एशिया हॉकी... दौड़ रहा भारत, उमड़ रहा उत्साह, जीत रहा खेल
एशिया हॉकी का प्रत्यक्षदर्शी बनने को आतुर सलीके से कतारों में लगे दर्शक ऐसे भी हैं जिनकी खेल में रुचि तो है पर मैदान तक किसी का हाथ पकड़कर पहुंच रहे हैं। शिष्टाचार दिखा वृद्धों एवं महिलाओं को स्थान दिलाने के पक्ष में दिखने वाले खेल प्रेमी ऐसे भी हैं जो नई नस्लों को इस क्षण से साक्षी कराने के लिए अंगुली पकड़कर नीला टर्फ दिखाने ला रहे हैं।

अक्षय पांडेय, राजगीर(नालंदा)। नालंदा का गौरवशाली विश्वविद्यालय, सिलाव का स्वादिष्ट खाजा और शीशे के ग्लास ब्रिज पर खिलती उम्मीदों की हरी-भरी वादियां। शहर इतने में ही फूले नहीं समा रहा था। राजगीर के एक कोने में हॉकी स्टिक लेकर 11 भारतीय क्या दौड़े, राष्ट्रीय खेल की सराहना करने मानो पूरे देश का उत्साह उमड़ पड़ा हो।
एशिया हॉकी का प्रत्यक्षदर्शी बनने को आतुर सलीके से कतारों में लगे दर्शक ऐसे भी हैं, जिनकी खेल में रुचि तो है, पर मैदान तक किसी का हाथ पकड़कर पहुंच रहे हैं। शिष्टाचार दिखा वृद्धों एवं महिलाओं को स्थान दिलाने के पक्ष में दिखने वाले खेल प्रेमी ऐसे भी हैं, जो नई नस्लों को इस क्षण से साक्षी कराने के लिए अंगुली पकड़कर नीला टर्फ दिखाने ला रहे हैं। परिवर्तन यह है कि दर्शक अब अपायर की भूमिका में आकर पेनाल्टी की चूक पकड़ रहे हैं।
भोजपुरी गीतों पर लगते ठुमकों का रोमांच रील्स में लिपटकर फर्राटा भर रहा है। राजगीर के उजाले में सूरज की मेहरबानी से चमकते पहाड़ वृद्धों में नई उमंग पैदा कर रहे हैं। काली रात में चांद सी दिखती सफेद गेंद पर टकटकी लगाए युवाओं के मनोरथ से राष्ट्रीय खेल जवां हो रहा है।
संभवतः हाकी की यह यात्रा इतनी सरल न हो, मगर उत्साह बढ़ाने के लिए होता कोलाहल विदेशी मेहमानों को भी चकित कर रहा है। चीन के सामने जापान हो या बांग्लादेश कोरिया से भिड़े। मुकाबला अपना हो या प्रतिद्वंद्वियों का, खेल की सराहना कैसे की जाती है, यह बिहार सिखा रहा है। खेल परिसर शहर के एक कोने में बसा है। वाहन से आना हो या पैदल चलना पड़े, मैदान तक पहुचंने के लिए केवल एक चीज की आवश्यकता है, वह है हाकी के प्रति रुचि।
मैदान पर हाकी खिलाड़ी दौड़-भाग रहे हैं, तो खेल प्रेमियों की चुस्ती कम नहीं। निजी वाहन से पहुंचकर राष्ट्रीय खेल का गवाह बनाना चाहते हैं, तो गाड़ी पार्किंग में खड़ी करनी पड़ेगी। पार्किंग से खेल परिसर के पहले गेट की दूरी 100 मीटर होगी। सबसे जटिल यात्रा खेल परिसर के मुख्य गेट से हाकी मैदान तक की है। नालंदा की धरोहरों से परिचित कराती ऊंची-ऊंची दीवारों की बाहों से होकर डेढ़ किलोमीटर का सफर तय करना है।
लाल ईंटों से बने ये भवन सूरज से बुलंद नहीं हो सकते। डेढ़ किलोमीटर में कहीं सूर्य के तेवर से राहत नहीं मिलेगी। लिहाजा, सरपट कदम दौड़ने लगते हैं। थोड़ा आगे बढ़ते ही चेहरे पर चमक दिखने लगती है, ये पसीने का प्रकाश है। शरीर के बाहर मेहनत से पनपी बूंदें कितनी भी दौड़ लगाएं, आगे की यात्रा भव्य भवन की प्रशंसा करते बीतती है।
गेट से घुसे शिवा कह रहे हैं कि उनकी लंबाई थोड़ी कम रह गई लगती है। बाईं ओर खेल विश्वविद्यालय और दाईं और उससे भी ऊंचा निर्माणाधीन क्रिकेट स्टेडियम। चेहरे पर तिरंगा अंकित कर मां का हाथ पकड़े मैदान की ओर एक बच्ची तेज-तेज चलती जा रही है। स्पीकर की तीव्र ध्वनि से बजता गीत उसके कान में जा रहा है। वह भी गुनगुना रही है...इंडिया ही जीती हो...।
मैदान के नजदीक पहुंच रहे एक वृद्ध तीन जवान लड़कों को समझा रहे हैं, पैदल चलना क्या बुरा है। ये तो हम बूढ़ा-बूढ़ी कहें, तो समझ आए। महिला पूछती है, आज किसका मैच है। मैदान पर प्रवेश करते खुद का वीडियो बना रहा एक लड़का कहता है, हमें तो हाकी से मतलब है।
एशिया हाकी का यह दूसरा आयोजन है। महिला हाकी ने खेल की समझ बढ़ा दी थी। अब माइक पर आवाज आने से पहले दर्शक बोल पड़ते हैं पेनाल्टी कार्नर। खेल प्रेमी बीच-बीच में भूमिका बदल रहे हैं। कभी-कभी कोच बन बता रहे हैं, पेनल्टी में चूक न हो, तो खिताब भारत को ही मिलेगा। कप्तान हरमनप्रीत को लोग पहचान रहे हैं। उनके उपनाम से जुड़ी तख्ती ''''मुस्कुराइए सरपंच जी आप बिहार में हैं'''' मैदान पर लहर रही है।
देश की टीम के बाकी खिलाड़ियों से परिचित नहीं हैं तो नाम रखा है पगड़ी वाला और दाढ़ी वाला। 10 दिनों का आयोजन चार दिन में रील्स में लिपटकर इंटरनेट मीडिया पर हाकी की गेंद की तरफ बढ़ता जा रहा है।
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