अंग्रेज ने ऐसा क्या पूछ दिया कि बंगाल से अलग हो गया बिहार? सच्चिदानंद सिन्हा के साथ हुआ था ये वाकया
Bihar Diwas 2022 ...जब अंग्रेज यात्री के एक सवाल ने रखी बिहार की नींव मुरार गांव के निवासी हैं बिहार सृजन के सूत्रधार डा. सच्चिदानंद सिन्हा डा. सिन्हा और आचार्य शिवपूजन सहाय ने चलाया था बौद्धिक अभियान सिपाही के कंधे पर बंगाल का बैच देख लिया पृथक राज्य का संकल्प

डुमरांव (बक्सर), रंजीत कुमार पांडेय। Bihar Divas 2022: बिहार और बिहार की मिट्टी से जुड़ाव का जो गौरव दुनिया भर में बिहारियों को हासिल होता है, वह एक दिन की नहीं बल्कि वर्षों के संघर्ष का परिणाम है। बात सन् 1893 की है, जब संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले डा. सच्चिदानंद सिन्हा इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस वतन लौट रहे थे। जहाज में एक सह यात्री ने उनसे परिचय पूछा। उन्होंने अपना नाम बताते हुए खुद को एक बिहारी बताया। सह यात्री ने तपाक से सवाल जड़ दिया- कौन सा बिहार?
बक्सर जिले के रहने वाले थे सच्चिदानंद सिन्हा
यही एक सवाल था जिसके बाद उन्होंने पृथक बिहार गढऩे का निश्चय किया और यहां आकर महान साहित्यकार आचार्य शिवपूजन सहाय के साथ मिलकर बौद्धिक अभियान छेड़ा। बिहार के सृजन में संविधान सभा के प्रथम कार्यकारी अध्यक्ष रहे डा. सिन्हा का वही स्थान है, जो बंगाल के नवजागरण में राजाराम मोहन राय का था। प्रेसीडेंसी के अधीन बिहार को अलग राज्य के रूप में पहचान दिलाने में बक्सर जिलान्तर्गत मुरार गांव के सपूत डा.सिन्हा की अहम भूमिका रही।
बिहार की सांस्कृतिक पहचान करती थी अलग
किसान नेता रणजीत सिंह 'राणा' के मुताबिक सन् 1911 में बंगाल से अलग पृथक बिहार के आकार लेने का श्रेय काफी हद तक डा. सिन्हा व आचार्य शिवपूजन सहाय को जाता है। बक्सर के लिए यह गर्व का विषय है कि बिहार के सृजन में अहम भूमिका निभाने वाले दोनों पुरोधा इसी मिट्टी के थे। डा. सिन्हा का जन्म चौंगाई प्रखंड के मुरार में हुआ था। जबकि, सहाय जी इटाढ़ी प्रखंड के उनवांस के थे। राणा के मुताबिक तब बिहार बंगाल का हिस्सा हुआ करता था। बावजूद, सांस्कृतिक और भाषा के रूप से इस क्षेत्र की अलग पहचान होने के कारण डा. सिन्हा अपना परिचय एक बिहारी के रूप में ही देते थे।
22 मार्च 1912 को हुई बिहार के गठन की घोषणा
विदेश से लौटने के बाद सन् 1893 में जब बिहार के पहले रेलवे प्लेटफार्म बक्सर पर उनकी गाड़ी लगी तो उन्होंने एक बिहारी सिपाही के कंधे पर बंगाल पुलिस का बैच लगा देखा और उन्हें अंग्रेज सहयात्री के सवाल याद आए। उसी समय ही डॉ. सिन्हा ने ठान लिया कि वे बिहार को एक अलग राज्य का दर्जा दिलवा कर ही रहेंगे। यहां उन्होंने पृथक बिहार के लिए बौद्धिक अभिययन छेड़ा और पत्रकार के रूप में स्थापित आचार्य शिवपूजन सहाय ने इसे धार दी। इनके अथक प्रयास के बूते आखिरकार गर्वनर जनरल लार्ड हार्डिग के द्वारा 22 मार्च 1912 को दिल्ली दरबार में अलग बिहार एवं उड़ीसा प्रांत के गठन की घोषणा की गयी। यह डा. सिन्हा के जीवन का सबसे महान क्षण था।
शाहाबाद गजेटियर में भी है बिहार के निर्माण में योगदान की चर्चा
शाहाबाद गजेटियर में भी बिहार के निर्माण में डा.सिन्हा और आचार्य सहाय के योगदान की चर्चा है। मुरार गांव निवासी और युवा उत्तम तिवारी, मनोज सिन्हा, भूपेंद्र सिन्हा, प्रेम नारायण तिवारी, दिनेश सिन्हा और नंदलाल पंडित सहित कई ग्रामीणों ने कहा कि बिहार सृजन में अग्रणी भूमिका निभाने और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए संविधान गढऩा कोई आसान काम नहीं था। यह पूरे देश के लिए सौभाग्य है कि इतनी महती भूमिका को निभाने वाले डा. सच्चिदानंद सिन्हा की जन्म स्थली मुरार गांव में है।

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