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    Bihar: राजनीतिक हिस्सेदारी में आगे रहनेवाले भूमिहार सवर्णों में नंबर तीन, जात की सियासत में क्या होगा इसका असर

    By Edited By: Mohit Tripathi
    Updated: Tue, 03 Oct 2023 12:19 AM (IST)

    Bihar Caste Based Census Report बिहार सरकार द्वारा कराई गई जाति आधारित गणना की रिपोर्ट सोमवार को जारी कर दी गई। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से अधिक है। रिपोर्ट में जाति के बारे में दी गई जानकारी सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट के मुताबिक राजनीतिक हिस्सेदारी में आगे रहनेवाले भूमिहार जनसंख्या के लिहाज से सवर्णों में तीसरे स्थान पर हैं।

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    Bihar Caste Based Census Report: राजनीतिक हिस्सेदारी में आगे रहने वाले भूमिहार सवर्णों में नंबर तीन।

    राज्य ब्यूरो, पटना। Bihar Caste Based Census Report बिहार सरकार ने बहुप्रतीक्षित जाति आधारित गणना की रिपोर्ट को जारी कर दिया है। जातीय सर्वे सार्वजनिक होने के बाद बिहार की राजनीति पर इसका दूरगामी असर पड़ेगा। इसकी भी संभावना है कि आने वाले चुनाव और अधिक जाति केंद्रित हो सकते हैं।

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    विश्लेषकों की मानें तो, आनेवाले दिनों में राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर भी इसका असर पड़ सकता है। खासकर सवर्णों के प्रतिनिधित्व इसका असर देखने को मिल सकता है।

    क्या है सवर्णों का जातीय गणित

    बात करें अगर जाति आधारित गणना की रिपोर्ट की तो, सवर्णों में राजनीतिक रूप से सर्वाधिक सबल भूमिहार जनसंख्या के हिसाब से तीसरे क्रमांक पर हैं। उनकी संख्या 2.86 है। उनसे अधिक जनसंख्या ब्राह्मणों व राजपूतों की है।

    1931 में भूमिहारों की जनसंख्या 2.9 प्रतिशत हुआ करती थी। हालांकि, तब बिहार और उड़ीसा संयुक्त प्रांत थे। इन वर्षों में इस समाज की जनसंख्या में कोई अप्रत्याशित परिवर्तन नहीं हुआ है।

    बिहार की राजनीति में भुमिहारों का रहा है प्रभुत्व

    बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह से लेकर वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा तक राजनीति में भूमिहार समाज का शुरू से ही प्रभुत्व रहा है। इसका कारण उसकी बौद्धिक-मानसिक चेतना है।

    बिहार भाजपा के पितामह कहे जाने वाले कैलाशपति मिश्र भी भूमिहार समाज से आते थे। अभी कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह व इसके युवा तुर्क कन्हैया कुमार भी इसी वर्ग से हैं।

    सर्वाधिक सक्रिय तीन वामदलों में से भाकपा के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय और भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल भी इस वर्ग के प्रतिनिधि चेहरा हैं।

    ये कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण हैं, जो अनुभवी राजनीतिज्ञ विजय कुमार चौधरी का उल्लेख किए बिना अधूरे रह जाते हैं। जदयू के वरीय नेता चौधरी अभी वित्त मंत्री हैं। वे विधानसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

    मुस्लिम सवर्णों की संख्या में वृद्धि

    वस्तुत: सवर्णों की जनसंख्या में जो वृद्धि दिख रही है, वह मुसलमानों में शेख, सैयद, पठान की संख्या जो जोड़ देने के कारण है। हिंदू सवर्णों की कुल जनसंख्या में वर्ष 1931 की तुलना में अपेक्षाकृत कमी आई है।

    अभी 3.65 प्रतिशत ब्राह्मण और 3.45 प्रतिशत राजपूत हैं, जो वर्ष 1931 में क्रमश: 4.7 और 4.2 हुआ करते थे। हिंदू सवर्णों में सबसे कम जनसंख्या कायस्थ समाज की है। 1931 में वे 1.2 प्रतिशत थे और अब घटकर 0.60 प्रतिशत रह गए हैं।

    12 वर्षों में प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या में 35 की वृद्धि

    राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार में प्रति हजार पुरुष पर महिलाओं की संख्या बढ़कर 953 हो गई है। जनगणना 2011 के आधार पर लिंगानुपात 918 ही था। इस तरह देखें तो पिछले 12 वर्षों में प्रति हजार पुरुष पर 35 महिलाएं बढ़ी हैं। जाति आधारित गणना की रिपोर्ट से इसकी जानकारी मिलती है।

    इस गणना में राज्य में पुरुषों की कुल संख्या 6.41 करोड़ और महिलाओं की कुल संख्या 6.11 करोड़ है। 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में पुरुषों की संख्या 5.42 करोड़ और महिलाओं की संख्या 4.98 करोड़ थी।

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