वायु प्रदूषण से कम हो रहा इंसुलिन का प्रभाव, बच्चों और बुजुर्गों को डायबिटीज का खतरा
पटना में वायु प्रदूषण के कारण इंसुलिन का प्रभाव कम हो रहा है, जिससे बच्चों और बुजुर्गों में डायबिटीज का खतरा बढ़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषि ...और पढ़ें

मरीज का इलाज करते डॉक्टर। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, पटना। रिसर्च सोसाइटी फार द स्टडी आफ डायबिटीज इन इंडिया (आरएसएसडीआइ) बिहार कांफ्रेंस के दूसरे दिन रविवार को देश-प्रदेश के विख्यात मधुमेह रोग विशेषज्ञों ने अपने वैज्ञानिक शोध व क्लिनिकल अपडेट्स का अनुभव साझा किया।
डॉ. केपी सिन्हा के अनुसार वायु प्रदूषण सिर्फ सांस-फेफड़े ही नहीं बल्कि मधुमेह रोग के उपचार को भी बिगाड़ता है। प्रदूषित हवा में मौजूद सूक्ष्म कण पीएम 2.5 व पीएम 10 सांस से अंदर जाकर अंदरूनी सूजन पैदा करते हैं, जिससे इंसुलिन का असर कम हो जाता है और ब्लड शुगर बढ़ जाती है।
इसके अलावा वायु प्रदूषण के कारण इंसुलिन शुगर कोशिकाओं तक नहीं पहुंच पाती और खून में ही बनी रहती है जिससे शुगर अनियंत्रित हो जाती है। इसके अलावा वायु प्रदूषण से तनाव हार्मोन कार्टिसोल का स्राव बढ़ता है और शुगर अनियंत्रित हो जाती है। हवा खराब होने पर लोग टहलना-व्यायाम कम या बंद कर देते हैं और वजन के साथ शुगर नियंत्रण मुश्किल हो जाता है।
दिल व किडनी पर पहले से मौजूद डायबिटीज का दुष्प्रभाव तेजी से बढ़ता है। यही नहीं, लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से खासकर बच्चों व बुजुर्गों को मधुमेह होने का खतरा भी बढ़ जाता है। मौके पर डॉ. अतुल कुमार, डॉ. सुरेन्द्र कुमार, डॉ. सुभाष कुमार, डॉ. शैबाल गुहा, डॉ. आनन्द शंकर, डॉ. मनोज कुमार आदि ने विचार रखे।
डॉक्टरों ने बताए उपाय
डॉ. आरके मोदी ने एसजीएलटी-2 इनहिबिटर नामक नई दवाएं शरीर से अतिरिक्त शुगर को पेशाब से निकालती हैं। इससे न केवल ब्लड शुगर नियंत्रित होती है, बल्कि डायबिटीज से जुड़ी हृदय विफलता व किडनी खराब होने का खतरा भी कम होता है।
डॉ. एके विरमानी ने कहा कि खासकर टाइप-1 डायबिटीज में केवल दवा नहीं, बल्कि एरोबिक यानी तेज चलना, रेज़िस्टेंस यानी हल्का वजन उठाना और फ्लेक्सिबिलिटी यानी स्ट्रेचिंग जैसे व्यायाम बहुत जरूरी हैं। इससे इंसुलिन बेहतर काम करता है और शरीर फिट रहता है।
इसके अलावा डॉ. डीपी सिंह ने प्रिसिजन प्रिवेंशन की आवश्यकता, डॉ. वसंथ कुमार ने प्रिसिजन डायबिटीज मेडिसिन कम संसाधनों में भी प्रभावी रूप से लागू की जा सकती तो डॉ. अजय तिवारी ने एचबीए1सी को एकल टार्गेट के रूप में कम प्रासंगिक बताया जबकि डॉ. अमित कुमार दास ने यह स्थापित किया कि एचबीए1सी अब भी क्लिनिकल प्रैक्टिस का मुख्य स्तंभ है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।