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    Poison-Free Grains: जहर मुक्त अनाज की ओर बिहार, जानिए कैसे बदले किसान?

    Updated: Mon, 15 Dec 2025 09:55 AM (IST)

    बिहार राज्य अब रासायनिक मुक्त और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने वाले राज्यों में शामिल हो गया है। राज्य सरकार की पहल से राज्य के सभी जिलों में 20 हजार ...और पढ़ें

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    50 हजार से ज्यादा किसान प्राकृतिक खेती को अपना चुके हैं

    जागरण संवाददाता, पटना। बिहार अब रासायन-मुक्त और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने वाले अग्रणी राज्यों की कतार में शामिल हो गया है। राज्य सरकार की पहल और किसानों की जागरूकता के चलते बिहार में खेती की परंपरागत रासायनिक पद्धतियों से हटकर प्राकृतिक खेती की ओर तेज़ी से बदलाव हो रहा है। इसका परिणाम यह है कि आज राज्य के सभी 38 जिलों में 20 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर 50 हजार से ज्यादा किसान प्राकृतिक खेती को अपना चुके हैं।

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    प्राकृतिक खेती के तहत किसान रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बजाय गोबर, गोमूत्र और जैविक घोलों का उपयोग कर रहे हैं।

    इससे खेती की लागत में कमी आ रही है और मिट्टी की सेहत भी बेहतर हो रही है। साथ ही, आम लोगों को जहर-मुक्त, स्वास्थ्यवर्धक अनाज, फल और सब्जियां मिल रही हैं।

    इस बदलाव से रासायनिक खादों पर किसानों की निर्भरता लगातार घट रही है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

    किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए जरूरी जैविक इनपुट उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्य में 266 बायो-इनपुट रिसोर्स सेंटर (बीआरसी) की स्थापना की गई है।

    इन केंद्रों के माध्यम से किसानों को जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत, नीमास्त्र और अग्नि अस्त्र जैसे जैविक घोल उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

    इसके साथ ही, नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, ताकि किसान स्वयं इन जैविक घोलों को तैयार कर सकें और वैज्ञानिक तरीके से उनका उपयोग कर सकें।

    फल-सब्जियों में भी दिख रहा असर

    रोहतास, नालंदा, पटना सहित कई जिलों में प्राकृतिक खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। किसान अब केवल धान और गेहूं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि टमाटर, बैंगन, भिंडी, गोभी, मिर्च जैसी सब्जियों की खेती भी प्राकृतिक विधि से कर रहे हैं। इसके अलावा ड्रैगन फ्रूट, अमरूद, पपीता और केला जैसे फलों का उत्पादन भी इसी पद्धति से किया जा रहा है।

    इससे किसानों की आमदनी में वृद्धि हो रही है और वे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना कर पा रहे हैं।

    कृषि सखियां बनीं बदलाव की धुरी

    केंद्र सरकार की राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत वर्ष 2025 में शुरू की गई इस योजना को बिहार में उत्साहजनक समर्थन मिल रहा है।

    किसानों को तकनीकी सहयोग और मार्गदर्शन देने के लिए 800 कृषि सखियों को तैनात किया गया है। ये कृषि सखियां खेत स्तर पर किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने, जैविक घोल तैयार करने और फसलों की देखभाल से जुड़े उपायों की जानकारी दे रही हैं।

    इससे किसानों में आत्मविश्वास बढ़ा है और वे नए प्रयोग करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।

    सरकार का दावा

    बिहार सरकार का मानना है कि प्राकृतिक खेती न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है, बल्कि यह पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभकारी है।

    कृषि मंत्री राम कृपाल यादव ने कहा कि राज्य के सभी 38 जिलों में 20 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में 50 हजार से ज्यादा किसानों का प्राकृतिक खेती से जुड़ना यह दर्शाता है कि किसान अब स्वस्थ जीवन और टिकाऊ कृषि के महत्व को समझ रहे हैं।

    रासायनिक खादों पर निर्भरता कम करने और पर्यावरण-अनुकूल खेती को बढ़ावा देने के प्रयास सकारात्मक परिणाम दे रहे हैं।

    कुल मिलाकर, बिहार में प्राकृतिक खेती एक आंदोलन का रूप ले रही है, जो आने वाले समय में राज्य को जहर-मुक्त अनाज उत्पादन की दिशा में नई पहचान दिला सकती है।