सत्ता संग्राम: बेगूसराय में विचारधाराओं की लड़ाई, इस 'मिनी मॉस्को' में कन्हैया से आस
बेगूसराय में विचारधाराओं की लड़ाई है। इस 'मिनी मॉस्को' में कन्हैया कुमार से आस है। इस लोकसभा क्षेत्र की पड़ताल करती खबर।
पटना [अरविंद शर्मा]। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि बेगूसराय में दो विचारधाराओं के बीच कड़े मुकाबले के हालात बन रहे हैं। 80 की उम्र पार करके भाजपा सांसद भोला सिंह सियासत को अलविदा कहने की स्थिति में पहुंच चुके हैं और राजद-कांग्रेस की ओर से इस सीट को भाकपा की झोली में डालने की तैयारी लगभग कर ली गई है। ऐसे में ढलान के निचले तल पर पहुंच चुके वाम दलों की आंखें कन्हैया कुमार की बदौलत फिर चमकने लगी हैं। जाहिर है, दो विचारधाराओं के बीच कठिन संघर्ष के लिए बेगूसराय तैयार हो रहा है।
बेगूसराय को कहा जाता मिनी मॉस्को
आजादी के बाद के राजनीतिक दौर में बेगूसराय को मिनी मॉस्को कहा जाता था, जिसने बिहार में वाम विचारों को न केवल जन्म दिया, बल्कि भरण-पोषण भी किया। गंगा, गंडक, बैंती एवं बलान नदियों ने जितना यहां की फसलों को सिंचित किया, लगभग उतना ही वाम विचारों को भी खाद-पानी मिला।
इनके नाम की है चर्चा
अबकी फिर वही हालात हैं। सामने भोला सिंह का कोई न कोई उत्तराधिकारी होगा। सूची लंबी है, जिसमें केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का नाम सबसे ऊपर है। नवादा से पीछा छुड़ाकर गिरिराज बेगूसराय को अपनाना चाह रहे हैं। पहले भी बेकरारी थी। 2009 और 2014 में भी बेगूसराय ही उनकी प्राथमिकता थी। दूसरे नंबर पर रामलखन सिंह का नाम आता है। प्रदेश भाजपा में मंत्री हैं। स्थानीय स्तर पर भाजपा के पर्याय माने जाते हैं। कैलाशपति मिश्रा के करीबी थे। कई चुनाव लड़े, किंतु कामयाब नहीं हो सके।
पिछले विधानसभा चुनाव में तेघड़ा ने भी साथ नहीं दिया। पार्टी फिर उनकी वरिष्ठता का ख्याल कर सकती है, किंतु विधान पार्षद रजनीश कुमार से कड़ी चुनौती मिल रही है। मेयर पिता का प्रताप लेकर एक नया दावेदार कुंदन सिंह भी उभर रहे हैं।
2009 में मोनाजिर हसन की जीत के आधार पर जदयू का भी अधिकार है, किंतु गठबंधन के लिहाज से भाजपा भारी पड़ रही है। इधर-उधर घूमकर मोनाजिर फिर जदयू में आ चुके हैं। उनकी दावेदारी वक्त पर परखी जाएगी।
महागठबंधन में भी कन्हैया अकेले दावेदार नहीं हैं। राजद के तनवीर हसन का दावा बनता है, जो 2014 में भोला सिंह से पार नहीं पा सके थे। अबकी फिर हसरत पाले हैं, लेकिन विधायक श्रीनारायण यादव रोड़े अटका रहे हैं। वह तनवीर को नहीं चाहते हैं। पूर्व विधान पार्षद रामबदन राय ने भी राजद में वापसी इसी मकसद से की है। उनकी नजर मुंगेर पर भी है।
बहरहाल, प्रत्याशी तो कोई एक ही होगा। ...और बरौनी प्रखंड के बीहट गांव के कन्हैया फिलहाल सबसे आगे हैं। एम्स में इलाज के दौरान लालू प्रसाद से मिलकर उन्होंने सबको पीछे कर दिया है। तेजस्वी यादव भी रजामंद हैं। भाकपा की राष्ट्रीय परिषद में जगह देकर उनके इजहार को स्वीकार कर लिया गया है।
अतीत की राजनीति
बेगूसराय संसदीय क्षेत्र से एमपी मिश्र, योगेंद्र शर्मा, श्यामनंदन मिश्र, कृष्णा शाही, ललित विजय सिंह, रमेंद्र कुमार, राजो सिंह, मोनाजिर हसन एवं ललन सिंह जीतते रहे हैं। 2004 में जदयू के ललन सिंह ने कांग्रेस की कृष्णा शाही को हराया था। ललन ने अब मुंगेर को अपना लिया है। 2009 में जदयू के मोनाजिर हसन ने भाकपा के शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को हराया था। नामकरण के बारे में कहा जाता है कि बेगू नामक एक व्यक्ति ने यहां सराय बनाई थी जो बीच बाजार में हुआ करता था। उसी के नाम पर बेगूसराय पड़ा। यह पाल शासकों का महत्वपूर्ण केंद्र था।
2014 के महारथी और वोट
भोला सिंह : भाजपा : 4,28,227
तनवीर हसन : राजद : 3,69,892
राजेंद्र प्रसाद सिंह : भाकपा : 1,92,639
विधानसभा क्षेत्र
चेरिया बरियारपुर (जदयू), मटिहानी (जदयू), साहेबपुर कमाल (राजद), बखरी (राजद), तेघड़ा (राजद), बेगूसराय (कांग्र्रेस), बछवाड़ा (कांग्रेस)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।