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    माता सीता की निर्वासन स्थली है नवादा का सीतामढ़ी

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 15 Feb 2019 11:42 PM (IST)

    सूबे के सीतामढ़ी जिले से सभी वाकिफ हैं, जो जनक नंदिनी की जन्मस्थली के रुप में विख्यात है।

    माता सीता की निर्वासन स्थली है नवादा का सीतामढ़ी

    सूबे के सीतामढ़ी जिले से सभी वाकिफ हैं, जो जनक नंदिनी की जन्मस्थली के रुप में विख्यात है। इसी बिहार में एक और सीतामढ़ी है, जो नवादा जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर मेसकौर प्रखंड में पड़ता है। यह स्थान माता सीता की निर्वासन स्थली के रुप में प्रसिद्ध है। यह स्थान रामायण काल की कई यादों को समेटे हुए हैं। पहाड़ी की गुफा में बेटे लव-कुश के साथ माता सीता की प्रतिमा विद्यमान है। मंदिर से थोड़ी दूरी पर सीता कुंड है। ¨कवदंति है कि उसी कुंड में माता सीता स्नान किया करती थीं। उस कुंड में पहाड़ियों के बीच से स्वत: पानी का श्रोत निकलता था, लेकिन आज वह पूरी तरह सूख चुका है आसपास के गांवों में महर्षि वाल्मीकि, लव-कुश से जुड़े साक्ष्य आज भी मौजूद हैं। अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा पकड़ने के बाद लव-कुश का प्रभु राम की सेना से युद्ध से जुड़े अवशेष हैं। मंदिर के मुख्य द्वार से सटे पाताल प्रवेश है, जहां धरती फटने के बाद मां सीता प्रवेश कर गई थीं। आज भी उस स्थान पर शिला तीन अलग-अलग हिस्सो में विभक्त है। नक्सल प्रभावित इलाका होने के चलते इसका विकास नहीं हो सका। पुजारी सीताराम पांडेय बताते हैं कि लंका विजय के बाद प्रभु श्रीराम अयोध्या पहुंचे थे तो एक धोबी की टिपण्णी के बाद माता सीता को अयोध्या से निष्कासित कर दिया था। उन्हें अरण्य वन में छोड़ा गया था। रामायण में जिक्र है कि तमसा नदी से थोड़ी दूरी पर मां सीता ने अपना आश्रय बनाया था। सीतामढ़ी से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर आज भी तमसा नदी मौजूद है, जो अब तिलैया नदी के नाम से भी जानी जाती है।

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    रामायण सर्किट से जोड़ने की मांग

    - गांव के 72 वर्षीय नंदकिशोर चौहान, विजय राजवंशी, उपेंद्र राजवंशी आदि बताते हैं कि कई बार शासन-प्रशासन को इस स्थान की पौराणिकता से अवगत कराया गया। लेकिन आज तक इसे पर्यटन क्षेत्र के रुप में विकसित नहीं किया जा सका है। पर्यटन क्षेत्र के रुप में विकसित किए जाने के बाद यहां दूरदराज के लोग पहुंचते तो स्थानीय लोगों को भी काफी फायदा होता। वर्ष 1954 में वहां के पुजारी रहे रामकिसुन दास ने गुफा के बाहर मंदिर का शक्ल दिया। स्थानीय ग्रामीणों की पहल पर हर साल अगहन महीने में मेले का आयोजन किया जाता है। जहां दूसरे जिलों से भी दुकानदार आते हैं और अपनी दुकान सजाते हैं।

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    कई गांवों का नाम है रामायण काल से जुड़ा

    - अरंडी गांव : सीतामढ़ी से 2 किलोमीटर पश्चिम अरंडी गांव है। इसी स्थान से अरण्य वन का प्रवेश होता था। बाद में अपभ्रंश के रुप में अरण्य को अरंडी कहा जाने लगा और गांव का नाम रखा गया।

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    - कटघरा गांव : यह गांव भी सीतामढ़ी से 1 किलोमीटर पश्चिम है। अश्वमेघ का घोड़ा पकड़ने पर लव-कुश और राम की सेना के बीच हुए युद्ध में सैनिकों को हुए कट-घरा (बंदियों को रखने वाला जगह) में रखा जाता था।

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    - लखौरा गांव : सीतामढ़ी से डेढ़ किलोमीटर दूर पूरब दिशा में यह यह गांव है। मान्यता के अनुसार बाल्यकाल में इसी स्थान पर मां सीता के पुत्र लव खो गए थे। लव के खोने वाले स्थान को अपभ्रंश के रुप में लखौरा के रुप में जाना जाने लगा।

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    - रसलपुरा गांव : सीतामढ़ी से दो किलोमीटर दूरी पर बसे रसलपुरा गांव में सुनसान स्थल पर एक लंबा शिला है। कहा जाता है कि अश्वमेघ यज्ञ के बाद छोड़े गए घोड़े को लव-कुश ने पकड़ कर उसी शिला में बांध कर रखा था।

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    - बारत गांव - सीतामढ़ी से करीब तीन किलोमीटर दूर बारत गांव के टाल में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है। जहां लव-कुश को शिक्षा देते हुए उनकी प्रतिमा विद्यमान है।