बिहार विधानसभा चुनाव 2025 : त्योहारों का मौसम और चुनावी रणनीति: खर्च बढ़ेगा, वोट भी मिलेंगे?
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले पर्व-त्योहारों के अवसर पर चंदे की मांग बढ़ गई है। छठ पूजा और दीपावली के दौरान छठ घाटों की सजावट और पूजा पंडालों के लिए जन प्रतिनिधियों से चंदा मांगा जा रहा है। चुनाव के मौसम में उम्मीदवारों के बीच चंदा देने की प्रतिस्पर्धा भी बढ़ गई है।

राज्य ब्यूरो, पटना। पर्व-त्योहार का माहौल उत्सवी होता है। लोग दिल खोलकर खर्च करते हैं। लेकिन, यही खर्च अगर दूसरों के लिए करना पड़े तो कठिनाई होती है।बिहार विधानसभा के चुनाव के पहले चरण का प्रचार दीवापली और छठ के बीच शुरू हो रहा है। इस मौके पर छठ घाटों की साज सज्जा होती है। प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। सार्वजनिक चंदा होता है।
जन प्रतिनिधियों से चंदे की अपेक्षा रहती है। अगर मौसम चुनाव का हो तो चंदे की मांग बढ़ जाती है।जन प्रतिनिधियों के बीच चंदा देने में प्रतिस्पर्धा भी होती है। दाता भी चाहते हैं कि चंदे की पर्ची पर उनके नाम पर अधिक रकम दर्ज हो। आयोजक यह बताना नहीं भूलते कि दूसरे उम्मीदवार ने कितना धन दिया है। हार जीत का निर्णय बाद में होता है। लेकिन, कोई उम्मीदवार चंदा देने के मोर्चे पर पीछे नहीं रहना चाहता है।
विधानसभा चुनाव का पहला चरण 10 अक्टूबर को अधिसूचना जारी होने के साथ शुरू होगा। 17 अक्टूबर तक नामांकन होगा। नाम वापसी की तिथि 20 अक्टूबर है। लेकिन, दलीय उम्मीदवारों का प्रचार नामांकन के बाद ही शुरू हो जाएगा। पहले चरण के उम्मीदवारों का मुकाबला दीपावली से होगा। यह 20 अक्टूबर को है। दीपावली है तो वोटरों के बच्चे पटाखे की मांग करेंगे ही।
इसके अलावा जगह-जगह लक्ष्मी पूजा के पंडाल भी लगाए जाते हैं। यह आयोजन भी जन सहयोग से ही संपन्न होता है। राजधानी के एक विधानसभा क्षेत्र के एक भाजपा विधायक ने बताया कि उनका टिकट तय है।यह जानकारी क्षेत्र की जनता को भी है। इसलिए बिना नामांकन के ही चंदे की मांग होने लगी है।
दीपावली के तुरंत बाद छठ की तैयारी शुरू हो जाती है। इसके लिए सार्वजनिक आयोजनों के नाम पर चंदा लिया जाता है। चुनाव न रहने पर भी सांसद और विधायक छठ व्रतियों के बीच पूजन सामग्री और साड़ी का वितरण करते हैं। गरीबों और जरूरतमंद लोगों के बीच इनका वितरण होता है।
चुनाव के कारण उम्मीदवारों को इस मद में भी पहले की तुलना में अधिक खर्च करना होगा। सामान्य दिनों की बात अलग है। लेकिन, मतदान से ठीक पहले मतदाताओं के किसी समूह की नाराजगी मोल लेना खतरे से खाली नहीं होता है।
त्योहार का लाभ भी है
ऐसी बात नहीं है कि पहले चरण के उम्मीदवारों का सिर्फ खर्च ही बढ़ेगा। लाभ भी होगा। क्योंकि दीपावली-छठ में घर आने वाले प्रवासी कुछ दिन घर पर ठहरते भी हैं। मतलब पहले चरण के मतदात छह नवंबर तक ये गांव-घर में ही रहेंगे।
मदान के बाद ही वापस अपने काम पर जाएंगे। वैसे, राज्य के लोग चुनाव को भी उत्सव ही मानते हैं। इसलिए प्रवासियों के आने का लाभ दूसरे चरण के उम्मीदवारों को भी मिलेगा। दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को है।
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