बिहार में मिला जापानी इंसेफेलाइटिस का मामला, इस बीमारी से 2009 से 2014 के बीच गई थी 56 की जान
पटना में जापानी इंसेफेलाइटिस का मामला मिला है। पटनासिटी के मालसलामी में एक बच्चे को यह बीमारी हुई है। उसे पीएमसीएच के शिशु विभाग में भर्ती कराया गया था। स्वास्थ्य में बेहतर सुधार के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया गया। जेई पीड़ित शिवम कुमार कमजोरी व सांस की समस्या से पीड़ित था।

जागरण संवाददाता, पटना। गर्मी के दस्तक देने के पहले ही स्वास्थ्य विभाग ने जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) व एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से बचाव के लिए जेई टीकाकरण तेज करने का निर्देश दिया था। बावजूद इसके मई माह में जापानी इंसेफेलाइटिस का पहला मामला पटनासिटी के मालसलामी में सामने आया है।
पीएमसीएच में कराया गया था भर्ती
बच्चे को पीएमसीएच के शिशु विभाग में भर्ती कराया गया था। मंगलवार को स्वास्थ्य में बेहतर सुधार के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया गया। वेक्टर बोर्न रोग नियंत्रण पदाधिकारी डा. सुभाष चंद्र प्रसाद व महामारी पदाधिकारी डा. प्रशांत कुमार ने इसकी पुष्टि की है।
मार्च तक जेई का एक भी मामला नहीं था
डॉक्टर ने बताया कि चार वर्षीय जेई पीड़ित शिवम कुमार कमजोरी व सांस की समस्या से पीड़ित था। जेई वैक्सीन की दोनों डोज लेने के कारण बच्चे में गंभीर लक्षण नहीं उभरे। इसके पूर्व पंडारक में भी एक बच्चे में इसकी पुष्टि हुई थी। मार्च तक जेई का एक भी मामला नहीं था।
रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर दी जानकारी
डा. सुभाष चंद्र प्रसाद ने बताया कि तेज बुखार व अर्ध बेहोशी जैसे लक्षण के बाद बच्चे को पीएमसीएच में भर्ती कराया गया था। तीन दिन पहले जेई की आशंका में उसका नमूना जांच के लिए भेजा गया था। रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद पीएमसीएच प्रशासन ने इसकी जानकारी दी। बच्चा अब पूरी तरह से ठीक है। उसके घर के आसपास जिला स्वास्थ्य समिति की टीम निगरानी कर रही है।
किसी अन्य बच्चे को नहीं है बीमारी
किसी अन्य बच्चे में अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है। उन्होंने बच्चों को चमकी-जेई से बचाने के लिए लक्षण के प्रति सतर्क किया है। उन्होंने कहा कि तेज बुखार व अर्ध बेहाशी जैसे लक्षण होने पर तुरंत अस्पताल जाएं। बच्चों को खाली पेट नहीं सोने, साफ पानी पिलाएं व मच्छरों से बचाएं।
क्यों जरूरी है सावधानी
प्रदेश में जापानी इंसेफेलाइटिस व एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम 2009 से 2014 तक काफी जानलेवा था। इस बीच प्रदेश में एईएस के 4400 मामले सामने आए थे और 1,309 यानी करीब 30 प्रतिशत की मृत्यु हो गई थी। इसी दौरान जेई के 396 मामले सामने आए थे और 56 यानी 14 प्रतिशत की मौत हुई थी।
कैसे फैलता है जेई
जेई मुख्यत: क्यूलेक्स मच्छरों के काटने से फैलता है। ये धान के खेतों व स्थिर पानी में पनपते हैं। यह वायरस मस्तिष्क व रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है, जिससे बच्चों में गंभीर न्यूरोलाजिकल समस्याएं हो सकती हैं। इसका कोई विशिष्ट इलाज नहीं होने से लक्षणों का उपचार किया जाता है। इससे बचाव के लिए टीकाकरण के साथ मच्छरों से बचाव, जलजमाव रोकना जरूरी है। बच्चों में तेज बुखार, झटके यानी चमकी, ठंड लगना व असामान्य व्यवहार पर तुरंत चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए।

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