Bihar: महालेखाकार ने जहां लगाया हाथ, एकेयू में वहां से आई गड़बड़झाले की बू; कांग्रेस प्रवक्ता ने लगाए गंभीर आरोप
महालेखाकार कार्यालय द्वारा एक-दो नहीं बल्कि एक दर्जन दस्तावेज मांगे जा रहे हैं लेकिन आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय (एकेयू) उन्हें उपलब्ध नहीं करा रहा है। उन दस्तावेजों के जरिये सौ करोड़ से अधिक का लेखा-जोखा होना है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इतनी राशि के वारे-न्यारे किए जाने की आशंका है। कई साक्ष्यों के साथ कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने मंगलवार को इस प्रकरण को सार्वजनिक कर दिया।

राज्य ब्यूरो, पटना। महालेखाकार कार्यालय द्वारा एक-दो नहीं, बल्कि एक दर्जन दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, लेकिन आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय (एकेयू) उन्हें उपलब्ध नहीं करा रहा है। उन दस्तावेजों के जरिये सौ करोड़ से अधिक का लेखा-जोखा होना है।
विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इतनी राशि के वारे-न्यारे किए जाने की आशंका है। कई साक्ष्यों के साथ कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने मंगलवार को इस प्रकरण को सार्वजनिक कर दिया। आवश्यकता पड़ने पर वे हाईकोर्ट का रुख भी कर सकते हैं।
असित की मानें तो लेखा-जोखा नहीं देने से गड़बड़झाले की पुष्टि होती है। एक उदाहरण पर्याप्त है। लोहे की सामान्य आलमारी लाख रुपये में खरीदी गई। कॉपी छापने के लिए विज्ञापन पर 6.89 लाख रुपये खर्च हुए।
'कोरोना काल में करोड़ों रुपये खर्च हुए'
कर्मचारी कल्याण कोष के 2.94 करोड़ रुपये का हिसाब-किताब ही नहीं है। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान भी इस विश्वविद्यालय ने जाने कहां करोड़ों रुपये खर्च किए। निरीक्षण शुल्क व प्रोसेसिंग चार्ज लिए बगैर कुछ कॉलेजों को संबद्धता दे दी गई।
महालेखाकार कार्यालय एक-एक बिंदु पर वास्तविकता से अवगत होना चाहता है। हालांकि, एकेयू प्रशासन कुछ बता नहीं रहा है, जबकि शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह भी कुलपति को पत्र लिखकर दस्तावेज उपलब्ध कराने का आग्रह कर चुके हैं।
यह गड़बड़ी 2017 से 2021-22 के बीच की बताई जा रही है। कागजात दिखाते हुए असित आरोप लगा रहे हैं कि नियम-कायदे का अनुपालन किए बगैर दर्जनों पदों पर नियुक्ति कर ली गई। अर्हता को दरकिनार करते हुए चहेते व्यक्ति को सहायक प्राध्यापक बनाया गया।
2022 में नर्सिंग एडमिशन टेस्ट के शुल्क के 30 लाख रुपये का बंदरबांट कर लिया गया। कुलाधिपति कार्यालय ने भी स्थायी रजिस्ट्रार की प्रतिनियुक्ति का निर्देश दिया था, जिसकी अनदेखी की गई।
तृतीय श्रेणी के 60 पदों पर एक आउटसोर्सिंग कंपनी के कर्मी लगे हुए हैं। वहां भी भारी गड़बड़झाला है। सही जांच के बजाय अगर लीपापोती हुई तो मामला हाईकोर्ट में जाएगा।
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