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    Bihar Election: बालू की 'उपज' और जाति की 'जड़ता' में फंसा अरवल का चुनाव, क्या इस बार बदलेगा समीकरण?

    Updated: Sun, 09 Nov 2025 06:11 PM (IST)

    Ground Report Arwal: बिहार में विकास 'बालू' के अवैध खनन और जातिवाद के कारण बाधित है। इन मुद्दों ने राज्य की प्रगति को धीमा कर दिया है। अरवल में आज शाम चुनाव प्रचार समाप्त हो गया, और अब मतदाताओं को मतदान का इंतजार है।

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    मेनरोड बेलखरा (अरवल) में प्रचार करते कार्यकर्ता। (जागरण)

    डॉ. चंदन शर्मा, अरवल। बिहार विधानसभा चुनाव (दूसरा चरण) की हॉट सीट अरवल पर 11 नवंबर को मतदान होना है। पिछले 20 सालों का इतिहास गवाह है कि यहां कोई भी दल लगातार दो बार नहीं जीता है।

    प्रचार का शोर आज 9 नवंबर की शाम को थम जाएगा, लेकिन ग्राउंड पर विकास के वादों से कहीं अधिक जाति का जाल और बालू का अवैध कारोबार असली कहानी बयां कर रहे हैं।

    मुख्य मुकाबला भाजपा बनाम माले, जाति का समीकरण हावी

    अरवल में करीब 2.7 लाख मतदाता हैं, जिनकी किस्मत 11 नवंबर को EVM में कैद होगी। इस बार यहां भारतीय जनता पार्टी के मनोज कुमार शर्मा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के महानंद सिंह कुशवाहा के बीच कांटे की टक्कर है।

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    साथ ही जन सुराज (जसपा) की कुंती देवी भी मैदान में हैं। पशुपति पारस की पार्टी रालोजपा से दिव्या भारती भी महिलाओं को रिझाने की कोशिश कर रही है।

    मनोज शर्मा का फोकस ऊपरी जाति, महादलित, ईबीसी और प्रवासी बिहारी वोट पर है, जिसका मजबूत समर्थन मिल रहा है। दूसरी ओर मौजूदा विधायक महानंद सिंह का मुख्य आधार दलित, कुशवाहा और मजदूर वर्ग है, जिनकी ग्रामीण इलाकों में गहरी पैठ है।

    बीएसपी के शेखर राम जाटव और मुस्लिम वोटों में सेंधमारी करके माले को नुकसान पहुंचाने की भूमिका में हैं। भाजपा और माले में यहां मुकाबला सीधा दिख रहा है।

    अरवल निर्वाचन क्षेत्र में पिछले चुनाव के परिणाम पर गौर करें तो 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाकपा (माले) एल के उम्मीदवार महानंद सिंह ने शानदार जीत हासिल की थी।

    उन्हें 47.18% वोट शेयर के साथ 68,286 वोट मिले और उन्होंने भाजपा उम्मीदवार दीपक कुमार शर्मा को 19,950 (13.97%) के अंतर से हराया था, जिन्हें 48,336 वोट मिले थे। रालोसपा उम्मीदवार सुभाष चंद्र यादव 7,941 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे। इस बार भाजपा की ओर से मनोज कुमार इसी बड़े अंतर को पाटने की कोशिश में हैं।

    विकास नहीं, बालू और जाति असली चुनावी टेस्ट

    स्थानीय लोगों की जुबानी, अरवल में विकास कोई चुनावी मुद्दा नहीं है। यहां की समीकरण इन बिंदुओं के इर्द-गिर्द घूम रही है।

    1- धान से ज्यादा 'बालू' की उपज और टूटे पुल का तंज

    खेतों में धान से ज्यादा अवैध बालू खनन हो रहा है। ग्रामीण सीधे तौर पर शिकायत करते हैं कि विकास कोई मुद्दा नहीं, बालू ही कमाई है।

    इस बात का तंज देखिए कि जनता के आने-जाने के लिए नहर पर पुल डैमेज है, लेकिन वैध-अवैध बालू ट्रकों के लिए शानदार लोहे का ब्रिज दिख जाता है। यह साफ दर्शाता है कि आम आदमी को वैल्यू नहीं मिल रही, बल्कि बालू के कारोबार को प्राथमिकता दी जा रही है।

    2- जाति पर ही वोट पड़ता है, मुद्दे पर मौन

    अरवल में जाति की जड़ता इस कदर है कि विकास के सारे वादे पीछे छूट जाते हैं। खोखरी गांव के मतदाता पप्पू कुमार साहू ने साफ कहा, जाति पर ही वोट करते हैं।

    एक निर्दलीय उम्मीदवार मनोज यादव ने 12 साल संघर्ष कर रेल लाइन भी लाए, लेकिन उनके ही गांव के यादव लोग पार्टी और जाति देखकर वोट देने की बात कह रहे हैं। यहां की जनता का निष्कर्ष है कि मुद्दा पर किसी का ध्यान नहीं है।

    3- विधायक का खराब रिपोर्ट कार्ड, पर जाति का कवच

    कई गांवों में कच्ची सड़कें हैं और बिजली की शिकायतें हैं। ग्रामीणों में मौजूदा विधायक महानंद सिंह के प्रति नाराजगी है। पांच साल कहां थे? भाजपा इस नैरेटिव को भुना रही है कि माले = आंदोलन वाली पार्टी, काम नहीं। हालांकि इस गुस्से के बावजूद महागठबंधन को माई समीकरण मजबूती दे रहा है।

    माले का कैडर वोट का आधार ठीक है। महागठबंधन का वोट एकजुट दिख रहा है वहीं कुशवाहा वोटों का झुकाव भी इधर बना हुआ है। पंचायती चुनाव में अत्यधिक दखल से भी महानंद सिंह के प्रति कुछ लोग नाराज दिखे।

    4- 1.2 लाख महिला वोटरों का झुकाव, नीतीश या माले

    अरवल की 1.2 लाख से अधिक महिला मतदाता निर्णायक हैं। बैदराबाद की महिलाओं ने साफ किया कि उनके लिए भी विकास कोई मुद्दा नहीं है और वे नीतीश के साथ हैं या माले के साथ। जीविका दीदियां घर-घर प्रेरित कर रही हैं। वे कहती हैं, अंतिम फैसला तो नेता की जाति और पार्टी की छांव में ही लिया जाएगा। नई पार्टी को अभी समय लगेगा।