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    Bihar Bypoll: 4 सीटों का परिणाम तय करेगा 2025 की दशा और दिशा! क्या PK बिगाड़ पाएंगे महागठबंधन और NDA का 'खेल'

    Updated: Thu, 21 Nov 2024 07:44 PM (IST)

    बिहार विधानसभा उपचुनाव के नतीजे सिर्फ चार सीटों का फैसला नहीं करेंगे बल्कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की दिशा भी तय करेंगे। राजद के लिए सबसे बड ...और पढ़ें

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    उपचुनाव का परिणाम दिखाएगा पार्टियों को अगली रणनीति की दिशा

    राज्य ब्यूरो, पटना। परिणाम की घोषणा तक विधानसभा उपचुनाव को राजनीतिक दल सत्ता का सेमी-फाइनल तो कतई नहीं मान सकते। स्थिति ही कुछ ऐसी है। चार सीटों के इस उपचुनाव मेंं आमने-सामने के दोनों गठबंधनों (राजग और महागठबंधन) के लगभग सभी घटक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इनके बीच हल्ला बोल के अंदाज में कूद आई जन सुराज पार्टी (जसुपा) के दावे की पैमाइश होनी है तो मुकाबले को त्रिकोणीय-चतुष्कोणीय बनाने के लिए बेकल दलों के दम-खम का आकलन भी हो जाएगा।

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    इसके अलावा, क्षेत्र पर पुश्तैनी दावे, परिवारवाद के प्रभाव व दलगत पैठ के साथ लोकसभा चुनाव में मिले मतों के स्थायी-अस्थायी भाव का आकलन भी होना है। वस्तुत: इस परिणाम से अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए दलों को पर्याप्त संकेत भी मिल जाना है।

    कहां-कहां हुए उपचुनाव?

    बेलागंज, इमामगंज, रामगढ़ और तरारी के विधायकों के सांसद चुने जाने के कारण उन क्षेत्रों में उप चुनाव हुआ है। इसमें जिसकी बढ़त होगी, वह अगली लड़ाई के लिए मजबूत हौसले के साथ आगे बढ़ेगा। हारने वालों के लिए चुनाव परिणाम कमियों-खामियों की पहचान कर अगली रणनीति तैयार करने का पाठ होगा। परिणाम के दो दिन बाद से विधान मंडल का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है।

    हालांकि, जीत-हार से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन विधान मंडल मेंं एक-दूसरे पर छींटाकशी तय है। ये चारों सीटें मगध और शाहाबाद परिक्षेत्र की हैं, जहां लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को सबसे अधिक झटका लगा था। विधानसभा के पिछले चुनाव में भी महागठबंधन ने दूसरे क्षेत्रों की तुलना में यहां बेहतर प्रदर्शन किया था।

    राजद का सबसे बड़ा दांव

    बहरहाल, उपचुनाव मेंं सबसे बड़ा दांव राजद का है। उसके नेतृत्व वाले महागठबंधन की तीन सीटों में से दो (रामगढ़ और बेलागंज) पर पिछली बार राजद के ही प्रत्याशी विजयी रहे थे। उन दोनों सीटों की पहचान तो जैसे पार्टी के साथ परिवार और पुश्तों से जुड़ी रही है। बेलागंज में सुरेंद्र यादव और रामगढ़ मेंं राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के साथ उनके सांसद पुत्र सुधाकर सिंह की पैठ को चुनौती है। सुरेंद्र और जगदानंद के पुत्र क्रमश: बेलागंज और रामगढ़ में राजद के प्रत्याशी हैं।

    बेलागंज में इस बार माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण में सेंधमारी की चर्चा है तो रामगढ़ में अति पिछड़ा और सवर्ण मतों मेंं विभाजन की बात हो रही। इस चर्चा से अंदरखाने सभी सहमे हुए हैं। महागठबंधन की तीसरी सीट तरारी है, जो बिहार में माले की सबसे मजबूत किलों में से एक है। पिछली बार यहां सुदामा प्रसाद को जिस तरह वैश्य मतदाताओं का समर्थन मिला था, वैसा ही समर्थन उप चुनाव के प्रत्याशी राजू यादव को भी मिला है, इसे लेकर संशय है। इस क्षेत्र में बाहुबली सुनील पांडेय की भी अपना दबदबा है। भाजपा के टिकट पर मैदान मेंं उतरे उनके पुत्र प्रशांत प्रताप की जीत-हार से उस दबदबे का भी आकलन होगा।

    रामगढ़ और तरारी के परिणाम से राजग में भाजपा के बड़े भाई के दावे पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव तय है। चौथी सीट इमामगंज का परिणाम केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के आखिरी दौर की राजनीति का निर्णायक होगा। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से यहां उनके पुत्रवधू दीपा मांझी मैदान में रही हैं। इस तरह यह चौथी सीट भी परिवाद की छाया से मुक्त नहीं।

    इस परिवारवाद से जसुपा अभी इसलिए भी अछूती है, क्योंकि उसकी चुनावी राजनीति की अभी शुरुआत ही हुई है। प्रत्यक्ष रूप से वह जातिवादी और व्यक्तिवादी राजनीति का भी विरोध कर रही, लेकिन प्रत्याशियों के चयन में उसने सामाजिक समीकरण का पूरा ख्याल रखा। इसके बावजूद चुनाव अभियान के दौरान उसके सूत्रधार प्रशांत किशोर बिहार में परिवर्तन का वादा करते रहे। परिणाम से पता चलेगा कि जनता ने कितना यकीन किया है।

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