी की शत प्रतिशत स्ट्राइक रेट रही थी। केंद्र में मंत्री भी बने, लेकिन बाद में उनका मन बदल गया। 2019 में महागठबंधन में पांच सीटें पाए। उनमें से काराकाट और उजियारपुर पर स्वयं अखाड़े में उतर गए और दोनों पर बुरी तरह पटखनी खाए।

तीन सीट मांग रहे थे मांझी, लेकिन हाथ लगी सिर्फ एक

मांझी की पार्टी भी तीन सीटों पर ताल ठोके हुए थी। स्वयं मांझी गया के मैदान में थे। एक भी बाजी हाथ नहीं लगी। मांझी भी बहुत दाएं-बाएं किए थे। ऐसे में भाजपा पहले से सचेत थी। बिहार विजय की प्रतिबद्धता में उसने आगे किसी भी तरह की आशंका को निर्मूल करते हुए सीटों का बंटवारा किया है। जदयू को भी उसकी पसंद की सीटें मिली हैं, लेकिन पिछली बार से एक कम।

पिछली बार उसे भाजपा ने अपने बराबर 17 सीटें दी थीं। इस बार 16 दी है। यह बात दीगर कि जदयू पिछली बार 16 सीटों पर ही विजयी रहा था। उनमें से जीती गई उसकी सीटें दो सीटें (गया, काराकाट) दूसरे सहयोगियों के हवाले कर दिया है। बदले में अपने हिस्से की शिवहर देकर जख्मों पर मरहम भी लगा दिया।

चिराग को भी पिछली बार से एक सीट कम मिली

चिराग को भी पिछली बार से एक कम पांच सीटें देकर उसने सिद्ध कर दिया कि विरोधियों से लेकर गठबंधन सहयोगियों तक अब वह बैकफुट पर नहीं खेलने वाली। सीटों का बंटवारा सामाजिक समीकरण और दलगत मजबूती के आधार पर हुआ है। भाजपा ने अपने हिस्से में उन्हीं परंपरागत सीटों को रखे हुए है, जिन पर वह पिछले दो-तीन चुनाव से विजयी रही है। ये संसदीय क्षेत्र कभी कांग्रेस और समाजवादियों का गढ़ हुआ करते थे। एक-एक कर भाजपा के खाते में आ गए। पिछले दो चुनावों में तो जीत का अंतर भी बहुत अधिक रहा है और पार्टी वर्षपर्यंत उन क्षेत्रों में सक्रिय भी रही है।

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