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बाइस्‍कोप वाले जगदीश की कहानी, पहले बच्चे मेरे पीछे भागते थे, आज मैं बच्चों के पीछे भागता हूं

​​​​​बाइस्कोप से दस रुपये में दुनिया की सैर करा रहे पटना सिटी के रहने वाले जगदीश 50 वर्षों से दादा बेटा व पोता काे दिखा रहे हैं बाइस्कोप 71 की उम्र में नहीं छूट रहा पुराने पेशे का मोह

By Shubh NpathakEdited By: Published: Sat, 14 Nov 2020 01:38 PM (IST)Updated: Sun, 15 Nov 2020 06:32 AM (IST)
बाइस्‍कोप वाले जगदीश की कहानी, पहले बच्चे मेरे पीछे भागते थे, आज मैं बच्चों के पीछे भागता हूं
71 साल के जगदीश ने जिंदा रखा है बाइस्‍कोप वाला दौर। जागरण

पटना सिटी [अनिल कुमार]। बाइस्कोप यानी पुराने जमाने का टीवी। न बिजली की जरूरत और न केबल कनेक्‍शन की। बस चार आने या आठ आने दीजिए और कर लीजिए पूरी दुनिया की सैर। मेले में जाने वाले बच्‍चे बगैर इसे देखे नहीं लौटते थे। अब यह बाइस्‍कोप गांवों में भी नहीं दिखता। बाइस्‍कोप का आनंद उठाने वाली पीढ़ी अब अपनी बालों की सफेदी छिपाने में लगी है। लेकिन, पटना सिटी की गलियों में आज भी एक बाइस्‍कोप वाला घूमता दिखाई दे जाता है। इंटरनेट, थ्री-डी और मल्‍टीप्‍लेक्‍स के जमाने में इसकी डिमांड वैसे नहीं रही, लेकिन काम फिर भी चल ही जाता है। यह कहानी पटना सिटी में रहने वाले जगदीश की है। उनकी आजीविका बाइस्‍कोप दिखाकर ही चलती है।

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पहले दादा देखे, फिर पिता और अब पोता देख रहे बाइस्कोप

जगदीश बताते हैं कि वे पांच दशकों से पटना सिटी अनुमंडल के लोगों को बाइस्कोप दिखा रहे हैं। इससे पहले उनके पिता भी बाइस्कोप चलाते हैं। बाइस्कोप में बच्चों के लिए पूरा मसाला है। उनका कहना है कि पटना सिटी में बाइस्कोप जीवित है। पहले दादा देखे, फिर पिता और अब पोता बाइस्कोप देख रहे हैं। वे बताते हैं कि इंटरनेट और वीडियो गेम में रमते बच्चे परंपरागत मनोरंजन के साधन से दूर होते जा रहे हैं। तमाशा दिखानेवाले जगदीश बताते हैं कि अब बच्चों का मिजाज बिल्कुल बदल गया है। घर पर टीवी और संचार के अत्याधुनिक स्रोतों से वे दुनिया को कम उम्र में जान लेते हैं कि उन्हें बाइस्कोप पर दुनिया को समझने की जरूरत नहीं।

पहले बच्चे मेरे पीछे भागते थे, आज मैं बच्चों के पीछे भागता हूं

71 वर्षीय जगदीश बताते हैं कि पहले बाइस्कोप देखने के लिए बच्चे मेरे पीछे भागते थे। आज मेरी यह स्थिति है कि मैं बच्चों के पीछे भागता हूं। वे बताते हैं कि लगभग 50 वर्ष पूर्व यानी 70 के दशक में गली-गली घूम तमाशा दिखा सस्ती के दौर में सुबह से शाम तक 60 से 70 रुपये कमाता था। दशक बीतते गए, महंगाई बढ़ी, कमाई महज 100-150 रुपये रह गई। इस कारण कई बार एक जून की रोटी पर भी आफत आ जाती है। कई बुजुर्ग तो मेरी खस्ता हालत देख दस-बीस रुपये दान में दे देते हैं। बाइस्कोप खराब रहने पर बक्से को गलियों में रख मदद मांगना मजबूरी है। वैशाली के देशरी गांव में रहनेवाले 71 वर्षीय जगदीश के दो बेटे संजय और पिंटू खेती कर रहे हैं। पत्नी अहिल्या देवी संसार छोड़ चुकी हैं।

छोटे बच्चे के साथ बड़े भी देखते हैं चाव से 

वे बताते हैं कि विभिन्न मोहल्लों में बाइस्कोप को छोटे बच्चों के अलावा बड़े भी काफी चाव से देखते हैं। एक बाइस्कोप में तीन बच्चे आराम से एक साथ कई चीजें देख सकते हैं। जगदीश बताते हैं कि दो मिनट के मनोरंजक दृश्यों में वे आगरा का ताजमहल, दिल्ली का कुतुबमीनार, मुंबई व दिल्ली शहर की खूबसुरती, झांसी की रानी, आमिर खान, सलमान खान, शाहरूख खान, कैटरीना कैफ, काजोल, जूही चावला, माधुरी दीक्षित, नरेंद्र मोदी समेत अन्य की तस्वीरें दिखाते हैं।

बचपन की याद हो जाती है ताजा

बाइस्कोप देख रही आरती, प्रीति, पूजा, प्रिया, सीमा का कहना है कि बाइस्कोप देख उन्हें बचपन की याद आ गई। पहले ऐसे बाइस्कोप वाले गलियों में घूम-घूमकर बाइस्कोप दिखाते थे परंतु आज भागदौड़ भरी जिदंगी में लोगों के पास फुर्सत के क्षण भी नहीं हैं।


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