बिहार चुनाव 2025; पुराने समीकरणों का उलटफेर, गुल खिलाएंगे सियासत में बने नए रिश्ते
बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। 2020 में एनडीए से अलग होकर लड़ने वाले चिराग पासवान अब साथ हैं। उपेन्द्र कुशवाहा भी एनडीए में शामिल हो गए हैं। वहीं, पिछली बार एनडीए के साथ रहे मुकेश सहनी महागठबंधन में हैं और सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है। देखना यह है कि ये नए चुनावी रिश्ते कितने दूर तक साथ निभाते हैं।

दीनानाथ साहनी, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में सियासत के रंग-ढंग बदलने लगे हैं। भाजपा, जदयू, लोजपा, हम, रालोमा, राजद, कांग्रेस, वीआइपी और वामपंथी दल समेत अन्य क्षेत्रीय दलों के बीच सत्ता पाने की रेस शुरू हो चुकी है। कल तक जो एक-दूसरे के विरोधी माने जाते थे, उनमें से कई आज साथ-साथ हैं और सत्ता पाने को बेताब दिख रहे हैं। छत्तीस के आंकड़े उलट गए हैं। अभी कंधे से कंधे मिलाने का दौर चल रहा है। गिले-शिकवे दूर करने के संसाधन जुटाए जा रहे हैं। दोस्ती के नए-नए मुहावरे गढ़े जा रहे हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग होकर चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 135 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और एक सीट पर उसे जीत हासिल हुई थी। मगर जदयू के उम्मीदवारों को हराने में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी क्योंकि जिन सीटों पर जदयू के उम्मीदवार थे उन सीटों पर चिराग ने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को उतार कर दिया था। इतना ही नहीं, तब चुनाव प्रचार में चिराग पासवान यह अक्सर कहते थे-नीतीश कुमार अब मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। तब जदयू की हालत यह हो गई थी कि 115 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी को मात्र 43 सीटों पर जीत दर्ज कर संतोष करना पड़ा था। इस बार लोजपा (रामविलास) एनडीए के साथ है और सीट समझौते में उसे 29 सीटें मिली हैं।
इसी तरह पिछले विधानसभा चुनाव में उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) न एनडीए का हिस्सा थी न महागठबंधन की। रालोसपा कुल 99 सीट पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं जीत हासिल नहीं हुई थी। उपेन्द्र कुशवाहा अब अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) को लेकर एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं और सीट बंटवारे में उन्हें छह सीटें मिली हैं।
महत्वपूर्ण यह है कि इस मर्तबा चुनाव में एनडीए के सहयोगी बने चिराग पासवान और उपेन्द्र कुशवाहा के ऊपर जदयू के अलावा भाजपा एवं हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के उम्मीदवारों को भी जिताने की जिम्मेदारी होगी। अपने-अपने कितना वोट एनडीए के उम्मीदवारों के पक्ष में ट्रांसफर करा पाते हैं, यह नये रिश्ते की परख भी कराएगा।
पिछली बार एनडीए के सहयोगी रहे विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) के प्रमुख मुकेश सहनी महागठबंधन के साथ हैं। जब एनडीए में मुकेश सहनी थे तब उन्हें पिछले चुनाव में 11 सीटें मिली थीं जिसमें चार सीटों पर वीआइपी के उम्मीदवार जीते थे। हालांकि, बाद में वीआइपी के चारों विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। इस बार मुकेश सहनी ने उप मुख्यमंत्री का पद और 30 सीटों की मांग कर महागठबंधन को असहज कर रखा है। अभी महागठबंधन में सीट बंटवारे का ऐलान नहीं हुआ है। इस मामले में खुद मुकेश सहनी कह चुके हैं कि अभी महागठबंधन बीमार है और दिल्ली में इसका इलाज होगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए और महागठबंधन में जिन दलों के नये चुनावी रिश्ते बने हैं वो कितनी दूर तक अपने रिश्ते निभा पाते हैं क्योंकि चुनाव परिणाम आने के बाद हार-जीत से असंतुष्ट दल कोई न कोई गुल खिला सकता है।
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