मछली मारने के लिए सुखाए जा रहे गिद्धि लेक में चार साल बाद मई में दिखा प्रवासी पक्षी जांघिल
बिहारशरीफ। नालंदा स्थित गिद्धि लेक और पुष्करणी तालाब में इन दिनों जलीय पक्षियों का जमावड़ा लग रहा है जिनमें मुख्य रूप से कठसारंग (जांघिल) कचाटोर छोटा बुज्जा (आइबिस) जलमोर करछिया बगुला बड़ा बगुला छोटा पनकौवा काला बुज्जा सैंडपाइपर सुरमा बटन खैरा बगुला घोंघिल जल पीपी पनकौवा ़खरीम झिरिया किलकिला टिटहरी छोटा सिल्हि रात बगुला समेत लगभग 35 प्रजाति के पक्षी मिले हैं।
बिहारशरीफ। नालंदा स्थित गिद्धि लेक और पुष्करणी तालाब में इन दिनों जलीय पक्षियों का जमावड़ा लग रहा है जिनमें मुख्य रूप से कठसारंग (जांघिल), कचाटोर, छोटा बुज्जा (आइबिस), जलमोर, करछिया बगुला, बड़ा बगुला, छोटा पनकौवा, काला बुज्जा, सैंडपाइपर, सुरमा बटन, खैरा बगुला, घोंघिल, जल पीपी, पनकौवा, ़खरीम, झिरिया , किलकिला, टिटहरी, छोटा सिल्हि, रात बगुला समेत लगभग 35 प्रजाति के पक्षी मिले हैं। बावजूद इसके इन दिनों गिद्धि तालाब को मछली मारने के लिए सुखाया जा रहा है। यह पक्षियों के लिए बेहद विकट परिस्थिति है।
बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान में जुटे राहुल कुमार विगत एक सप्ताह से नालन्दा के आसपास की तालाब खासकर गिद्धि लेक में पक्षियों की मौजूदगी देख रहे हैं। उन्होंने बताया कि जांघिल नाम की जलीय प्रजाति पिछले चार वर्षों के वॉचिग के दौरान कल पहली बार देखी गयी। यहां बता दें गिद्धि लेक नालंदा के प्रमुख पक्षी विहार में से एक है। यह पक्षियों के लिए बेहतर आश्रय प्रदान कराता है। गर्मी की मार से बचने के लिए पक्षी यहां जमा होते हैं। 2 मई के सर्वेक्षण के दौरान हमें 700 से भी अधिक संख्या में कुल 35 प्रजाति के पक्षी देखने को मिलें। क्या है जांघिल की खासियत :
वैज्ञानिक विवेचना के तहत जांघिल स्टोर्क परिवार का एक सदस्य है जो घोंघिल से आकार में बड़ा होता है। इसकी चोंच भी बड़ी होती है। इसे जलीय स्त्रोत के आसपास ही देखा जाता है। इनका प्रवास अधिक दूरी पर नहीं होता है। इसलिए इसे स्थानीय प्रवासी भी कह सकते हैं। खाना-पानी की खोज में ये इन दिनों गिद्धि लेक तक आने लगे हैं। हालांकि नालन्दा में इसकी संख्या में काफी कमी देखी जा रही है। जांघिल लगभग पूरे भारत में हैं लेकिन जिले में इसे देखना दुर्लभ ही है। यह केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर पक्षी विहार, राजस्थान) में ज्यादातर पाया जाता है। जांघिल का मुख्य आहार छोटी मछलियां हैं। इस कारण ये मछलियों के तालाब के किनारे वाली जल आश्रयणी में ज्यादा पाए जाते हैं। जलवायु परिवर्तन से हैं बेहाल : जनजीवन और वन्य जीवन दोनों जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है। ग्रीष्म ऋतु में तालाब और पोखर जैसे जलीय स्त्रोत सिकुड़ने लगते हैं। जंगल में वॉरहोल सूखने से वन्यजीवों को पानी मिलना मुहाल हो जाता है। ऐसे में पक्षी इधर-उधर भटकने लगते हैं। इन पक्षियों के लिए गर्मी तथा जल का नहीं मिलना काफी पीड़ादायक है। गर्मी के कारण या तो तालाब अथवा पेड़ की घनी छांव में छिपकर बैठा देखा जा सकता है।
पारा 45 के पार होते ही चली जाती है जान : पानी और आश्रय स्थल की कमी के चलते तथा 45 डिग्री के आसपास पारा पहुंचने पर ये पक्षी मरने लगते हैं। वहीं गर्मी में पक्षियों के लिए भोजन की भी कमी रहती है। पक्षियों के भोजन कीड़े-मकोड़े गर्मियों में नमी वाले स्थानों में ही मिल पाते हैं। खुले मैदान में कीड़ों की संख्या कम हो जाती है, जिससे पक्षियों को भोजन खोजने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। जंगलों में पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं, साथ ही जलस्त्रोत भी सूख जाते हैं। वहीं मवेशियों के लिए भी चारागाह के अलावा खेतों में पानी की समस्या होती है, इस वजह से पानी के साथ भोजन की भी कमी से मवेशियों को जूझना पड़ता है। ओप्सा ने खरीदे 150 मिट्टी के बर्तन, आम जन से छत पर मिट्टी के बर्तन में पानी रखने का आह्वान : मौसम की भयावहता को देखते हुए लोग अपने घर की छतों पर मिट्टी के बर्तन में पानी जरूर रखें ताकि पक्षियों को प्यासे मरना न पड़े। पर्यावरण प्रेमी राहुल कुमार ने बताया कि आमजन को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए। दूसरे प्रदेशों में इस दिशा में कई प्रयास किये जा रहे हैं। अभी हाल में ही हमारे ओप्सा (ओड़िसा पर्यावरण संरक्षण अभियान) द्वारा 150 मिट्टी के बर्तन पक्षियों को पानी देने के लिए खरीदे गए जिसकी खूब सराहना की जा रही है।
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