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    रिश्तों का अनोखा रंग: नवादा में चुनावी मैदान में पति-पत्नी, जहानाबाद में 1 परिवार से 3 योद्धा

    Updated: Wed, 22 Oct 2025 10:09 PM (IST)

    बिहार चुनाव में रिश्तों का अनोखा रंग देखने को मिल रहा है। नवादा में राजद ने कौशल यादव और उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव को टिकट दिया है। जहानाबाद में अरुण कुमार के परिवार से तीन सदस्य एनडीए से चुनाव लड़ रहे हैं। मोतिहारी में प्रीति कुमारी पति के लिए निर्दलीय उतरी हैं, तो चिरैया में पिता के खिलाफ पुत्र मैदान में है। जोकीहाट में तस्लीमुद्दीन के बेटे विरासत के लिए लड़ रहे हैं।

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    नवादा में चुनावी मैदान में पति-पत्नी, जहानाबाद में 1 परिवार से 3 योद्धा

    राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार के चुनाव में तो वैसे भी कई रंग होते हैं, जो कि इस बार कुछ अधिक ही गाढ़ा है। प्रत्याशियों की इस भीड़ में विरासत के लिए द्वंद्व है तो एक ही मैदान मारने के लिए रिश्तों के बीच टकराव भी। कुछ सौभाग्यशाली भी हैं, जिनके परिवार में एक साथ कई टिकट आ टपके हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जो पिछला हिसाब चुकता करने के लिए इस बार फिर जूझ रहे।

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    राजद के टिकट पर पति एक मैदान में और पत्नी दूसरे में:

    नवादा की राजनीति में कौशल यादव और राजबल्लभ यादव की राह एक-दूसरे के विपरीत ही रहती है, सो इस बार भी है। राजद वाले राजबल्लभ अब जदयू वाले हो गए हैं और जदयू वाले कौशल राजद वाले। दोनों विधायक भी रहे हैं और दोनों की पत्नी भी। राजबल्लभ की पत्नी विभा देवी अभी नवादा से जदयू की प्रत्याशी हैं।

    चार बार विधायक रह चुके कौशल लालटेन उठाए उनका पीछा कर रहे। राजद ने कौशल के साथ उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव पर गोविंदपुर में दांव लगा रखा है। गोविंदपुर विधानसभा क्षेत्र भी नवादा जिला में ही हैं। एक ही पार्टी के टिकट पर पति-पत्नी के मैदान में उतरने का इस चुनाव का यह अनोखा उदाहरण है।

    कौशल की बराबरी में पूर्णिमा भी चार बार विधायक रही हैं। इस दंपती के साथ चुनावी जीत का एक और अनोखा रिकार्ड 2005 का है। तब दोनों निर्दलीय विधायक चुने गए थे। उसके बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू को आगे बढ़ाने में लग गए।

    इस वर्ष मई-जून में मन अचानक उचट गया। राजबल्लभ के आने की भनक लग गई थी। राजद इसी प्रतीक्षा में था। नौ जुलाई को नवादा शहर के आइटीआइ मैदान में हुए मिलन समारोह में तेजस्वी यादव ने कौशल से गलबहियां की थी। कौशल राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से हैं।

    एक परिवार से तीन लड़ाके, तीनों एनडीए के:

    भाग्य हो तो जहानाबाद वाले अरुण कुमार की तरह। मजे से पांच वर्ष सांसद रहे हैं। तब के विरोधियों की ऐसी-तैसी करते हुए। मुंह से ही सही, कितनों की छाती पर मूंग दले। आज भी कई लोगों की छाती फट रही है। सौभाग्य ही ऐसा है। इस चुनाव के इकलौते उदाहरण हैं, जिनके परिवार के तीन-तीन (ऋतुराज, अनिल कुमार, रोमित कुमार) रणबांकुरे मैदान-ए-जंग में कूद पड़े हैं।

    गनीमत यही है कि सभी एक ही खेमे (एनडीए) से हैं। पुत्र ऋतुराज को जदयू ने घोसी के मैदान में उतारा है। ऋतुराज के लिए यह पहला चुनावी अनुभव है। उनकी जीत के लिए मशक्कत अरुण को ही करनी है। हालांकि, उतनी मशक्कत उन्हें भाई अनिल कुमार के लिए नहीं करनी है, जिन पर टिकारी में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने दांव लगा रखा है।

    चार बार विधायक रहे चुके अनिल कुमार को अनुभवी बताना राजनीतिक हास्य ही होगा। तीसरे रणबांकुरे रोमित कुमार हैं, जो रिश्ते में अरुण कुमार के भतीजा हैं। इसका आशय यह नहीं कि वे अनिल के पुत्र हैं। वे अरुण के दूसरे भाई अरविंद कुमार के पुत्र हैं और पहली बार मैदान में उतरे हैं। उन पर अतरी में दांव हम ने ही लगा रखा है। अतरी और टिकारी विधानसभा क्षेत्र गया जिला में हैं। हम के सर्वेसर्वा जीतनराम मांझी इसी जिला से हैं। अरुण तीन भाई हैं।

    पति के लिए ढाल बनकर मैदान में आ डटीं प्रीति:

