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    बिहार में सिर्फ मोहरा बनकर रह गए मुस्लिम वोटर, 17.7% आबादी में सिर्फ 8 विधायक

    Updated: Sat, 15 Nov 2025 06:22 AM (IST)

    बिहार में मुस्लिम मतदाताओं की स्थिति दयनीय है। राज्य की 17.7% आबादी होने के बावजूद, विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व केवल 8 विधायकों तक सीमित है। राजनीतिक दल उन्हें सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते हैं, जिससे वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। 

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    बिहार विधानसभा चुनाव 2025

    राजेश चंद्र मिश्र, पटना। इस बार चुनाव के पहले से मुसलमानों को लुभाने के लिए कई राजनीतिक दलों ने बड़े-बड़े दावे-वादे किए। विरोधी खेमे पर उनकी अनदेखी के आरोपों की झड़ी लगा दी।

    मुस्लिम मतदाता सबकी सुनते-गुनते रहे, अपनी वाली किए भी, लेकिन जीत हर बार की तरह अंगुली पर गिनने वाली ही रही।

    पिछले वर्ष अदल-ओ-इंसाफ फ्रंट के तत्वावधान में मुस्लिम नेताओं ने एक प्रस्ताव पारित कर जनसंख्या के अनुपात में अपने समाज के लिए संसदीय-विधायी हिस्सेदारी की मांग उठाई थी। आंकड़ा और उपलब्धि को देखकर लगता है कि यह मांग निरस्त कर दी गई है।

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    1985 को छोड़कर मुसलमान विधायकों की संख्या कभी भी 10 प्रतिशत से ऊपर नहीं गई। अब तक के एकमात्र मुस्लिम मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने 1970 के दशक में दो वर्ष से भी कम समय तक बिहार का नेतृत्व किया।

    इस बार विभिन्न दलों से मात्र 34 मुस्लिम प्रत्याशी रहे, जबकि बिहार की जनसंख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी 17.7 प्रतिशत है। इस बार राजद ने 18 मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था।

    Bihar Chunav Result

    2025 में विजेता

    एआइएमआएम के अमौर से अख्तरुल इमान, बहादुरगंज से मो. तौसीफ आलम, बायसी से गुलाम सरवर, जोकीहाट से मो. मुर्शीद आलम व कोचाधामन से मो. सरवर आलम, किशनगंज से कांग्रेस के मो. कमरुल होदा, अररिया से कांग्रेस के आबीदुर रहमान व चैनपुर से जदयू के मो. जमा खां।

    2020 में राजद के आठ, कांग्रेस के चार, भाकपा माले के दो, एआइएमआइएम के पांच और बसपा से एक मुसलमान प्रत्याशी ने जीत दर्ज कराई थी।