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    तीन यात्राओं की राजनीति... क्यों राहुल, तेजस्वी और प्रशांत किशोर की राह फीकी पड़ी,और BJP ने मारी ली बाज़ी

    Updated: Mon, 17 Nov 2025 10:51 AM (IST)

    बिहार चुनाव से पहले विपक्ष ने यात्राओं से समर्थन जुटाने की कोशिश की, पर सफलता नहीं मिली। राहुल, तेजस्वी, और प्रशांत किशोर की यात्राएँ अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाईं। विश्लेषकों के अनुसार, संगठनात्मक कमी और रणनीतिक निरंतरता का अभाव रहा। भाजपा ने बेहतर संगठन और रणनीति के साथ चुनाव जीता।

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    डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष ने बड़े ज़ोर-शोर से तीन अलग-अलग यात्राएं निकालकर जनता का मन जीतने की कोशिश की, लेकिन इस रणनीति का नतीजा विपक्ष के लिए निराशाजनक रहा, जबकि भाजपा की अच्छी संगठित राजनीति ने काम किया।

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    राहुल गांधी ने अपनी “वोटर अधिकार यात्रा” शुरू की थी, तेजस्वी यादव ने उतारी “बिहार अधिकार यात्रा”, और लोकप्रिय रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने चलाया “जन-सुराज पदयात्रा”।

    इन यात्राओं ने शुरुआत में ज़रूर भारी जनसमर्थन जुटाया और मीडिया की निगाहें खींचीं, लेकिन चुनावी जमीन पर यह सब उतनी असरदार नहीं साबित हो पाया।

    विश्लेषकों का कहना है कि इन यात्राओं में प्रतीकात्मक जुड़ाव ज़्यादा था, लेकिन मजबूत संगठनात्मक गहराई, स्थानीय तनाब और रणनीतिक निरंतरता की कमी स्पष्ट रही।

    विपक्षी गठबंधन खासकर कांग्रेस और RJD में सीट-बांट और संवाद की खामियां बनी रहीं, जिसके कारण एकजुट मतदान का संदेश कमजोर पड़ा।

    राहुल गांधी की यात्रा का जो जोश शुरुआत में दिखा, वह धीरे-धीरे धीमा पड़ गया। उनके लंबे मार्च और जनसभाओं के बावजूद, कांग्रेस ने ground लेवल पर वह पकड़ नहीं बना पाई जो चुनाव जीतने के लिए ज़रूरी होती है।

    वहीं, तेजस्वी यादव की यात्रा में बड़ी असफलता इसलिए हुई क्योंकि जनता में डर का सन्दर्भ भी बना, विपक्षी नेताओं पर फिर से “जंगल राज” लौटने की चेतावनियाँ गूंजीं, और उनकी सीट-साझेदारी की अनबन ने गठबंधन की राजनीतिक कहानी को कमजोर कर दिया।

    प्रशांत किशोर की रणनीति, जो जन-सुराज की बात करती रही, असल चुनावी रणभूमि में अपनी गहराई और स्थिरता साबित नहीं कर पाई। कई विश्लेषकों ने कहा कि उनकी पॉलिसियों का श्रेय उन्हें मिला, लेकिन वोटों का अनुवाद सीटों में नहीं हो पाया, क्योंकि संगठनात्मक आधार उतना मज़बूत नहीं था।

    दूसरी ओर, भाजपा-नेता और उनकी चुनावी मशीनरी बहुत योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ी। उनका कैम्पेन सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं था, उन्होंने जमीनी संगठन, रणनीति और घोषणाओं को इस तरह जोड़ा कि वोट बैंक में उन्हें लाभ मिला और सत्ता उनके हाथ में आई।

    संक्षेप में, इस चुनाव में ये तीन नेता अपनी यात्राओं के ज़रिए नारा तो खूब लगाते दिखे, लेकिन उनकी यात्राओं की राजनीति में सशक्त संरचना और गहराई की कमी उनके लिए भारी पड़ गई। वहीं, भाजपा ने ठोस संगठन और रणनीति के ज़रिए निर्णायक जीत हासिल की।

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