बिहार में 228 नाबालिग मां के साथ जेल में बंद, बच्चों की शिक्षा व्यवस्था पर हाईकोर्ट का कड़ा रुख
माताओं के साथ बंद 1 से 6 वर्ष के बच्चों की शिक्षा व्यवस्था को लेकर पटना हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। वर्ष 2002 में राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर महिला बंदियों के साथ रहने वाले बच्चों को बुनियादी सुविधाएं देने की बात कही थी लेकिन आज भी यह पूरी तरह लागू नहीं हो पाई है।

विधि संवाददाता, पटना। राज्य की जेलों में अपनी माताओं के साथ बंद 1 से 6 वर्ष के बच्चों की शिक्षा व्यवस्था को लेकर पटना हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने संतोष उपाध्याय द्वारा दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार, कारा महानिरीक्षक (आईजी) और बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार (बालसा) से स्पष्ट जानकारी मांगी है कि किन बच्चों को किस स्कूल में भेजा जा रहा है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विकास कुमार पंकज ने कोर्ट को बताया कि वर्ष 2002 में राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर महिला बंदियों के साथ रहने वाले बच्चों को बुनियादी सुविधाएं देने की बात कही थी, लेकिन आज भी यह पूरी तरह लागू नहीं हो पाई है।
कोर्ट ने राज्य सरकार, जेल प्रशासन और बालसा से सभी बिंदुओं पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। साथ ही यह भी कहा कि इन बच्चों की शिक्षा के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव समुचित कार्रवाई सुनिश्चित करें। कोर्ट को याचिका के माध्यम से बताया गया था कि राज्य की जेलों में कुल 228 नाबालिग (103 लड़के और 125 लड़कियां) अपनी माताओं के साथ बंद हैं।
इनमें भागलपुर और नवादा महिला मंडल कारा में सर्वाधिक 16-16 बच्चे बंद हैं। अन्य जिलों में भी बड़ी संख्या में बच्चे कारागारों में रह रहे हैं। कोर्ट ने इन बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने के लिए समुचित योजना बनाकर ठोस कार्रवाई करने का आदेश दिया है। इस मामले पर अब अगली सुनवाई 12 सितंबर को होगी।
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