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    Bihar Election: घरों में टिमटिमाते रह गए भाजपा के कई सितारे, बिहार चुनाव में कैसा रही स्टार प्रचारकों की चमक?

    By RAMAN SHUKLAEdited By: Radha Krishna
    Updated: Thu, 13 Nov 2025 12:57 PM (IST)

    बिहार चुनावों में बीजेपी के बड़े नेताओं की भूमिका सीमित रही। कई दिग्गज नेता घरों तक ही सिमटे रहे, जिससे स्टार प्रचारकों की चमक फीकी पड़ गई। पार्टी ने स्थानीय नेताओं पर अधिक जोर दिया, जिससे बड़े नेताओं की सक्रियता कम दिखाई दी। रैलियों और सभाओं में भी पहले जैसा उत्साह नहीं दिखा।

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    भाजपा ने 40 स्टार प्रचारकों के नाम सम्मिलित किए

    रमण शुक्ला, पटना। विधानसभा चुनाव 2025 के लिए चुनाव आयोग को दिए सूची में भाजपा ने 40 स्टार प्रचारकों के नाम सम्मिलित किए थे। इसमें आठ स्टार प्रचारकों को भाजपा ही नहीं, एनडीए के किसी प्रत्याशी ने तवज्जो नहीं दी। मतलब यह कि पार्टी या प्रत्याशी ने प्रचार के लिए बुलाने की जरूरत नहीं महसूस की। सीधे तौर पर कहें तो भाजपा के सितारे घर में टिमटिमाते रह गए।

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    इसमें भाजपा के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े से लेकर चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान तक के नाम सम्मिलित हैं।

    यही नहीं, उप मुख्यमंत्री विजय सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, राधा मोहन सिंह, राजीव प्रताप रूढ़ी के अतिरिक्त डबल इंजन सरकार के मंत्री पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री रेणु देवी एवं सहकारिता मंत्री प्रेम कुमार जैसे चेहरे की पूछ एनडीए प्रत्याशियों के बीच नहीं रही।

    घर में यानी अपने ही विधानसभा क्षेत्र से बाहर नहीं निकल पाए। एनडीए के 243 प्रत्याशियों में से किसी ने चुनाव प्रचार के लिए नहीं बुलाया।


    भाजपा ने राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के नेताओं के नाम तो दिए, लेकिन वास्तविक मैदान में उनमें से कई को प्रचार के लिए बुलावा नहीं मिला। नतीजा यह हुआ कि कई सितारे अपने ही घरों में टिमटिमाते रह गए।


    इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री, सांसद, राष्ट्रीय प्रवक्ता, प्रदेश स्तर के दिग्गज नेता और कुछ लोकप्रिय चेहरे भी सम्मिलित थे। मगर पार्टी प्रत्याशियों की प्राथमिकता और चुनावी रणनीति ने इस बार कई नेताओं को किनारे पर छोड़ दिया।

    कई प्रत्याशियों ने अपने क्षेत्र में सिर्फ उन नेताओं को बुलाया जिनका सीधा प्रभाव स्थानीय मतदाताओं पर पड़ता है, जबकि बाकी को सिर्फ औपचारिक तौर पर नाम सूची में रखकर छोड़ दिया गया।


    एक वरिष्ठ भाजपा नेता के अनुसार, हर क्षेत्र की अपनी सामाजिक और राजनीतिक समीकरण होती है। प्रत्याशी उसी के अनुरूप प्रचारक चुनते हैं।

    कुछ नेता भले राष्ट्रीय स्तर पर बड़े हों, लेकिन स्थानीय स्तर पर उनकी अपील सीमित होती है, इसलिए बुलावा नहीं जाता।


    दूसरे पक्ष से देखें तो यह भी कहा जा रहा है कि कई स्टार प्रचारक स्वयं भी व्यस्तता या रणनीतिक कारणों से मैदान में नहीं उतर पाए।

    इनमें उप मुख्यमंत्री विजय सिन्हा अपने ही क्षेत्र में घिरे रह गए। ऐसी ही स्थिति रेणु देवी एवं प्रेम कुमार की रही। तीनों स्वयं प्रत्याशी थे। वहीं, कई वरिष्ठ नेताओं ने प्रदेश में केवल कुछ चुनिंदा सीटों पर ही प्रचार किया।


    भाजपा की सूची में सम्मिलित लगभग 40 से अधिक स्टार प्रचारकों में से 15 से 20 नेताओं ने अब तक एक या दो से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में जनसभा, रोड शो या नामांकन सभा की।

    कुछ नाम ऐसे भी हैं जिन्होंने प्रचार की शुरुआत ही नहीं की। इस स्थिति को लेकर कार्यकर्ताओं के बीच भी चर्चा जोरों पर है।

    राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा इस बार प्रचार की स्थानीय रणनीति पर काम कर रही थी। यानी बड़े नेताओं की बजाय स्थानीय चेहरे और कार्यकर्ताओं पर ज्यादा भरोसा जताया गया है।

    इससे खर्च भी घटा और मतदाताओं से सीधा संपर्क भी मजबूत हुआ। मगर इस रणनीति ने कई दिग्गज नेताओं की चमक फीकी कर दी।


    एक रोचक पहलू यह भी रहा कि कुछ सीटों पर प्रत्याशियों ने जानबूझकर ऐसे नेताओं को नहीं बुलाया जिनकी छवि किसी गुट या गुटबाजी से जुड़ी रही है।

    इससे टकराव टालने और एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की गई। अंततः, भाजपा के कई स्टार प्रचारक इस चुनाव में मंच से ज्यादा अपने घर या होटल या दफ्तरों में ही सक्रिय दिखे।