Bihar Politics: ओवैसी, मायावती और पीके ने आसान कर दिया NDA का काम, बन गए 'दोधारी तलवार'
बिहार विधानसभा चुनाव में बसपा, एआईएमआईएम और जन सुराज जैसे दलों ने महागठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कीं। इन दलों ने एनडीए विरोधी वोटों को विभाजित करके कई सीटों पर परिणाम को प्रभावित किया। एमआईएम ने सीमांचल में महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया, जबकि जन सुराज ने युवा वोटरों को आकर्षित किया। बसपा ने भी कुछ सीटों पर एनडीए को नुकसान पहुंचाया। इन दलों के कारण महागठबंधन बहुमत से दूर रह गया।

असदुद्दीन ओवैसी, प्रशांत किशोर और मायावती। PTI
राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार विधानसभा के चुनाव में औपचारिक रूप से कोई तीसरा मोर्चा तो नहीं बना, लेकिन बसपा, एआईएमआईएम और जन सुराज जैसे दलों ने एनडीए विरोधी वोटों में हिस्सा लेकर महागठबंधन की संभावना को बुरी तरह प्रभावित किया। इन दलों ने कहीं-कहीं एनडीए उम्मीदवार की हार ही भी गारंटी की। पर यह अपवाद की तरह है।
बसपा की जीत जिस इकलौती रामगढ़ विधानसभा सीट पर हुई, वह पहले भाजपा के पास थी। 243 में से कम से कम 63 विधानसभा सीटों के परिणाम को इन दलों ने प्रभावित किया। इनमें से 44 सीटों पर एनडीए के उम्मीदवारों की जीत जिस अंतर से हुई है। इससे अधिक वोट इन दलों को मिले।
हां, महागठबंधन के 19 विधायकों को भी मतों के विभाजन का लाभ मिला। एमआईएम के छह उम्मीदवार खड़े थे, पांच पर जीत हुई। एक पर उसके उम्मीदवार दूसरे नम्बर पर रहे, लेकिन चुनाव न लड़ने के बावजूद एमआईएम ने सीमांचल की कई सीटों पर महागठबंधन की संभावना को प्रभावित किया। आम तौर पर सत्ता विरोधी वोटरों का रुझान मुख्य विपक्षी गठबंधन के प्रति होता है।
बिहार विधानसभा चुनाव के मामले में इन तीनों दलों ने सत्ता विरोधी वोटरों को ही अपने पक्ष में किया। बसपा ने अनुसूचित जातियों के एनडीए विरोधी वोटरों को अपने पक्ष में किया, जनसुराज ने युवा और विकास की आकांक्षा रखने वाले युवाओं को आकर्षित किया। एमआईएम ने मुस्लिम वोटों में अपनी भागीदारी बढ़ाकर महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया।
एमआईएम को इसका अफसोस नहीं है। उसने राजद से गठबंधन में शामिल कर छह सीटें देने की मांग की थी। राजद ने ठुकरा दिया। उसी समय एमआईएम के प्रमुख असादुद्दीन आवैसी ने घोषणा की थी कि वे तेजस्वी को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। राजद को अकेले में सबसे अधिक 23.4 प्रतिशत वोट मिला, लेकिन सीटों की संख्या 25 पर आकर ठहर गई।
इस चुनाव में बसपा 181 सीटों पर लड़ी थी। एक पर जीती और दूसरे पर दूसरे स्थान पर रही। बसपा को 18 सीटों पर उससे अधिक वोट मिला, जिससे एनडीए की जीत हुई थी। उसने दो सीटों पर एनडीए को भी नुकसान पहुंचाया। दो सौ 38 सीटों पर लड़ी जन सुराज कहीं जीत नहीं हासिल कर पाई। एक में उसे दूसरा और 129 में तीसरा स्थान मिला। उसने दोनों गठबंधन के वोट में सेंधमारी की।
कम से कम 33 सीटों पर उसने दोनों गठबंधनों की संभावना को प्रभावित किया। इन पर जनसुराज को मिले वोट जीत के अंतर से अधिक थे। इन 33 में 18 पर एनडीए और शेष पर महागठबंधन की जीत हुई। जनसुराज को कुल 3.4 प्रतिशत वोट मिले। यह एनडीए के घटक हिन्दुस्तानी अवामी मोेर्चा, राष्ट्रीय लोक मोर्चा और महागठबंधन के घटक वाम दलों से अधिक है।

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