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    बिहार में सुशासन के भरोसे को प्रचंड बहुमत, दूसरी बार एनडीए की झोली में 200 से अधिक सीटें

    Updated: Sat, 15 Nov 2025 08:23 AM (IST)

    बिहार में जनता ने सुशासन पर भरोसा जताते हुए एनडीए को प्रचंड बहुमत दिया है। गठबंधन ने 200 से अधिक सीटें जीतकर अपनी स्थिति मजबूत की है, जिससे राज्य में उनकी सरकार बरकरार रहेगी। यह परिणाम एनडीए के प्रति जनता के विश्वास को दर्शाता है।

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    बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए की प्रचंड जीत

    अश्विनी, पटना। सुशासन और विकास। इन्हीं दो मुद्दों के भरोसे ने राजग की झोली में दूसरी बार दो सौ से अधिक सीटें पुन: दे दीं। 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में इसे 206 सीटें मिली थीं। 15 वर्षों बाद ठीक उसी तरह प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने का जनादेश है।

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    यह यूं ही नहीं है। भाजपा-जदयू की परंपरागत जोड़ी के प्रति विश्वास। चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रा), जीतन राम मांझी की हम पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा के रालोमो ने सामाजिक समीकरण को और पुख्ता किया। सबसे बड़ी बात यह कि आपस की एकजुटता का संदेश निचले स्तर तक कार्यकर्ताओं और आम मतदाताओं के बीच पहुंचाने में ये सफल भी रहे।

    नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का। इस प्रचंड बहुमत के पीछे जनता का वह विश्वास है, जो इन चेहरों में दिखाई पड़ा। महागठबंधन ने वोट चोरी, पलायन और नौकरी को मुद्दा बनाने का प्रयास जरूर किया, पर तार्किक ढंग से विश्वास का वातावरण बनाने में सफल नहीं हो सका। यह होगा कैसे? इसका कोई रोडमैप नहीं था।

    मुद्दे यहीं पर मात खा गए, जबकि नीतीश कुमार के सुशासन को राजग न केवल आमजन तक पहुंचाने में सफल रहा, बल्कि वर्तमान की नींव पर बेहतर भविष्य का खाका भी खींचकर बताया। आंकड़ों के साथ। एक ओर था-हमने किया। दूसरी ओर, हम करेंगे। बिहार की चुनावी राजनीति वर्तमान और भविष्य के सपनों के बीच करवटें लेती रहीं।

    अंतत: जनता ने वर्तमान में अपना भरोसा जता दिया। इस चुनाव में सुशासन और विकास का मुद्दा ही प्रमुख रहा। राजग लालू प्रसाद के कार्यकाल की याद दिलाते हुए जंगलराज की तस्वीर पेश करता रहा। नीतीश कुमार बार-बार 2005 से पहले के बिहार की तस्वीर दिखाते रहे। चुनावी सभा में पीएम ने 'कट्टा, कनपट्टी और कपार' की व्याख्या करते हुए पूछा कि कैसा बिहार चाहिए?

    यह बात लोगों तक बहुत तेजी से पहुंची, विपक्ष इसका तोड़ ढूंढ पाने में सफल नहीं हो सका। चुनाव की अधिसूचना के बाद भी दोनों ओर सीटों को लेकर आपस में विवाद भी थे, राजग ने इसे समय रहते सुलझा लिया। लेकिन, दूसरी ओर महागठबंधन अंत अंत तक असमंजस में ही रहा और कुछ सीटों पर आपस में ही एक दूसरे से भिड़ भी गए।

    यानी, यहां 'स्वयं' आगे हो गया था, आमजन के मुद्दे पीछे छूट चुके थे। राहुल गांधी ने यहां वोटर अधिकार यात्रा निकाली, पर वह कहीं से चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। वोट चोरी के आरोपों को जनता ने सिरे से खारिज कर दिया।

    उनकी सभाएं भी हुईं, पर तब तक देर भी हो चुकी थी और वे यह बता पाने में सफल नहीं हो सके कि कैसा बिहार बनाएंगे। इस चुनाव के महत्वपूर्ण पहलुओं में महिला मतदाता प्रमुख रहीं। नीतीश सरकार में पढ़ाई से लेकर रोजगार तक की सुविधा, शिक्षक से लेकर पुलिस बल तक में बहाली, सिविल सर्विस परीक्षाओं की तैयारी के लिए प्रोत्साहन राशि को उन्होंने याद रखा था।

    उद्यम के लिए 10 हजार की योजना उस विश्वास को और बल दे गई। चुनाव परिणाम बता रहा है कि यह वोट कहां गया। निश्चित रूप से यहां जातीय घेरा टूट चुका था और महिलाओं ने स्वयं को एक वर्ग के रूप में पहचानते हुए मनपसंद सरकार चुनने का निर्णय किया। राजद के माई समीकरण की स्थिरता पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है, अन्यथा परिणाम इतना अधिक खराब भी नहीं होता।