बंद हुई बीट पुलिसिंग तो खत्म हो गया पुलिस का इकबाल
चंद्रशेखर पटना। दशकभर पहले पटना पुलिस की हनक थी। पुलिस के भय से अपराधी दूसरे शहरों
चंद्रशेखर, पटना। दशकभर पहले पटना पुलिस की हनक थी। पुलिस के भय से अपराधी दूसरे शहरों में पनाह लेने को मजबूर थे। धीरे-धीरे यह हनक समाप्त होने लगी और अपराधियों के हौसले बुलंद होते गए। उनमें पुलिस का भय समाप्त हो गया। तत्कालीन आइजी पीएन राय ने पटना शहर में बढ़ रहे अपराध को नियंत्रित करने के लिए बीट पुलिसिंग शुरू की थी। उसका असर यह हुआ था कि मोहल्ले में होने वाली सारी गतिविधियां पुलिस की नजर में रहती थीं। यहां तक कि मोहल्ले में किसी नए किराएदार या रिश्तेदार के आने की आहट भी पुलिस को मिल जाती थी। रात में साइकिल व पैदल गश्ती होती थी। गली-गली में पुलिसकर्मी घूमते रहते थे। तब सीसीटीवी कैमरे का प्रचलन नहीं होता था। पुलिस कप्तान खुद ही घने कोहरे में भी देर रात को शहर की किसी भी गली में पहुंचकर पैदल गश्ती की चेकिंग करते थे। क्या थी बीट पुलिसिंग :
तत्कालीन आइजी के निर्देश पर राजधानी के तमाम प्रमुख मोहल्लों व चौराहों को 82 बीट में बांटा गया था। सभी बीट में दो-दो पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी। दो बजे दिन से 10 बजे रात तक उनकी ड्यूटी रहती थी। इस दौरान वे मोहल्ले के चौराहों पर स्टूल लगाकर बैठ जाते थे। युवा वर्ग के साथ बुजुर्गो से भी बातचीत करते थे। हर मकान का पूरा ब्योरा उनके रजिस्टर में अंकित रहता था। किस मकान में नया किराएदार आया है, इसका विवरण मिल जाता था। नए लोगों पर पूरी नजर रहती थी। ड्यूटी पर आने के बाद पुलिसकर्मियों को एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करना पड़ता था, जो किसी दुकान या मकान में रखा रहता था। बीट में होने वाली किसी भी घटना की जवाबदेही तैनात पुलिसकर्मी की होती थी। मोहल्ले में जब भी कोई नया व्यक्ति आता था तो उनका नाम व पूरा पता रजिस्टर में दर्ज होता था। रात में होती थी साइकिल व पैदल गश्ती :
पहले हर गली-मोहल्ले में पूरी रात साइकिल से और पैदल गश्ती कराने की व्यवस्था थी। दूसरे दिन बीट पुलिस प्रभारी रात की गश्ती की रिपोर्ट अपने थानेदार को देते थे। पैदल गश्ती दल का यह डर था कि पुलिस को देखते ही अपराधियों के हाथ-पैर कांपने लगते थे। मोहल्ले में चोरी की घटनाओं में अप्रत्याशित कमी आ गई थी। थानाध्यक्ष के साथ पुलिस कप्तान भी करते थे औचक निरीक्षण :
बीट पुलिसिंग और पैदल गश्ती हो रही है या नहीं, इसका निरीक्षण करने स्वयं पुलिस कप्तान निकलते थे। सारे बीट प्रभारी और मोहल्ले के प्रमुख लोगों का नंबर भी होता था। वे खुद तो निरीक्षण करते ही थे, आम लोगों से भी फोन कर बीट प्रभारियों का हाल लेते रहते थे। विकसित हुआ था पुलिस का बड़ा खुफिया नेटवर्क :
बीट पुलिसिंग से पटना पुलिस ने जबरदस्त खुफिया तंत्र को विकसित कर रखा था। मोहल्ले में किसी भी अपराधी के कदम रखते ही पुलिस हरकत में आ जाती थी। पुलिस की हनक थी कि किसी मोहल्ले में अपराध घटित होते ही दूसरे अपराधी खुद को पाक साफ बताते हुए असली अपराधी का भेद खोल देते थे। पुलिस कप्तान की नजर में पूरे शहर का हर मोहल्ला रहता था।
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