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    बिहार चुनाव 2025 में रिकॉर्ड की बाढ़, 11 प्वाइंट में जानें‌ क्या-क्या पहली बार हुआ?

    Updated: Sun, 16 Nov 2025 09:10 AM (IST)

    Bihar Assembly Election 2025 में एनडीए ने 202 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत प्राप्त किया। नीतीश कुमार दसवीं बार मुख्यमंत्री बनेंगे। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। चुनाव में 67.13% मतदान हुआ, जो 1951 के बाद सबसे अधिक है। यह चुनाव शांतिपूर्ण रहा, जहाँ कोई पुनर्मतदान नहीं हुआ। महिलाओं की भागीदारी ने एनडीए की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विपक्ष को हार का सामना करना पड़ा।

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    बिहार विधानसभा चुनाव 2025। फाइल फोटो

    डॉ चंदन शर्मा, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया। दो चरणों (6 और 11 नवंबर) में संपन्न इस चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने 202 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया, जबकि महागठबंधन मात्र 34 सीटों पर सिमट गया।

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    चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार कुल मतदान प्रतिशत 67.13% रहा, जो 1951 के बाद सबसे अधिक है। यह चुनाव बिहार के इतिहास में सबसे शांतिपूर्ण रहा, जहां कोई पुनर्मतदान नहीं हुआ और मतदान के दौरान कोई हिंसक घटना या मौत दर्ज नहीं की गई।

    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दसवीं बार शपथ लेंगे, जो भारतीय राजनीति में एक रिकॉर्ड है। भाजपा ने 89 सीटें जीतकर पहली बार बिहार में सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा हासिल किया, जबकि आरजेडी 25 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर खिसक गई।

    वाम दल, बागी व दलबदलुओं को कोई खास तवज्जो नहीं मिली। प्रशांत किशोर की जन सुराज जैसी पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल सकी। जाति का असर कम हुआ। एमवाई समीकरण भी ध्वस्त हुआ।

    यह चुनाव न केवल NDA की एकजुटता और सुशासन की जीत का प्रतीक बना, बल्कि बिहार के मतदाताओं की परिपक्वता को भी दर्शाता है। पीएम नरेंद्र मोदी की रैलियों और नीतीश कुमार की विकास योजनाओं ने मतदाताओं को प्रभावित किया।

    विपक्ष की आंतरिक कलह और जंगल राज की यादों ने महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया। प्रचंड जीत से नीतीश सर्वशक्तिमान बन कर लौटे, वहीं करारी हार के बाद लालू परिवार में भूचाल आया हुआ है। तेज प्रताप पहले अलग हुए, अब बेटियों भी मोर्चा खोल रही है।

    तेजस्वी यादव ने हार पर साजिश का आरोप लगाया, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं की योजनाएं जैसे कन्या उत्थान और रोजगार सृजन एनडीए की सफलता का प्रमुख कारक बनीं। कुल 7.43 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से करीब 5 करोड़ ने वोट डाले, जो लोकतंत्र की मजबूती का संकेत है।

    चुनाव की शांतिपूर्ण प्रकृति ने बिहार के हिंसक अतीत को पीछे छोड़ दिया। एसआईआर का रास्ता साफ हुआ। मतदान प्रक्रिया ज्यादा डिजिटल और पारदर्शी हुई। यह परिणाम 2029 के लोकसभा चुनावों के लिए भी महत्वपूर्ण संकेत दे सकता है।

    बिहार चुनाव 2025 में बने रिकॉर्ड: 11 प्रमुख बिंदु

    1. उच्चतम मतदान प्रतिशत: इस चुनाव में 67.13% मतदान दर्ज किया गया, जो 1951 के बाद से बिहार के चुनावी इतिहास में सबसे अधिक है। पिछले चुनाव की तुलना में यह 9.84% अधिक है। इस रिकॉर्ड ने साबित किया कि बिहार के मतदाता अब अधिक जागरूक और सक्रिय हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल अभियानों और चुनाव आयोग की जागरूकता मुहिम ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। SIR सफल रहा। महिलाओं और युवाओं की भागीदारी ने इस आंकड़े को और मजबूत किया।

    2. महिलाओं की अभूतपूर्व भागीदारी: महिलाओं की उच्च भागीदारी स्पष्ट रूप से एनडीए की जीत का प्रमुख कारक बनी। कन्या उत्थान योजना, साइकिल वितरण और महिलाओं के लिए आरक्षण जैसी पहलों ने उन्हें मतदान केंद्रों तक खींचा। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, महिलाएं अब बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा रही हैं, जो पुरुष-प्रधान समाज में एक बड़ा बदलाव है। इसने विपक्ष को भी सबक सिखाया कि महिला मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

