पढ़ाई की उम्र में मजदूरी की मार, वारिसलीगंज में ईंट-भट्ठों और होटलों में मासूमों का शोषण
वारिसलीगंज में बालश्रम एक गंभीर समस्या है। बच्चे ईंट भट्ठों और होटलों में काम करने को मजबूर हैं। गरीबी के कारण, वे शिक्षा से वंचित हैं। सरकार ने बालश्रम रोकने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, लेकिन वे सफल नहीं हो पा रही हैं। अधिकारियों की उदासीनता के कारण बच्चों का भविष्य अंधकारमय है। बालश्रम रोकने के लिए नियुक्त सरकारी एजेंसियां सिर्फ कागजी कार्रवाई कर रही हैं।

पढ़ाई की उम्र में मजदूरी की मार
संवाद सहयोगी, वारिसलीगंज। बालश्रम रोकने के तमाम सरकारी दावे प्रखण्ड में कमजोर साबित हो रहे हैं। क्षेत्र के ईंट भट्ठों (चिमनियों पर) तथा छोटे-बड़े होटलों में बाल श्रमिकों से कार्य लिया जा रहा है।
खेलने-पढ़ने की उम्र वाले बच्चे ईंट भट्ठा व होटलों में मजदूरी कर अपना जीवन का अमूल्य समय को बेकार कर रहे हैं। इस बारे में उनके अभिभावक भी जागरूक नहीं दिखते। बाल श्रम रोकने के लिए जिम्मेदार अधिकारी संबंधित ईंट भट्ठों एवं होटलों पर नियमित रूप से छापेमारी व सख्त कार्रवाई नहीं कर पाते।
बाल श्रम रोकने के दावे गलत
रविवार को वारिसलीगंज नगर के कुछ होटलों में जो हकीकत देखने को मिली वह सरकार के बाल श्रम रोकने के दावे को गलत बताती है। नाबालिग बच्चे होटल में बर्तन साफ करते देखे गए।
दूसरी ओर, आधा दर्जन बच्चे ईंट भट्ठा से ट्रैक्टर पर ईंट लोड करने एवं उतारने का कार्य करते देखे गए। पूछने पर बच्चों ने कहा कि मां- पिता की अर्थिक स्थिति खराब रहने पर घर चलाने के लिए ईंट भट्ठा पर कार्य कर मां-पिता को आर्थिक सहयोग करता हूं।
गरीबी के कारण बाल मजदूरी
इन कम उम्र के बच्चों को अक्षर ज्ञान है, परंतु गरीबी के कारण माता-पिता के साथ काम करने की मजबूरी है। बच्चों ने कहा कि जब किसी हम उम्र को कंधे में बैग लटकाऐ विद्यालय जाते देखता हूं, तो मेरे मन में भी पढ़ने लिखने की ललक होती है, लेकिन परिवार की गरीबी के कारण स्कूल नहीं जाकर मजदूरी करता हूं। कुछ इसी प्रकार की बातें उमेश मांझी तथा सिद्धेश्वर मांझी के पुत्र अमर एवं मोहित ने कहा कि परंतु यह सब उसे सपना जैसा लगता है।
बच्चों को विद्यालय से जोड़ने के लिए कई कार्यक्रम
बता दें कि राज्य सरकार बाल श्रम रोकने के लिए कानून बना रखी है। मजदूरी कर रहे बच्चों को विद्यालय से जोड़ने के खातिर कई कार्यक्रम चला रखा है, जो सरकारी फाइलों की शोभा बढ़ा रही है।
हकीकत यह है कि सरकारी मुलाजिम के सामने छोटे -छोटे बच्चे होटलों, ईंट भट्ठों तथा भवनों के निर्माण में लगे रहते है, बावजूद अधिकारी संज्ञान नहीं लेते है। फलतः बचपन श्रम करके बिखर रही है, और कानून किताबों के पन्नों में सिमटी है।
बाल श्रम निरुद्ध करने को ले नियुक्त सरकारी एजेंसी सिर्फ कागजी घोड़ा दौड़ाकर अपनी ड्यूटी बजा रही है।

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