पटना प्रशासन ने किया अनोखा काम, तीन साल में 79 बच्चों को ढूंढकर उनके माता-पिता को सौंपा
पटना जिला प्रशासन लापता बच्चों को उनके परिवार से मिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। पिछले तीन वर्षों में 79 बच्चों को ढूंढ़कर उनके परिजनों को सौंपा गया है। डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम ने बताया कि बच्चों को सौंपने से पहले डीएनए जांच और काउंसलिंग की जाती है। उन्होंने अवैध गोद लेने और बच्चों की खरीद-फरोख्त को गंभीर अपराध बताया है जिसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है।

जागरण संवाददाता, पटना। लापता बच्चों को उनके परिजनों से मिलाने के लिए जिला प्रशासन स्तर पर पहल की गई है। इसके लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा स्वीकृत स्वच्छ ग्रहण दिशानिर्देश 2022 का पालन किया जा रहा है।
शुक्रवार को समीक्षा बैठक में डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम ने बताया कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 और रक्त स्वीकृति विनियम 2022 के अनुसार बच्चों को परिजनों को सौंपने से पहले डीएनए जांच और काउंसलिंग की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
जिला प्रशासन अपने माता-पिता से बिछड़े बच्चों के जीवन में खुशियां और अपनापन लौटाने के लिए प्रतिबद्ध है। तीन साल में जिले के 79 बच्चों को ढूंढ़कर उनके परिजनों से मिलाया गया है। इनमें 65 बच्चे बिहार के विभिन्न जिलों के हैं। 14 बच्चे दूसरे राज्यों के थे। इनमें 39 बच्चे तीन साल से अपने परिजनों से बिछड़े हुए थे।
जिलाधिकारी ने कहा कि अगर किसी को कोई लावारिस बच्चा दिखे या उसके लापता होने की बात बताए तो तुरंत पुलिस या चाइल्डलाइन को सूचित करें।
उन्होंने कहा कि अस्पताल, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन जैसे सार्वजनिक स्थानों से बच्चों को सीधे उठाना अपराध है। अवैध रूप से गोद लेना दंडनीय अपराध है। ऐसा करने वालों को 3 साल की जेल और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। बच्चे की खरीद-फरोख्त करना कानूनी तौर पर गंभीर अपराध है।
इसके लिए 5 साल की जेल और 1 लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है। जिलाधिकारी ने दोहराया कि बच्चों से जुड़ा कोई भी अवैध कार्य, चाहे वह खरीद-फरोख्त हो या अवैध रूप से गोद लेना, दंडनीय अपराध है। दोषी को 10 साल तक की सजा और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
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