पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला... बिहार मद्य निषेध अधिनियम के प्रावधानों पर उठाए सवाल, भवन जब्ती आदेश पलटा
पटना उच्च न्यायालय ने बिहार मद्य निषेध अधिनियम को मनमाना और कठोर बताते हुए प्रशासन को मिली अत्यधिक शक्तियों पर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने कहा कि केवल किरायेदार की अवैध गतिविधि के आधार पर मकान मालिक को दंडित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने जब्ती आदेश को रद्द करते हुए भवन मालिक को राहत प्रदान की।

विधि संवाददाता, पटना। हाईकोर्ट ने बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम की कड़ी समीक्षा करते हुए इसे मनमाना और कठोर करार दिया है। अदालत ने कहा कि इस कानून के मौजूदा प्रावधानों से प्रशासन को असीमित और अनुचित शक्तियां मिल जाती हैं, जिनका दुरुपयोग होने की पूरी संभावना है।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश पी. बी. बजानथ्री और न्यायाधीश एस. बी. पी. सिंह की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि अधिनियम की धारा 30 और अन्य प्रावधानों के अनुसार केवल किसी अपराध से जुड़ाव के आधार पर भवन या परिसर को जब्त कर नीलाम किया जा सकता है। पीठ ने इसे “ड्रेकोनियन प्रावधान” का दर्जा देते हुए कहा कि ऐसे प्रावधानों का इस्तेमाल अत्यंत सावधानी से होना चाहिए।
क्या है मामला
पुलिस ने वाहन जांच के दौरान स्प्रिट से भरा जार जब्त किया था। जांच आगे बढ़ने पर पटना के एक भवन से बड़ी मात्रा में होम्योपैथिक दवाएं और कच्चा माल बरामद हुआ। भवन मालिक महेंद्र प्रसाद सिंह का नाम केवल इस आधार पर सामने आया कि उक्त भवन उन्हीं का था। उनकी ओर से अधिवक्ता शेखर कुमार सिंह ने दलील दी कि मकान काफी पहले किराये पर दिया गया था और मालिक का इस कारोबार से कोई लेना-देना नहीं था।
अदालत ने कहा कि मकान मालिक को महज किरायेदार की अवैध गतिविधि के कारण दंडित नहीं किया जा सकता। साथ ही, न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि कानून में दंड निर्धारण को लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं है, जिससे अलग-अलग क्षेत्रों में एक जैसे मामलों में अलग-अलग सज़ा या जुर्माना लगाया जा सकता है।
खंडपीठ ने ऐसे प्रावधानों को संविधान के अनुच्छेद 19(6) की भावना के विपरीत बताया और कहा कि मनमानी कार्रवाई असंवैधानिक है। अदालत ने मकान मालिक को राहत देते हुए जब्त भवन को मुक्त करने का आदेश दिया और याचिका स्वीकार कर ली।
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