मगध की शान है नवादा का मगही पान
(नवादा ): मगहिया संस्कृति की पहचान मगही पान नवादा जिले के हजारों परिवार का आधार भी है।
(नवादा ): मगहिया संस्कृति की पहचान मगही पान नवादा जिले के हजारों परिवार का आधार भी है। पान उत्पादक कृषक, उनके परिजनों के साथ ही पान के थोक व एवं खुदरा बिक्री से भी बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं। बीड़ा ,गीलोरी और अन्य कई नामों से अलग -अलग स्वरूप में पान के शौकीनों को लुभाने वाला मगही पान न सिर्फ जिले की शान है, बल्कि इसके कद्रदान तो बाबा नगरी वारणसी,पश्चिम बंगाल के अलावा नेपाल, बंगलादेश और पाकिस्तान तक मौजूद हैं।
मगही पान के सर्वोत्कृष्ट किस्म करहज का उत्पादन जिले के हिसुआ, नारदीगंज, पकरीबरवां,रोह,काशीचक और कौआकोल प्रखंडों में किया जाता है। हिसुआ प्रखंड अन्तर्गत डफलपुरा ,ढेवरी ,कैथिर ,रामनगर ,मंझवे ,तुंगी ,बेलदारी की लगभग 200 एकड़ भूमि ,नारदीगंज प्रखंड क्षेत्र के हड़िया ,पचिया और ननौरा की 150 एकड़ भूमि ,पकरीबरावां प्रखंड के डोला ,छतरवार ,देवधा ,बरईबिगहा की 80 एकड़ भूमि ,काशीचक प्रखंड के डेढ़गांव नया टोला की चार एकड़ भूमि तथा रोह प्रखंड के पड़ियापर एवं कौआकोल प्रखंड के ईंटपकवा एवं बनैली के 2-2 की भूमि पर मगही पान की उत्तम श्रेणी की खेती होती है। प्रतिवर्ष लगभग एक से डेढ़ लाख की आरंभिक पूंजी से होने वाली पान की खेती बेहद दुष्कर एवं कच्चे श्रेणी की होती है।
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पानी की खेती नहीं है आसान
-आरंभ से ही कई मुश्किलों को झेलते हुए साल भर का समय बीताकर कृषक पान का उत्पादन कर मुख्य मंडी वाराणसी पहुंचाकर अपनी फसल का मूल्य प्राप्त करते हैं। जो इनके मेहनत और परिश्रम का मानदेय बराबर भी नहीं होता है। आज भी 85 फीसद किसान बटाई की खेती करते हैं। खुद की •ामीन नहीं होने का खामियाजा उन्हें बैंक ऋण आदि से वंचित होकर भुगतना पड़ रहा है। बहरहाल एक मात्र इसी विकल्प के सहारे पान कृषक अपने चेहरे की लाली क्षीण पड़ने के बावजूद शौकीनों के मुंह की लाली बरकरार रखने में शिद्दत से भीड़े हैं। विगत दिनों पान को इंटरनेशनल किया गया जिसमें बिहार के नवादा का चर्चा उन्नत खेती के रुप में हुआ।
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पान शीतभवन का लाभ नहीं
-पान के गोदाम यानी शीतभवन जहां पान के पत्तों को ज्यादा दिन तक सुरक्षित रखा जाता है, इसका भी लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है। हिसुआ के कैथिर ग्राम निवासी राजेश चौरसिया ,ज¨वद्र चौरसिया ,मदन चौरसिया ,सुरेन्द्र चौरसिया आदि ने बताया कि हम अपने घरों में ही पान को एक सप्ताह तक सुरक्षित रख लेते हैं और फिर मंडी में ले जाकर बिक्री करते हैं। यहां जितने भी शीत भवन बने हुए हैं वह जीर्णशीर्ण अवस्था में है। उसका किसानों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। अच्छी उपज के बाद भी नहीं मिल रहा बाजार में सही कीमत।
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कहते हैं किसान
-कैथिर ग्राम निवासी शैलेंद्र चौरसिया कहते हैं कि पिछले कई वर्षों की अपेक्षा पान के भाव में काफी गिरावट आई है। पान की ढ़ोली का दाम 50 से 60 रुपये हुआ करते थे। उसे आज 5 से 10 रुपए प्रति ढ़ोली के हिसाब से मिल रहा है। उमेश चौरसिया बताते हैं पान की एक बरेठा में एक से डेढ़ लाख रुपए की लागत लगता है। जिसका आमद हमें 2 से 3 लाख होता था। इस वर्ष अच्छी उपज के बावजूद पूंजी निकल जाए यह काफी होगा। भोला चौरसिया कहते हैं सरकारी उपेक्षा के कारण हमारा व्यवसाय पिछड़ता जा रहा है। हमारा पूरा परिवार इसकी खेती पर निर्भर है ।सुबह से शाम तक पान की खेती में काफी मेहनत करते हैं । इसमें मजदूरों को भी भोजन देकर 2 सौ से 3 सौ रुपए प्रतिदिन से देना होता है। जितेंद्र चौरसिया ने बताया कि सामानों के भाव महंगे होते जा रहे हैं और इसका मुनाफा घटता जा रहा है । कुछ वर्षों के अपेक्षा काफी कम दामों में हम पान बिक्री कर रहे है । पान का बाजार में भाव गिरा हुआ है। महेंद्र चौरसिया कहते हैं बांस ,म•ादूरी ,कीटनाशक दवाइयां समेत अन्य सामान का कीमत अधिक हो गया है जिस कारण कई किसान तो अपना पुश्तैनी धंधा छोड़कर दूसरे कामों में लग गए हैं।
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