Lalu Yadav का 'जादू' पड़ा फीका, अपने ही घर में लगातार बढ़ रही टेंशन! इन 5 सीटों पर सबकी नजर
2004 के लोकसभा चुनाव में 26 सीटों पर चुनाव लड़कर 22 पर जीत दर्ज कराने वाले खुद लालू प्रसाद ने दो सीटों सारण (तब छपरा था) और मधेपुरा से जीत दर्ज की थी। उस चुनाव में लालू की अपने घर में यानी सारण सिवान गोपालगंज मधेपुरा और पाटिलपुत्र में बादशाहत कायम हो गई थी लेकिन फिर समय का चक्र घूमा और लालू का जादू फीका पड़ता गया।
सुनील राज, पटना। बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद की एंट्री किसी मसीहा के रूप में हुई थी। फिर एक दौर ऐसा भी आया कि देश की सत्ता में भी उनकी हनक सुनाई देने लगी, लेकिन कहते हैं समय हमेशा एक-सा नहीं होता। वह जब करवट लेता है तो बड़े-बड़े शहंशाह तक को बेकुर्सी कर जाता है।
राजनीति में गरीब-गुरबा और पिछड़ों-अति पिछड़ों के हक-हकूक की लड़ाई लड़ने वाले लालू प्रसाद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। 2004 के लोकसभा चुनाव में 26 सीटों पर चुनाव लड़कर 22 पर जीत दर्ज कराने वाले खुद लालू प्रसाद ने दो सीटों सारण (तब छपरा था) और मधेपुरा से जीत दर्ज की थी।
उस चुनाव में लालू की अपने घर में यानी सारण, सिवान, गोपालगंज, मधेपुरा और पाटिलपुत्र में बादशाहत कायम हो गई थी, लेकिन समय का चक्र ऐसा घूमा कि अपने ही घर में लालू प्रसाद का जादू फीका पड़ता गया।
सारण संसदीय सीट
सारण संसदीय सीट पर 2009 तक राजद का दबदबा रहा। 2004 और 2009 तक इस सीट से लालू प्रसाद खुद चुनाव जीतते रहे, लेकिन 2014 में राजद को भाजपा के हाथों यहां बड़ी पराजय मिली। इस सीट पर 2014 में राजद ने राबड़ी देवी को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वे भाजपा के राजीव प्रताप रूडी से पराजित रहीं।
इसके बाद 2019 उन्होंने समधी और पुराने नेता चंद्रिका राय पर दांव लगाया, लेकिन रूडी वापस जीत गए। इस बार लालू प्रसाद ने अपनी बेटी को टिकट देकर मैदान पर उतारा है।
गोपालगंज संसदीय सीट
गोपालगंज संसदीय सीट का इतिहास भी कुछ ऐसा ही है। गोपालगंज 2004 में सामान्य सीट थी तब लालू प्रसाद ने यहां से राबड़ी देवी के भाई साधु यादव को मैदान में उतारा था। वे जीते भी। साधु ने जदयू के प्रभुदयाल को पराजित कर सीट अपने नाम की थी। 2009 आते-आते गोपालगंज सुरक्षित सीट हो गई, लेकिन यहां फिर कभी राजद का खाता नहीं खुला।
2009 में जदयू के पूर्णमासी राम, 2014 में भाजपा के जनक राम और 2019 में जदयू के आलोक कुमार सुमन ने गोपालगंज पर जीत दर्ज कराई। इस बार यहां से महागठबंधन में शामिल वीआइपी प्रत्याशी मैदान में हैं।
सिवान संसदीय सीट
सिवान संसदीय सीट पर भी 2004 तक राजद का कब्जा रहा। पार्टी के कद्दावर नेता शहाबुद्दीन चुनाव जीत कर लालू प्रसाद के हाथों को मजबूत करते रहे, लेकिन 2009 में एक बार जो राजद यहां से पराजित हुआ तो लालू प्रसाद के लिए सिवान से जीत मानो सपना बनकर रह गया।
2009 में निर्दलीय ओमप्रकाश, 2014 में भाजपा के टिकट पर वापस ओमप्रकाश और इसके बाद 2019 में जदयू के टिकट पर कविता सिंह ने यहां से चुनाव जीता। तीन बार शहाबुद्दीन की पत्नी हेना शहाब ने राजद के टिकट पर चुनाव तो लड़ा लेकिन वे कभी जीत नहीं पाई। इस बार राजद ने अवध बिहारी चौधरी पर दांव लगाया है। जिनका मुकाबला जदयू की विजयलक्ष्मी देवी से होना है।
मधेपुरा संसदीय सीट
मधेपुरा संसदीय क्षेत्र किसी दौर में लालू प्रसाद का कार्य क्षेत्र हो गया था। 2004 में लालू प्रसाद ने जदयू के शरद यादव को पराजित किया था, लेकिन 2009 में वे जदयू के ही शरद यादव से पराजित रहे। फिर 2014 में राजद के टिकट पर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने शरद को पराजित कर यहां एक बार फिर राजद का खाता तो खोला, लेकिन 2019 में जीत को बरकरार नहीं रख पाया।
जदयू उम्मीदवार दिनेश चंद्र ने राजद के शरद यादव को यहां से पराजित किया था। एक बार फिर लालू इस सीट पर जोर लगा रहे हैं। राजद ने यहां से प्रो. कुमार चंद्रदीप को मैदान में उतारा है जिनका मुकाबला जदयू के पिछले विजेता दिनेशचंद्र यादव से होगा।
पाटलिपुत्र संसदीय सीट
इसी कड़ी में पाटलिपुत्र संसदीय सीट भी आती है। इस सीट पर राजद के टिकट पर 2004 में रामकृपाल यादव चुनाव जीते थे, लेकिन 2009 में राजद यहां पराजित रहा। जदयू के रंजन यादव ने यहां चुनाव जीता। इसके बाद 2014 में लालू प्रसाद ने पुत्री डॉ. मीसा को जीत का जिम्मा दिया, लेकिन 2014 के बाद 2019 में भी डॉ. मीसा भाजपा के रामकृपाल के सामने हार गईं।
इस चुनाव एक बार फिर पाटलिपुत्र संसदीय सीट पर भाजपा के रामकृपाल बनाम राजद की डा. मीसा की टक्कर होगी। महत्वपूर्ण यह है कि सारण, सिवान, गोपालगंज, मधेपुरा और पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र का वोट समीकरण भी लालू प्रसाद का पसंदीदा समीकरण है बावजूद अपने ही इन घरों में उनका जादू नहीं चल रहा।
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