Samosaran Temple: 2551 साल पुराना है ये कुआं, दीपावली पर इसके पानी से दीपक जलाने का दावा
नालंदा, बिहार में स्थित समोसरण मंदिर में एक 2551 साल पुराना कुआं है। मान्यता है कि इस कुएं के पानी से दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं। यह प्राचीन कुआं ध ...और पढ़ें

जल मंदिर। फोटो सोशल मीडिया
बसंत सिंह, गिरियक। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की निर्वाण भूमि पावापुरी आस्था, इतिहास और परंपरा का अद्भुत संगम है। जैन धर्म का यह पावन स्थल जहां भगवान महावीर का निर्वाण भूमि जल मंदिर हैं।
पावापुरी मोड़ से लगभग साढ़े 3 किलोमीटर दूर भगवान महावीर ने अपना पहला और अंतिम उपदेश दिया था और निर्माण की प्राप्ति हुई थी, उस जगह उनकी श्रद्धा में एक मंदिर बनाया गया जिसका नाम samosaran temple है। यही भगवान महावीर ने जीव जंतु से लेकर मनुष्यों को अहिंसा परमो धर्म का ज्ञान दिया था।
उनके ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात उनके बड़े भाई ने इसी समोसरण मंदिर में एक 5 फीट का स्तूप बनवाया था। इस मंदिर में एक प्राचीन कुआं आज भी अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को संजोए हुए है।
मंदिर परिसर में स्थित यह कुआं लगभग 2551 वर्ष पुराना बताया जाता है, जिसका निर्माण ईसा पूर्व 556 में भगवान महावीर के बड़े भाई राजा नंदी बर्धन द्वारा कराया गया था।
साथ ही भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात इसी जगह पर उनकी याद में एक स्तूप का भी निर्माण कराया, जो आज भी संरक्षित है। कुएं का मुख्य द्वार लगभग 3 फीट चौड़ा और 3 फीट लंबा है। यह कुआं लगभग 15 से 20 फीट गहरा और 10 से 12 फीट चौड़ा है।
पानी जलते थे दीपक
ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, इसी कुएं के जल से निकाले गए जल का उपयोग कर दीपावली की रात को दीपक जलाए जाते थे। भगवान महावीर के निर्माण के पश्चात ईसा पूर्व 1750 तक उसके जल से दीपक जलाए जाते थे और आज से 765 साल पहले दिए जलना बंद हो गया था।
दीपावली के दिन ही जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर व अंतिम भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था उसी उपलक्ष्य में पावापुरी में जैन श्रद्धालु दीपावली को आज भी एक विशेष धार्मिक महोत्सव के रूप में मनाया जाता था।
मंदिर के प्रबंधक मनोज शाह ने बताया कि यह कुआं भगवान महावीर के बड़े भाई राजा नंदीवर्धन ने 2551 साल पहले भगवान महावीर के निर्वाण प्राप्त करने के सम्मान में बनवाया था।
वाटर लेवल में आई कमी
10 वर्ष पूर्व तक इस कुएं का जल का उपयोग पूजन के लिए किया जाता था लेकिन बीते 10 वर्षों से भरपूर बारिश नहीं होने के कारण जलस्तर में कमी आई है और इस कारण अब इस कुएं में जल नहीं है, लेकिन आज भी जैन पर्यटक इस मंदिर में आते हैं और अपनी आस्था से उनकी नजर कुएं में टिकती है। बताया जाता है कि प्राचीन काल में दीपावली के अवसर पर यहां दीप प्रज्वलित कर भगवान महावीर की स्मृति में विशेष अनुष्ठान किए जाते थे।
इस परंपरा का उल्लेख विक्रम संवत 1387 में जिन प्रभासुरीजी महाराज ने अपापापुरी कल्प में किया है। जिसे ऐतिहासिक प्रमाण के रूप में माना जाता है। वर्तमान में यह कुआं न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि पावापुरी के गौरवशाली इतिहास की जीवंत निशानी भी माना जाता है।
स्थानीय श्रद्धालुओं का कहना है कि यह कुआं भगवान महावीर के निर्वाण स्थल पावापुरी की उस साक्षात परंपरा का प्रतीक है। स्थानीय गाइड देवकरण गिरी ने बताया कि आध्यात्मिक प्रकाश और अहिंसा की भूमि पावापुरी हैं।
यह स्थल जैन धर्म की गौरवशाली परंपरा और भगवान महावीर के उपदेशों की जीवंत स्मृति है। आज भी देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु इस प्राचीन कुएं के दर्शन कर स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं। उन्होंने बताया कि वर्षों पुराना यह कुआं है जिसके जल से कार्तिक अमावस्या दीपावली के दिन दिए जलाए जाते थे वहीं बगल में एक स्तूप है जिसका निर्माण राजा नंदीवर्धन ने कराया था।
जैनियों के लिए विशेष आस्था का केंद्र
पावापुरी में भगवान महावीर की प्रथम एवं अंतिम देशना (तीर्थकर) से जुड़ा अति प्राचीन स्तूप, आस्था का प्रमुख केंद्र है। वहीं कुएं के ठीक समीप भगवान महावीर से जुड़ा एक अति प्राचीन स्तूप जैनियों के लिए विशेष आस्था का केंद्र बना हुआ है।
मंदिर के प्रबंधक मनोज साह के अनुसार यह स्तूप भगवान महावीर की प्रथम एवं अंतिम देशना की स्मृति में निर्मित बताया जाता है। मान्यता है कि आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने इसी स्थान पर प्रथम बार तथा अंतिम बार 48 घंटों तक उपदेश दिए थे।
बताया कि भगवान महावीर ने इस पावन स्थल पर अपनी वाणी से धर्म और अहिंसा का संदेश दिया, जिसे सुनने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचे थे। बाद में इसी स्थान को जैन धर्म में अत्यंत पवित्र मानते हुए स्मृति स्वरूप स्तूप का निर्माण कराया गया।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।