सात साल से अटका सिलाव खाजा क्लस्टर... विवाद, लापरवाही और राजनीतिक खींचतान से ठप पड़ा करोड़ों का प्रोजेक्ट
नालंदा के सिलाव में खाजा उद्योग को आधुनिक बनाने के लिए 2018 में क्लस्टर भवन का शिलान्यास हुआ था, लेकिन सात साल बाद भी यह अधूरा है। भवन तो बन गया, पर म ...और पढ़ें

32 डिसमिल जमीन पर खाजा क्लस्टर भवन का शिलान्यास
शिवशंकर प्रसाद, सिलाव(नालंदा)। नालंदा जिले के प्रसिद्ध सिलाव खाजा उद्योग को आधुनिक रूप देने के लिए वर्ष 2018 में बड़े तामझाम के साथ उद्योग विभाग ने 32 डिसमिल जमीन पर खाजा क्लस्टर भवन का शिलान्यास किया था। दावा था कि छह महीने के अंदर अत्याधुनिक मशीनों के जरिए यहां खाजा का उत्पादन और नाइट्रोजन पैकिंग शुरू हो जाएगी, जिससे खाजा उद्योग में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। लेकिन सात साल बाद भी क्लस्टर अस्तित्व में नहीं आ सका, जिससे उद्योग विभाग के अधिकारियों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
भवन बना, मशीन नहीं आई… और क्लस्टर खंडहर में बदल गया
खाजा क्लस्टर के लिए कुल 1 करोड़ 14 लाख रुपये खर्च करने का प्रावधान था, जिसमें से 48 लाख रुपये की लागत से भवन लगभग पूरा भी बन गया।
मशीनरी खरीद के लिए उद्योग विभाग ने टेंडर निकाला लेकिन कोई कंपनी शामिल नहीं हुई। गाजियाबाद की एक फैक्ट्री टीम आई, जानकारी लेकर लौट गई,कोई प्रस्ताव नहीं दिया।
इधर निर्माण के बाद बिना उपयोग के पड़े रहने से भवन खंडहर में तब्दील हो चुका है।
नाइट्रोजन पैकिंग की सुविधा भी अधर में
क्लस्टर का मकसद खाजा के उत्पादन को तकनीक से जोड़ना था। जहां मैदा गुथाई की मशीन,बेलाई मशीन,चीनी–नमक का सटीक मिश्रण आधुनिक नाइट्रोजन पैकिंग शामिल था।
नाइट्रोजन पैकिंग से खाजा 6 महीने तक सुरक्षित रह सकता था, जिससे सिलाव खाजा के निर्यात को नया बाजार मिलता। लेकिन मशीनें न आने से पूरा प्लान ध्वस्त हो गया।
क्लस्टर की जमीन पर विवाद, सरकार के करोड़ों फंस गए
शुरू में जमीन का एनओसी अंचल कार्यालय से जारी हुआ था। भवन बनकर तैयार होने के बाद कुछ स्थानीय लोगों ने जमीन पर दावा ठोक दिया और मामला कोर्ट तक पहुँच गया।
वही व्यवसायियों का कहना है कि यदि जमीन विवादित थी, तो निर्माण से पहले अधिकारी कार्रवाई क्यों नहीं करते?
और यदि एनओसी सही है, तो अब जमीन पर दावा कैसे किया जा रहा है?
सिलाव खाजा की अंतरराष्ट्रीय पहचान को लगा झटका
सिलाव खाजा सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि देश–विदेश में अपनी कुरकुराहट और खास स्वाद के लिए जाना जाता है। 1986 में अपना महोत्सव, दिल्ली,1987 में सागर महोत्सव, मॉरिशस,1990 में अपना उत्सव, मुंबई,1994 में दूरदर्शन के लोकप्रिय कार्यक्रम सुरभि का हिस्सा खाजा बना।
आज भी ऑनलाइन ऑर्डर के जरिए खाजा कई देशों तक भेजा जा रहा है। ऐसे में आधुनिक क्लस्टर से उद्योग को नई उड़ान मिलने वाली थी, लेकिन योजना फाइलों और विवादों में फंसकर रह गई।
66 यूनिट और 6 मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य भी ध्वस्त
सिलाव खाजा औद्योगिक स्वावलंबी सहकारी समिति लिमिटेड के लिए 26 डिसमिल जमीन 30 वर्षों के लिए लीज पर ली गई थी। 66 यूनिट स्थापित होनी थी। 6 मीट्रिक टन उत्पादन क्षमता का लक्ष्य था। लेकिन सात साल में एक यूनिट भी शुरू नहीं हो सकी।
अधिकारियों और नेताओं की लापरवाही पर जनता में आक्रोश
व्यवसायियों और समाजसेवियों का कहना है कि योजनाबद्ध तरीके से क्लस्टर को बर्बाद किया गया।सरकार का पैसा डूब गया और खाजा व्यापारियों के साथ मज़ाक हुआ।
क्या कहते हैं जीएम
उद्योग विभाग के जीएम सचिन कुमार ने बताया कि मामला कोर्ट में है जिस वजह से देरी हो रही है। प्रयास जारी है

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