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    Bihar Politics: 35 सालों का इंतजार पूरा हुआ... लोकसभा चुनाव में माले ने लहराया परचम; काराकाट-आरा सीट पर कब्जा

    Updated: Tue, 04 Jun 2024 06:33 PM (IST)

    इस बार के चुनाव में भाकपा माले को महागठबंधन से सीट शेयरिंग में तीन सीटें मिली थीं। इसमें आरा काराकाट और नालंदा सीट शामिल हैं। काराकाट से राजाराम सिंह और आरा से सुदामा प्रसाद ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। दोनों ने अपने कद्दावर प्रतिद्वंदियों को हराया है। आरा में सुदामा प्रसाद ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री एवं पूर्व आइएएस राजकुमार सिंह के खिलाफ जीत दर्ज की।

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    35 सालों का इंतजार पूरा हुआ... लोकसभा चुनाव में माले ने लहराया परचम; काराकाट-आरा सीट पर कब्जा

    दीनानाथ साहनी, पटना। लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की प्रमुख सहयोगी भाकपा माले का प्रदर्शन शानदार रहा।माले ने पैंतीस वर्षों के बाद किसी आम चुनाव में दो सीटों पर जीत का परचम लहराया।

    इससे पहले 1989 में रामेश्वर प्रसाद ने आरा सीट से जीत दर्ज कर पहली बार पार्टी को संसद की राह दिखायी थी। तब वे इंडियन पीपुल्स फ्रंट के उम्मीदवार के रूप में जीते थे। बाद में इस फ्रंट का नाम भाकपा माले हो गया।

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    इस बार के चुनाव में भाकपा माले को महागठबंधन से सीट शेयरिंग में तीन सीटें मिली थीं। इसमें आरा, काराकाट और नालंदा सीट शामिल हैं। काराकाट से राजाराम सिंह और आरा से सुदामा प्रसाद ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है।

    दोनों ने अपने कद्दावर प्रतिद्वंदियों को हराया है। आरा में सुदामा प्रसाद ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री एवं पूर्व आइएएस राजकुमार सिंह के खिलाफ जीत दर्ज की है तो वहीं काराकाट में राजाराम सिंह ने पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा और भोजपुरी फिल्मों के स्टार पवन सिंह के विरुद्ध जीत का परचम लहराया है।

    भाकपा माले के लिए यह ऐतिहासिक जीत इसलिए भी खास है कि बीते ढाई दशक से बिहार में वामपंथी दलों को लोकसभा के किसी चुनाव में जीत नसीब नहीं हुई थी। 1999 के चुनाव में भागलपुर सीट से माकपा के उम्मीदवार सुबोध राय को आखिरी जीत मिली थी।

    इसके बाद से वामदल बिहार में लोकसभा चुनाव में जीत के लिए तरसते रहे। इस बार के चुनाव में भाकपा माले ने बिहार में वामपंथ की राजनीति को फिर से खड़ा करने का भी काम किया है। वैसे माले को नालंदा संसदीय सीट से भी जीत मिलने की उम्मीद थी, जहां से उसके उम्मीदवार संदीप सौरव पूरे दमखम के साथ मैदान में थे। मगर यहां सफलता नहीं मिली।

    नालंदा सीट पर महागठबंधन के नेताओं के बीच सामंजस्य का अभाव भी हार का एक महत्वपूर्ण कारण माना रहा है, नहीं तो माले ने नालंदा सीट भी जीत कर महागठबंधन की झोली में डालने में कोई कसर नहीं छोड़ रखा था। वैसे माले का उम्मीदवार नालंदा सीट पर दूसरे स्थान पर रहा।