सीमांचल से शाहाबाद-मगध तक: एनडीए की अग्निपरीक्षा, तेजस्वी की भी बढ़ी धड़कन, 122 सीटों का जानिए गणित
Bihar vidhan Sabha chunav 2025 बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 122 सीटों पर होने वाले मतदान से पहले सियासी पारा चढ़ा हुआ है। सीमांचल और शाहाबाद-मगध क्षेत्र में एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला है। ओवैसी फैक्टर से महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ गई हैं, वहीं प्रशांत किशोर की जनसुराज भी समीकरण बिगाड़ सकती है। इन 122 सीटों का परिणाम बिहार की सत्ता का भविष्य तय करेगा।

बिहार विधानसभा चुनाव
राधा कृष्ण, पटना। Bihar election 2025 बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में होने वाले 122 सीटों पर मतदान से पहले सियासी तापमान चरम पर है। इन सीटों में सीमांचल और शाहाबाद-मगध क्षेत्र की लड़ाई ने एनडीए और महागठबंधन दोनों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एक ओर एनडीए को सत्ता तक पहुंचने के लिए इन इलाकों में मजबूती दिखानी होगी, तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन और एआईएमआईएम (AIMIM) भी यहां अपनी पकड़ जमाने में जुटा है।
सीमांचल में ओवैसी फैक्टर से महागठबंधन की बेचैनी
सीमांचल की 24 विधानसभा सीटें जिनमें कटिहार, किशनगंज, अररिया और पूर्णिया जैसे जिले शामिल हैं, हमेशा से मुस्लिम बहुल और राजद-कांग्रेस के गढ़ माने जाते रहे हैं।
2020 के चुनाव में इन 24 सीटों में से महागठबंधन को 12, एनडीए को 6 और एआईएमआईएम को 5 सीटें मिली थीं।
अब ओवैसी की पार्टी इस बार और आक्रामक रणनीति के साथ मैदान में है। सीमांचल के मुस्लिम युवाओं में AIMIM की पकड़ बढ़ी है, जिससे राजद की चिंता साफ झलक रही है।
तेजस्वी यादव की कोशिश है कि एआईएमआईएम के असर को कम करते हुए मुस्लिम-दलित-ओबीसी वोटों को एकजुट रखा जाए।
शाहाबाद-मगध में जातीय गणित बना सिरदर्द
शाहाबाद-मगध क्षेत्र में 46 सीटें महागठबंधन के पास थीं, जबकि एनडीए 23 पर सिमट गया था। औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, आरा, बक्सर, सासाराम और गया जैसे जिलों में यादव, कुर्मी, राजपूत, दलित और भूमिहार वोटरों का समीकरण बड़ा फैक्टर बनकर उभरा है।
एनडीए की उम्मीद भाजपा-जदयू के पारंपरिक वोटरों पर टिकी है, लेकिन यहां महागठबंधन रोजगार और स्थानीय विकास जैसे मुद्दों को हवा देकर मुकाबले को धार देने में जुटा है।
प्रशांत किशोर का जनसुराज: तीसरी ताकत की तलाश
इसी बीच, प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज भी इन दोनों इलाकों में “विकल्प” के रूप में उतर रही है। हालांकि जनसुराज का वोट शेयर तय नहीं है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह एनडीए और महागठबंधन दोनों के समीकरणों में सेंध लगा सकता है।
ओवैसी ने तेजस्वी की मुश्किलें बढ़ाईं
2020 में सीमांचल की पांच सीटों पर जीत के बाद ओवैसी की पार्टी के चार विधायक राजद में चले गए थे। बावजूद इसके, पिछले वर्षों में एआईएमआईएम ने संगठन को मजबूत किया है।
मुस्लिम मतदाताओं में ओवैसी की बढ़ती चर्चा अब तेजस्वी के लिए सिरदर्द बन गई है — क्योंकि सीमांचल की हर सीट इस बार निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
122 सीटों की जंग से तय होगी सत्ता की राह
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर एनडीए शाहाबाद-मगध और सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर सका, तो सत्ता तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा।
वहीं अगर एआईएमआईएम और महागठबंधन के बीच वोटों का बंटवारा नहीं हुआ, तो तेजस्वी यादव की राह और आसान हो सकती है।
यह भी पढ़ें- Bihar Politics: मोदी का दावा - पहले चरण में एनडीए को बढ़त, महागठबंधन और पीके की पार्टी के लिए नई चुनौती

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।