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    बिहार न्यायिक सेवा के अधिकारियों की खुलेगी किस्मत, राज्य कर्मचारियों की तरह बढ़ेगा वार्षिक वेतन

    By Vikash Chandra Pandey Edited By: Rajesh Kumar
    Updated: Mon, 28 Jul 2025 08:11 AM (IST)

    बिहार न्यायिक सेवा के अधिकारियों को अब राज्य कर्मचारियों की तरह वार्षिक वेतन वृद्धि का लाभ मिलेगा। पटना उच्च न्यायालय के आदेश के बाद सरकार ने यह फैसला लिया जो 1 जनवरी 2016 से प्रभावी होगा। इससे न्यायिक अधिकारियों के वेतन पेंशन और अन्य लाभों में वृद्धि होगी। इस निर्णय से न्यायिक सेवा में समानता स्थापित होगी और अधिकारियों का मनोबल बढ़ेगा।

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    बिहार न्यायिक सेवा को राज्य सरकार के कर्मचारियों की तरह वार्षिक वेतन वृद्धि का लाभ मिलेगा। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार न्यायिक सेवा के अधिकारियों को अब राज्य सरकार के कर्मचारियों की तरह वार्षिक वेतन वृद्धि का लाभ मिलेगा। सरकार ने यह फैसला पटना उच्च न्यायालय द्वारा अजीत कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य मामले में पारित आदेश के आलोक में लिया है।

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    वित्त विभाग द्वारा जारी संकल्प के अनुसार, यह व्यवस्था एक जनवरी 2016 से प्रभावी होगी। इसका मतलब है कि संबंधित न्यायिक अधिकारी पिछली तिथि से भी लाभ के पात्र होंगे। इससे उनके वेतन, पेंशन व अन्य लाभों में वृद्धि होगी। गौरतलब है कि वार्षिक वेतन वृद्धि की गणना एक जनवरी या एक जुलाई की तिथि से की जाती है।

    इससे पहले, सर्वोच्च न्यायालय ने अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ मामले में आदेश दिया था कि नियुक्ति, प्रोन्नति या वित्तीय उन्नयन की तिथि के अनुसार वेतन वृद्धि वर्ष में केवल एक बार की जाएगी। पटना उच्च न्यायालय के ताजा आदेश के आलोक में अब बिहार न्यायिक सेवा को राज्य कर्मचारियों के समान सुविधाओं का लाभ मिलेगा।

    उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि न्यायिक सेवा के अधिकारियों को भी राज्य कर्मचारियों के समान वेतन वृद्धि का लाभ दिया जाना चाहिए, ताकि सेवा में समानता स्थापित हो सके। इस निर्णय के बाद, राज्य सरकार ने एक प्रस्ताव जारी कर पूर्व व्यवस्था को समाप्त कर दिया है।

    आर्थिक लाभ के साथ-साथ समानता की संतुष्टि: इस निर्णय से न्यायिक अधिकारियों को न केवल आर्थिक लाभ मिलेगा, बल्कि सेवा में समानता और निष्पक्षता के सिद्धांत को भी बल मिलेगा। इससे न्यायिक सेवा में कार्यरत अधिकारियों का मनोबल और संतुष्टि स्तर बढ़ेगा।

    हालांकि, इस निर्णय को देश भर की अन्य न्यायिक सेवाओं के लिए एक उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ इसी प्रकार की असमानताएँ विद्यमान रही हैं।