Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बिहार चुनाव नतीजे तय करेंगे छोटे दलों का कद, चिराग- मांझी- कुशवाहा और सहनी की साख पर लगी दांव

    Updated: Mon, 03 Nov 2025 04:26 PM (IST)

    बिहार चुनाव के परिणाम छोटे दलों के लिए महत्वपूर्ण हैं, खासकर चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी जैसे नेताओं के लिए। इन नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है, और चुनाव के नतीजे उनकी राजनीतिक भविष्य और बिहार की राजनीति में नए समीकरणों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

    Hero Image

    बिहार चुनाव नतीजे तय करेंगे छोटे दलों का कद

    दीनानाथ साहनी, पटना। बिहार विधानसभा का चुनाव परिणाम से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन (आईएनडीआईए) में शामिल छोटे दलों की राजनीतिक हैसियत तय होगी। चुनावी नतीजे से ही राज्य में जाति के आधार पर गठित राजनीतिक दलों के नेतृत्व कर रहे लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास (लोजपारा) के चिराग पासवान, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश सहनी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के जीतनराम मांझी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के उपेन्द्र कुशवाहा का कद भी तय होगा। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    परिणाम से यह पता चलेगा कि इन नेताओं ने अपनी-अपनी जातियों के वोट बैंक पर कितनी पकड़ है और अपने-अपने गठबंधन के पक्ष में कितना वोट प्रतिशत ट्रांसफर करवा पाए? चूंकि एनडीए में सीट शेयरिंग में चिराग, मांझी और कुशवाहा ने मनमाफिक हिस्सेदारी कबूल की है। लोजपा रा को 29, हम और रालोमो को छह-छह सीटें मिली हैं। वहीं महागठबंधन में मुकेश सहनी को 15 सीटें दी गई है। 

    नेताओं के लिए साख का सवाल

    इसलिए इस बार का चुनाव इन नेताओं के लिए साख का सवाल है क्योंकि इनकी पार्टियों के प्रदर्शन पर ही एनडीए और महागठबंधन को सत्ता में पहुंचाएगा। महागठबंधन में शामिल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के लिए भी यह चुनाव अग्नि परीक्षा की तरह है। 

    इन वामपंथी पार्टियों के हिस्से में 33 सीटें हैं जिनमें माले 20, भाकपा 9 और माकपा 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। चुनावी नतीजे और इनके प्रदर्शन से यह तय होगा कि राज्य में वाकई इनके पास कितना जनाधार है और महागठबंधन के पक्ष में वोट ट्रांसफर कराने में कितना योगदान रहा?

    आधार वोट बैंक की होगी परख

    पिछले दो विधानसभा चुनावों में छोटे दलों के प्रदर्शन के आधार पर ही इस बार के नतीजे आने पर आकलन होगा। साथ ही, इनके आधार वोटबैंक की परख होगी। लोजपा को वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में 4.83 और 2020 में 5.66 प्रतिशत वोट मिला था। अक्टूबर 2020 में पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन के बाद उस साल नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में चिराग ने खुद को अकेले आजमाया था। 

    लोजपा के उम्मीदवार 145 सीटों पर लड़े। एक पर जीत हुई। लोजपा 2010 का विधानसभा चुनाव राजद से मिलकर और 2015 का विधानसभा चुनाव भाजपा की साझेदारी में लड़ी। वोट प्रतिशत क्रमश: 6.74 और 4. 83 रहा था। 

    भाकपा को 2015 में 1.36 और 2020 में 0.83 प्रतिशत वोट 

    वहीं उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा को 2015 में 2.56 और 2020 में 1.77 प्रतिशत वोट मिला था। इस बार कुशवाहा की नई पार्टी रालोमो एनडीए के साथ चुनाव मैदान में है। वहीं मुकेश सहनी की वीआईपी भाजपा के संग 2020 में 11 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और चार सीटें जीती थीं। भाकपा को 2015 में 1.36 और 2020 में 0.83 प्रतिशत वोट मिला था।

    माकपा को 2015 में 0.61 तथा 2020 में 0.65 प्रतिशत वोट मिला था। जबकि 2015 में भाकपा-माले 98 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और तीन सीट पर जीत हासिल की थी। उसे 2.54 प्रतिशत वोट मिला था। 

    2020 में माले 16 सीट पर चुनाव लड़ी और 12 पर जीत हुई। तब उसे चार प्रतिशत से ज्यादा मिला था। जाहिर है, इस चुनाव में इन पार्टियों का प्रदर्शन कितना असरदार और दमदार साबित होते हैं, यह भी चुनावी नतीजे से साफ हो जाएगा। जो आने वाले समय में उनके राजनीतिक भविष्य के लिए सबसे अहम साबित होगा। निश्चित तौर पर चुनाव के नतीजे उनके राजनीतिक भविष्य और प्रदेश की राजनीति में उनकी हैसियत को भी तय कर देंगे।