चार प्रजातियों के सांप के काटने से होती है 90% की मौत, स्नेक का शिकार होने पर अपनाएं ये उपाए
सर्पदंश से मौतों का एक बड़ा कारण आमजन से लेकर अस्पताल में डाक्टरों व चिकित्साकर्मियों में जागरूकता की कमी बड़ा कारण है। चार प्रजातियों के सांप के काटने से 90 प्रतिशत लोगों की जान चली जाती है।
बारिश के साथ ही सांप के काटने के मामले बढ़ जात हैं। सांकेतिक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, पटना। वर्षा ऋतु में प्रदेश समेत पूरे देश में सांप काटने व उससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़ जाती है। सर्पदंश से मौतों का एक बड़ा कारण आमजन से लेकर अस्पताल में डाक्टरों व चिकित्साकर्मियों में जागरूकता की कमी बड़ा कारण है। सांप काटे से होने वाली रुग्णता व मृत्यु दर कम करने के लिए एम्स पटना के आपातकालीन चिकित्सा विभाग में भारत में सांप के ज़हर के बारे में मैनुअल नामक पुस्तक का विमोचन किया गया।
चार प्रजातियों के सांप बेहद खतरनाक
देश में सांपों की कई प्रजातियां हैं, कुछ बहुत जहरीले होते हैं तो कुछ कम। ज्यादा खतरनाक सांपों में कामन क्रेट, इंडियन कोबरा, रसेल वाइपर व सा-स्केल्ड वाइपर हैं। ये चार सांप ही देश में सर्पदंश से 90 प्रतिशत मौतों के कारक हैं। इनके काटने पर पालीवैलेंट एंटी-स्नेक वेनम दिया जाता है।
यह दवा सांप काटे के 80 प्रतिशत मामलों में प्रभावी है। बिहार सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर हर अस्पताल में एंटी-स्नेक वेनम की उपलब्धता सुनिश्चित कराई हुई है।
आपातकालीन चिकित्सा के विभागाध्यक्ष डा. दिवेन्दु भूषण, डा. विशाल वैभव, डा. दीपक कुमार व डा. अजय की इस पुस्तक की प्रस्तावना एम्स पटना के कार्यकारी निदेशक एवं सीईओ प्रो. डा. सौरभ वार्ष्णेय ने लिखी है। यह पुस्तक डाक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों व अस्पतालों में आपात चिकित्सा सेवा प्रदाताओं के लिए व्यावहारिक व वैज्ञानिक मार्गदर्शिका के रूप में तैयार की गई है।
इसका उद्देश्य आपात देखभाल व बेहतर बनाना है। बताते चलें कि देश में हर वर्ष 30 से 40 लाख लोग सर्पदंश की चपेट में आते हैं। इनमें से 50 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो जाती है। केंद्र सरकार ने सर्पदंश को नेग्लेक्टेड ट्रापिकल डिजीज (उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग) की श्रेणी में शामिल करते हुए 2030 तक मौतों की संख्या आधा करने का लक्ष्य घोषित किया है।
जागरूकता व प्रशिक्षण पर जोर
डा. सौरभ वार्ष्णेय ने आपातकालीन चिकित्सा विभाग के इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि यह मैनुअल देश के स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए जीवनरक्षक संसाधन साबित होगा। उन्होंने एंटी-स्नेक वेनम की उपलब्धता और आपात सेवाओं को और अधिक सशक्त बनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की जानकारी भी साझा की।
भारत में सांप के ज़हर के बारे में मैनुअल न केवल एम्स पटना की शैक्षणिक गुणवत्ता व चिकित्सा अनुसंधान की प्रतिबद्धता को दर्शाता है बल्कि यह देश के चिकित्सा संस्थानों के लिए सर्पदंश उपचार में एक मानक दिशानिर्देश बनेगा। पुस्तक विमोचन समारोह में डीन एकेडमिक प्रो. डा. पूनम प्रसाद भदानी, सीटीवीएस विभागाध्यक्ष डा. संजीव कुमार, चिकित्सा अधीक्षक डा. सुजीत कुमार सिन्हा, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभागाध्यक्ष डा. मुक्ता अग्रवाल, बर्न एवं प्लास्टिक विभागाध्यक्ष डा. वीना सिंह, पीएमआर विभागाध्यक्ष डा. संजय पांडेय व डा. विजय कुमार आदि मौजूद थे। डा. आरुणि राहुल ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
ना बांधे, ना चीरा लगाए न चूसें, करें ये काम
- - सांप काटने पर मरीज को शांत रखें, कम हिलाएं, जमीन पर लिटाकर काटे गए हिस्से को स्थिर रखें।
- - संभव हो तो सांप को पहचानने की कोशिश करें पर पकड़ने की कोशिश नहीं करें, मरीज को जल्द अस्पताल पहुंचाएं।
- - सांप काटे के लक्षण चक्कर, बेहोशी, सांस लेने में दिक्कत, होंठ-आंखें नीली पड़ना आदि लक्षणों पर नजर बनाए रखें।
- -किसी भी स्थिति में सांप काटे स्थान पर चीरा लगाने या चूसने का प्रयास नहीं करें।
- - मरीज को दौड़ने या भागने को नहीं कहें, न ही रस्सी से कस कर बांधें न ही किसी अन्य घरेलू उपायों पर वक्त बर्बाद करें।
- - 80 प्रतिशत सांप जहरीले नहीं होते लेकिन जब तक स्पष्ट न हो कि जहरीला था या नहीं, मरीज को इलाज की जरूरत होती है।
- -झाड़-फूंक से सर्पदंश में कोई लाभ नहीं होता है, समय गंवाना जानलेवा हो सकता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।