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    आजादी के नायक वीर कुंवर सिंह की प्रेम कहानी, आरा की मशहूर तवायफ का भरी महफिल में थामा था हाथ

    By Shubh Narayan PathakEdited By:
    Updated: Mon, 26 Apr 2021 06:10 AM (IST)

    यह कहानी है आरा की मशहूर तवायफ धरमन बाई से उनके प्रेम की। धरमन बाई कुंवर सिंह की केवल प्रेमिका ही नहीं थीं बल्‍क‍ि अंग्रेजों के साथ युद्ध में उनकी महत्‍वपूर्ण सहयोगी और कुशल रणनीतिकार भी थीं। अंग्रेजों के साथ युद्ध के दौरान वह लगातार कुंवर सिंह के साथ रहीं।

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    जगदीशपुर के बाबू वीर कुंवर सिंह। फाइल फोटो

    पटना, ऑनलाइन डेस्‍क। Babu Veer Kunwar Singh Remembrance Day: भारत के प्रथम स्‍वाधीनता संग्राम (First Independence War of India 1857) के अप्रतीम और अजेय नायक जगदीशपुर (Jagdishpur) के बाबू वीर कुंवर सिंह की बहादुरी की मिसाल शायद ही कभी फीकी पड़े। 80 साल की उम्र में जब लोग लाठी का सहारा तलाशने लगते हैं, तब इस शेरदिल योद्धा ने अंग्रेजी हुकूमत और उनकी सेना के छक्‍के छुड़ा दिए थे। कुंवर सिंह की वीरता के तमाम किस्‍से जनमानस में प्रचलित हैं, इतिहास की किताबों में दर्ज हैं, जिन्‍हें जान सुनकर किसी भी देशभक्‍त की भुजाएं फड़कने लगें, लेकिन उन्‍हीं से जुड़ी एक बेहद खास कहानी है, जिसकी चर्चा बेहद कम होती रही है। यह कहानी है आरा की मशहूर तवायफ धरमन बाई (Dharman Bai) से उनके प्रेम की।

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    आरा की मशहूर तवायफ धरमन ने कुंवर सिंह की गोद में ही तोड़ा दम

    धरमन बाई, कुंवर सिंह की केवल प्रेमिका ही नहीं थीं, बल्‍क‍ि अंग्रेजों के साथ युद्ध में उनकी महत्‍वपूर्ण सहयोगी और कुशल रणनीतिकार भी थीं। अंग्रेजों के साथ युद्ध के दौरान वह लगातार कुंवर सिंह के साथ रहीं। उत्‍तर प्रदेश के कालपी के पास अंग्रेजी सेना के साथ युद्ध के दौरान धरमन बाई वीर गति को प्राप्‍त हुईं। कहा जाता है कि उन्‍होंने कुंवर सिंह की गोद में ही आखिरी सांसें ली थीं। धरमन बाई तोप चलाना तक जानती थीं। उनके साथ लड़ते हुए कुंवर सिंह ने एक के बाद एक कई युद्ध जीते। धरमन बाई की शहादत के कुछ ही दिनों बाद इस वीर राजा ने भी आखिरी सांसें लीं। उत्‍तर प्रदेश के बलिया के पास अंग्रेजों से युद्ध में उनके एक हाथ में गोली लग गई। तब कुंवर सिंह नाव से गंगा पार कर आरा की तरफ लौटने की कोशिश कर रहे थे। गोली लगे हाथ को उन्‍होंने जहर फैलने के डर से तलवार से काटकर गंगा मैया को अर्पण कर दिया। इसके कुछ ही दिनों बाद 26 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर में उनका निधन हो गया।

    लंबे अरसे तक धरमन बाई को अनदेखा करने की होती रही कोशिश

    बेहद लंबे अरसे तक इतिहासकार और प्रबुद्ध वर्ग कुंवर सिंह और धरमन बाई के प्‍यार के इस किस्‍से पर चर्चा करने से बचता रहा। इसके चलते धरमन बाई को वह पहचान नहीं मिल सकी, जिसकी वह हकदार थीं। इसके पीछे एक वजह यह थी कि धरमन बाई मुसलमान थीं। कुंवर सिंह के इलाके में बहुत सारे लोग इस किस्‍से को झूठ मानते हैं और उनकी सोच है कि इस प्रकरण से उनकी वीरता के किस्‍सों पर कोई असर पड़ेगा। यह सोच बेबुनियाद है और धीरे-धीरे ही सही खत्‍म हो रही है। पिछले दो-तीन साल में लोगों ने इसे स्‍वीकारना शुरू किया है। अगस्‍त 2019 में पटना की प्रेमचंद रंगशाला में कुंवर सिंह के प्‍यार के किस्‍से पर एक नाटक भी मंचित किया गया, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया था।

    आरा में आज भी है धरमन बाई की वह नृत्‍यशाला, जहां कुंवर सिंह को हुआ इश्‍क

    तब के शाहाबाद जिले के मुख्‍यालय में धरमन बाई की वह नृत्‍यशाला आज भी है, जहां केवल संपूर्ण काशी और मगध क्षेत्र के जमींदार और बड़े अंग्रेज अफसर तक जुटते थे। यहां धरमन बाई और करमन बाई की महफिल सजती थी। पटना के अंग्रेज अफसर भी यहां आते थे। कुंवर सिंह भी यहां अक्‍सर आया करते थे। कहा जाता है कि धरमन बाई नाचती भले थीं, लेकिन किसी की मजाल नहीं थी कि उन्‍हें छू तक ले। एक बार किसी गाने पर भावुक होकर कुंवर सिंह ने उनका हाथ पकड़ लिया। बस फिर क्‍या था, धरमन ने साफ कहा कि उन्‍होंने अपना हाथ आज तक किसी को पकड़ने नहीं दिया। उन्‍होंने कुंवर सिंह से कहा कि अब जब हाथ पकड़ लिया है तो साथ भी निभाना होगा। कुंवर सिंह ने ताजिंदगी इसे माना।

     

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