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    Bihar Chunav 2025 Voting : कौन संभालेगा पटना की गद्दी? दूसरे चरण के चुनाव परिणाम से निकलेगी सत्ता की चाबी

    By SUNIL RAAJEdited By: Radha Krishna
    Updated: Tue, 11 Nov 2025 07:00 AM (IST)

    Bihar election 2025 phase 2 बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण का मतदान तय करेगा कि सत्ता की चाबी किसके हाथ लगेगी। एनडीए को अपनी जीती सीटें बचाने की चुनौती है, जबकि महागठबंधन सरकार बनाने की उम्मीद लगाए बैठा है। पहले चरण में दोनों गठबंधनों के बीच कड़ा मुकाबला था। अब देखना है कि मतदाता विकास, रोजगार, शिक्षा जैसे किन मुद्दों पर मुहर लगाते हैं।

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    बिहार विधानसभा चुनाव

    राज्य ब्यूरो, पटना।Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025 Phase 2 Voting दूसरे चरण की 122 विधानसभा सीटों पर मंगलवार को हो रहे मतदान और उसके परिणाम से तय होना है कि सत्ता की चाभी किस गठबंधन के हाथ लगेगी। 2020 के परिणाम को याद करें तो इस चरण में पहले की जीती सीटें बचाने और उसे बढ़ाने की चुनौती एनडीए के सामने है। महागठबंधन की सरकार बनने की संभावना भी इन्हीं क्षेत्रों के परिणाम से बन या बिगड़ सकती है।

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    पहले चरण की जिन 121 सीटों पर मतदान हुआ, उन पर 2020 के चुनाव में दोनों गठबंधनों के बीच लगभग बराबरी का मुकाबला था। एनडीए को 60 और महागठबंधन को 61 सीटें मिली थी।

    एनडीए की सरकार दूसरे चरण वाले क्षेत्रों के परिणाम पर ही बन पाई। इस चरण में एनडीए को 66 सीटें मिली थी। अकेले भाजपा के हिस्से 42 सीटें आई थी।

    इसके अलावा जदयू को 20 और हम को चार सीटें मिली थीं। बसपा और निर्दलीय की एक-एक सीट पर जीत हुई थी।

    दोनों विधायक-जमा खांन और सुमित कुमार सिंह सरकार में शामिल हुए। उधर, महागठबंधन को 45 सीट मिली (राजद 29, कांग्रेस 11 और भाकपा माले-पांच)। एआइएमआइएम के पांच में से चार विधायक राजद में शामिल हो गए।

    इस तरह महागठबंधन कुल 49 सिटिंग विधायकों के साथ मैदान में है। महागठबंधन के लिए सीमांचल में आधार बढ़ाने की चुनौती है। शाहाबाद और दक्षिण बिहार में पुरानी सीटों को कायम रखना महत्वपूर्ण कार्यभार है।

    सीमांचल भाजपा और जदयू के लिए भी महत्वपूर्ण है। भाजपा ने नियोजित ढंग से इस इलाके में ध्रुवीकरण का प्रयास किया है। उसके प्रयास की भी परख होगी।

    क्या एनडीए और खासकर नीतीश कुमार के प्रति अति पिछड़े वोटर पहले की तरह समर्पित हैं? इस प्रश्न का उत्तर मधुबनी, सीतामढ़ी, शिवहर सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और भागलपुर के परिणाम में मिलेगा।

    महागठबंधन ने इन क्षेत्रों परंपरागत एम-वाई समीकरण से अलग अति पिछड़ी बिरादरी से आने वाले कई उम्मीदवार खड़े किए हैं। जदयू के लिए जहानाबाद और घोसी सीट भी प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है।

    घोसी में पूर्व सांसद अरुण कुमार के पुत्र ऋृतुराज और जहानाबाद में पूर्व सांसद चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी जदयू के उम्मीदवार हैं।


    चुनाव प्रचार थम चुका है। अब बारी जनता की है, जो मंगलवार को अपने पसंदीदा प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेगी। चुनाव प्रचार के दौरान हर दल ने जनता को साधने की पूरी कोशिश की, लेकिन अब असली परीक्षा मतदाता की समझदारी और उम्मीदों की होगी।

    बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बिहार के लोगों और बिहार की राजनीति ने कई नैरेटिव देखे। एक ओर डबल इंजन सरकार के काम, बिहार के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के वादे के साथ घुसपैठ, जंगलराज, गोली-कनपटी जनता के बीच बड़ा मुद्दा बनकर उभरा तो वहीं रोजगार और कमाई की गूंज भी खूब सुनाई पड़ी।

    एनडीए ने जहां विकास और स्थिरता का एजेंडा आगे रखा, वहीं महागठबंधन ने बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा जैसे मुद्दों पर सत्ताधारी दल को घेरा।

    इसके बीच ही कई सीटों पर स्थानीय समीकरण, जातीय संतुलन और नए चेहरों की इंट्री ने मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया।

    इस चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर अमित शाह, राजनाथ सिंह और नीतीश कुमार से लेकर तेजस्वी यादव, प्रियंका गांधी वाड्रा और असदुद्दीन ओवैसी जैसे स्टार प्रचारकों ने मैदान में अपनी पूरी ताकत दिखाई।

    इन नेताओं की चुनावी मौजूदगी में आरोप-प्रत्यारोप, वादे, सपने और नारों से बिहार की सियासी फिजा गरमाई रही। परंतु अब जबकि चुनाव प्रचार थम चुका है और अब बिहार के 20 जिलों की 122 विधानसभा क्षेत्रों में मात्र मतदान का काम शेष है तो ऐसे में जनता-मतदाताओं के सामने सवाल यह है कि किसकी बातों पर भरोसा किया जाए और किसकी नीयत पर सवाल खड़े किए जाएं।

    विश्लेषक भी मानते हैं कि मतदाता जब मंगलवार को वोट डालेंगे तो उनके सामने सिर्फ उम्मीदवार नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य का बटन होगा। हर बार की तरह इस बार भी मतदाता ईवीएम पर पसंदीदा उम्मीदवार के नाम के सामने की बटन दबाने के पहले तय करेगा कि उसकी प्राथमिकता क्या है?

    नौकरी, रोजगार, शिक्षा, महंगाई, किसानों की कमाई, आम आदमी की आमदनी राज्य का विकास या फिर कुछ और। 14 को जब मतपेटियां खुलेंगी तो स्पष्ट होगा कि जनता ने किस नैरेटिव पर मुहर लगाई विकास की या बदलाव की।

    फिलहाल, हर सियासी गलियारे में सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा है कौन खरा उतरेगा मतदाताओं की कसौटी पर।