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    महाभारतकालीन विरासत है श्री कृष्ण रथ चक्र दाग पर्यटन स्थल

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 16 Jun 2022 11:33 PM (IST)

    संवाद सहयोगी राजगीर मठ मंदिरों की आध्यात्मिक नगरी राजगीर का महाभारतकालीन विरासत श्र

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    महाभारतकालीन विरासत है श्री कृष्ण रथ चक्र दाग पर्यटन स्थल

    संवाद सहयोगी, राजगीर : मठ मंदिरों की आध्यात्मिक नगरी राजगीर का महाभारतकालीन विरासत, श्री कृष्ण रथ चक्र दाग पर्यटन स्थल के रूप में सुप्रसिद्ध है। यहां की मिट्टी का माथे पर तिलक लगाकर पर्यटक भगवान श्री कृष्ण का स्मरण और सभी के कुशल मंगल की कामना करते हैं। यह पर्यटन स्थल पुरातत्व विभाग के अधीन है। राजगीर-गया मार्ग स्थित उदयगिरि पर्वत की तलहटी में स्थित कृष्ण रथ चक्र दाग स्थल सैलानियों के लिए आस्था का केंद्र है। जहां पर पुरातत्व विभाग ने एक बोर्ड लगाया है। जिसके मुताबिक, यहां के चट्टानी सतह पर लगभग तीस फुट तक दो गहरे समानांतर 10 इंच तक के साइज में खांचे के निशान हैं। जो इस चट्टानी निशान को रहस्यमय बनाते हैं। रथ के निशान के आसपास चट्टान में उत्कीर्ण 5 वीं शताब्दी ई. की गूढ़लिपि में कुछ लिखा है, जो रहस्य को गहरा करता है। पुरातत्व विभाग के अनुसार चक्कों का लीक निशान हैं। जो ईसा की चौथी पांचवीं शताब्दी की होगी। धर किवदंतियों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण जब इस रास्ते से गुजरे थे। तब उनके रथ के पहियों का निशान यहां उखड़ गया था। कहा जाता है कि जब मथुरा से अपनी सेना सहित श्री कृष्ण, मगध साम्राज्य के सम्राट राजा जरासंध से युद्ध करने पहुंचे थे। तब जरासंध ने अपनी भुजाओं से बड़े-बड़े चट्टानों को उखाड़ कर, उनकी सेना पर फेंकना शुरू कर दिया था। जिससे श्री कृष्ण की सेना के बीच अफरा तफरी मच गई। तब श्री कृष्ण को रथ को वापस भगाने लगे। इस क्रम में उनके रथ की तीव्र गति के कारण यहां पर निशान उग आए और यह भी कहा जाता है कि इसी घटना से श्री कृष्ण को रणछोड़ की उपाधि मिली थी। यह स्थान फिलहाल पुरातत्व विभाग के संरक्षण में अधीनस्थ है। जिसके मुताबिक यह पुरातात्विक क्षेत्र रथ चक्र लीक चिन्ह तथा शंख लिपि के अंश को इंगित करता है। यह शंख लिपि राजगीर सहित उत्तरी भारत के अनेक स्थानों पर मौजूद हैं। जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। जो संभवत: ईसा की चौथी या पांचवीं शताब्दी की होगी। यह रथ के चक्कों के लीक चिन्ह अभी तक शोध का विषय है। जिसमें यह भी कहा गया यह रथ के लीक चिन्ह महाभारतकालीन है।

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    वहीं कुछ लोग का मानना है कि यह किसी भौगोलिक परिवर्तन के कारण बने निशान हैं जो एक ही दिशा में बराबर तौर पर स्थापित हो गया होगा। इस अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के स्कालर डा धीरेन्द्र उपाध्याय बताते हैं कि राजगीर के पौराणिक कथाओं में अनेक घटनाक्रम में श्री कृष्ण का जिक्र मिलता है। जिसमें उनका महाभारत काल में राजगीर से काफी गहरा संबंध रहा है । यह भगवान श्री कृष्ण के रथ चक्र के निशान हैं। जो महान आस्था के रूप में लोगों से जुड़ा है।