    राजनीतिक जीवट वाली नारी हैं प्रीति। कुमारी तो शुरू से ही नाम के साथ जुड़ गया है, अभी ब्याहता हैं। पति के लिए त्याग-तपस्या और चिंता का अद्भुत उदाहरण। संयोग से यह उदाहरण राजनीति के जरिये बन रहा और इसी चुनाव में। पूर्वी चंपारण जिला का मुख्यालय मोतिहारी है। बताना आवश्यक नहीं कि शहरी क्षेत्र है।

    इसी सीट से प्रीति कुमारी निर्दलीय प्रत्याशी हैं। अभी नगर निगम की महापौर हैं। यानी कि राजनीति में रुचि बहुत पहले से है। पति देवा गुप्ता भी इसी अभिरुचि वाले हैं। इस बार राजद ने उन पर मोतिहारी विधानसभा क्षेत्र में दांव लगा रखा है। पिछले पांच चुनाव से यहां भाजपा जीत रही। प्रीति इसी कारण मैदान में आई हैं। पति के लिए रक्षक की भूमिका का निर्वहन करने।

    बता रहीं कि उनके नामांकन का कारण पति का विरोध नहीं, बल्कि विरोधी खेमे की चाल को चित करने की रणनीति है। विरोधी खेमा अगर कोई दांव चलता है तो पति-पत्नी में से कोई एक तो रहेगा ही। इस सीट पर नामांकन वापसी की अंतिम तारीख 23 अक्टूबर है। इस दंपती के साथ चर्चा का एक और कोण है। दीपावली के दिन उनके घर से पुलिस ने भाजपा नेता की हत्या के आरोपित सुबोध यादव को गिरफ्तार किया था। हालांकि, उस समय घर पर प्रीति या देवा में से कोई नहीं था।

    पिता से निपटने के लिए यहां आ डटा है बेटा:

    पूर्वी चंपारण की चिरैया विधानसभा सीट पर इस बार का चुनाव बेहद रोचक बना है। इस बार यहां से आइएनडीआइए से राजद के प्रत्याशी पूर्व विधायक लक्ष्मीनारायण यादव के खिलाफ जहां एक ओर एनडीए से भाजपा के प्रत्याशी वर्तमान विधायक लालबाबू प्रसाद गुप्ता चुनावी मैदान में हैं। वहीं राजद प्रत्याशी लक्ष्मीनारायण यादव के खिलाफ उमके पुत्र लालू प्रसाद यादव भी चुनावी मैदान में हैं।

    लक्ष्मीनारायण घोड़ासहन विधानसभा से दो बार विधायक रहे हैं। परिसीमन के बाद 2008 में बने चिरैया विधानसभा का गठन हुआ। घोड़ासहन का विलय ढाका में हो गया। चिरैया व पताही को मिलाकर बनी चिरैया विधानसभा में 2010 व 2015 में राजद से चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं मिली। 2020 में निदर्लीय चुनाव लड़े, लेकिन पराजित हो गए।

    इस बार फिर से राजद ने लक्ष्मीनारायण पर भरोसा जताया है। वो चुनावी मैदान में है। इस बीच उनके पुत्र लालू प्रसाद यादव भी चुनावी अखाड़े में हैं। लालू पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी पत्नी पंचायत समिति सदस्य हैं। ये आरंभ से पिता के साथ रहकर उनकी राजनीति को आगे बढ़ाते रहे हैं। इस चुनाव में पहली बार विधानसभा के लिए नामांकन किया है।

    इस मैदान में भाई से भिड़ा हुआ है भाई, यह जंग विरासत के लिए भी:

    जोकीहाट की राजनीति कभी तस्लीमुद्दीन के इर्द-गिर्द घूमती थी। अब विरासत को लेकर उनके दोनों बेटे आमने-सामने हैं। राजद ने तस्लीमुद्दीन के छोटे पुत्र विधायक शाहनवाज आलम को अपना प्रत्याशी बनाया है। जन सुराज पार्टी से तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम मैदान में आ डटे हैं। सरफराज सांसद रह चुके हैं। यहां पिछली बार एआइएमआइएम के टिकट से ही शाहनवाज आलम जीते थे।

    बाद में वे राजद में सम्मिलित हो गए थे। पिछली बार सरफराज राजद के प्रत्याशी थे, जिन्हें शाहनवाज से मात मिली थी। अररिया का सांसद रहते हुए तस्लीमुद्दीन की 2017 में मृत्यु हो गई थी। उसके बाद राजनीति में बड़ा बदलाव आया। तब उनके बड़े बेटे सरफराज आलम जोकीहाट के विधायक थे। पिता की विरासत संभालने के लिए उन्होंने विधायक पद छोड़कर लोकसभा उप चुनाव लड़ा और सांसद बने।

    उनकी छोड़ी सीट पर 2018 में उपचुनाव हुआ, जिसमें छोटे बेटे शाहनवाज आलम ने राजद के टिकट पर जीत दर्ज की। 2020 में हालात फिर बदले। सरफराज राजद से लड़े और शाहनवाज एआइएमआइएम के टिकट पर। इस बार छोटे भाई ने बड़े को 7,383 वोटों से मात दी। अब 2025 का यह चुनाव फिर उसी विरासत की जंग का नया अध्याय लिखने जा रहा है।