    3. शून्य पुनर्मतदान: पहली बार बिहार के चुनावी इतिहास में कोई पुनर्मतदान (Revoting) नहीं हुआ, जो चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और सुरक्षा का प्रमाण है। चुनाव आयोग की सख्त निगरानी, ईवीएम की विश्वसनीयता और सुरक्षा बलों की तैनाती ने इस मील के पत्थर को संभव बनाया। यह रिकॉर्ड बिहार को अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण बनाता है, जहां अक्सर विवादों के कारण पुनर्मतदान होते हैं।

    4. हिंसा विहीन मतदान, शून्य मौतें: मतदान के दौरान कोई हिंसक वारदात नहीं हुई। कहीं से कोई मौत नहीं दर्ज की गई। 1985 के 63 मौतों वाले चुनाव की बुरी यादों से बिहार आजाद हुआ। इस शांतिपूर्ण चुनाव ने बिहार की छवि को सुधारा, जो पहले हिंसा और बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम था। पुलिस और प्रशासन की तैयारी ने सुनिश्चित किया कि मतदाता बिना डर के वोट डाल सकें।

    5. पांच करोड़ से अधिक वोट: 7.43 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 5 करोड़ ने मतदान किया, जो जन-भागीदारी का नया रिकॉर्ड है। इसने साबित किया कि बिहार के लोग अब राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी भागीदारी ने एनडीए को फायदा पहुंचाया, जबकि शहरी इलाकों में भी मतदान प्रतिशत पहली बार ऊंचा रहा।

    6. NDA की प्रचंड जीत: NDA ने 202 सीटें जीतकर बिहार में अपना अब तक का सबसे बड़ा बहुमत दर्ज किया। भाजपा की 89, जेडीयू की 85, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) की 19, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) की 5 और राष्ट्रीय लोक मोर्चा की 4 सीटों ने इस गठबंधन की मजबूती दिखाई। यह जीत मोदी-नीतीश की जोड़ी की सफलता का प्रमाण है।

    7. नीतीश कुमार का 10वां कार्यकाल : नीतीश कुमार दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, जो भारतीय राजनीति में किसी राज्य के मुख्यमंत्री के लिए अभूतपूर्व रिकॉर्ड है। उनकी लंबी राजनीतिक यात्रा और सुशासन मॉडल ने उन्हें बिहार का सुशासन बाबू बनाया। इस रिकॉर्ड ने विपक्ष को भी चुप करा दिया, जो उनकी उम्र और स्वास्थ्य पर सवाल उठाते थे।

    8. BJP का ऐतिहासिक प्रदर्शन: भाजपा ने 89 सीटें जीतकर पहली बार बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनने का गौरव हासिल किया। 2010 के बाद यह उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। मोदी की रैलियां, राम मंदिर और राष्ट्रीय मुद्दों ने भाजपा को मजबूत किया, जबकि जेडीयू के साथ समान सीट-शेयरिंग ने गठबंधन को संतुलित रखा।

    9. जदयू का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन: जेडीयू ने 85 सीटें जीतकर 2010 के बाद अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन किया। नीतीश कुमार की लोकप्रियता और विकास कार्यों ने पार्टी को मजबूत किया, जबकि जातीय समीकरणों ने विपक्ष को पीछे छोड़ दिया। यह रिकॉर्ड जेडीयू की गठबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।

    10. AIMIM का उभार, मुस्लिमों को विकल्प मिला: एआईएमआईएम ने सीमांचल में 5 सीटें जीतकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अपनी नई ताकत दिखाई। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने महागठबंधन से वोट काटे, जो आरजेडी के लिए बड़ा झटका साबित हुआ। यह उभार सीमित रहा, लेकिन भविष्य की राजनीति में इसका प्रभाव बढ़ सकता है। M-Y समीकरण कमजोर हुआ।

    11. वाम दलों, बागी व दलबदलुओं को तवज्जो नहीं: वाम दलों जैसे सीपीआई(एमएल) लिबरेशन ने मात्र 2 सीटें और सीपीआई(एम) ने 1 सीट जीती, जो उनकी घटती प्रासंगिकता को दर्शाता है। महागठबंधन में शामिल होने के बावजूद उन्हें अपेक्षित समर्थन नहीं मिला। इसी तरह बागी उम्मीदवारों व दलबदलुओं को मतदाताओं ने नकार दिया। कई प्रमुख दलबदलू अपनी सीटें हार गए, जो दर्शाता है कि बिहार के वोटर अब स्थिरता और विश्वसनीयता को प्राथमिकता देते हैं। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का शून्य सीटों पर समाप्त होना विपक्ष की कमजोरी को उजागर करता है।

    राजनीतिक विश्लेषक डॉ शोभित सुमन के शब्दों में, यह चुनाव राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग को भी आगे नई दिशा देगा। ऐसा परिणाम बिहार को विकसित राज्य बनाने की दिशा में एक कदम है।

    एनडीए ने वादा किया है कि विकास कार्यों को गति दी जाएगी, जबकि विपक्ष को आत्ममंथन की जरूरत है। 2025 का बिहार चुनाव रिकॉर्डों का महाकुंभ साबित हुआ, जो लोकतंत्र की जीवंतता को दर्शाता है।