मेधा से अनाथ ने बीपीएससी क्रैक किया, अब नौकरी पाने में फंसा पेंच
बिहारशरीफ। यह कहानी नालंदा की उस बेटी की है। जिसके सिर से मां-पिता का साया उठ गया। पढ़ने की ललक थी तो बड़ी बहन की ससुराल में रहकर पढ़ाई की। मेधा की बदौलत बीपीएससी की 64वीं संयुक्त परीक्षा में सफलता हासिल की। लगा अब दिन बदल जाएंगे।
बिहारशरीफ। यह कहानी नालंदा की उस बेटी की है। जिसके सिर से मां-पिता का साया उठ गया। पढ़ने की ललक थी तो बड़ी बहन की ससुराल में रहकर पढ़ाई की। मेधा की बदौलत बीपीएससी की 64वीं संयुक्त परीक्षा में सफलता हासिल की। लगा अब दिन बदल जाएंगे। 2010-13 सत्र में मगध विवि के अधीन रहे नालंदा कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था, परंतु आठ साल बाद भी इसका मूल प्रमाण पत्र नहीं मिला। इस कारण वह बीपीएससी कार्यालय में प्रमाण पत्र जमा नहीं करा सकी। नतीजतन, आयोग ने उसे दो दिन पहले पत्र भेज दिया, जिसमें लिखा था कि ग्रेजुएशन का प्रमाण पत्र नहीं रहने के कारण आपका रिजल्ट रद्द किया जाता है। हालांकि जिजिविषा की धनी निकिता ने शुक्रवार को मगध विवि से ग्रेजुएशन का प्रमाण पत्र हासिल कर लिया है, अब वह नौकरी पाने के लिए बीपीएससी कार्यालय जाएगी।
निकिता बिहारशरीफ के खंदकपर निवासी दिवंगत पवन कुमार सिन्हा की बेटी है। जागरण ने जब निकिता से इस इस मुद्दे पर बात कि तो बताया कि वह अपने प्रमाण पत्र के लिए पिछले 9 माह से विवि के चक्कर काट रही थी। जब बीपीएससी की लिखित परीक्षा पास करने के बाद इंटरव्यू का समय आया तो वह अपना प्रमाण पत्र लाने फिर से बोधगया गई। वहां इनसे इंटरव्यू का लेटर मांगा गया। इस आधार पर टेस्टीमोनियल लिखकर दे दिया। इसका अर्थ यह होता है कि इनका ऑरिजिनल मॉर्क्स शीट व अन्य कागजात यूनिवर्सिटी के पास हैं। इसे परीक्षा देने दिया जाए। इस आधार पर उन्होंने इंटरव्यू दे दिया। उसके बाद भी वे लगातार विवि का चक्कर काटती रहीं, लेकिन हर बार केवल बहाना ही मिला। एक सप्ताह पहले हंगामा किया तो विवि के रजिस्ट्रार ने आयोग को मेल कर यह बताया दिया कि उसके प्रमाण पत्र जमा करने की देरी के पीछे विवि की प्रक्रिया है। इसलिए निकिता को मौका दिया जाए। हालांकि शुक्रवार को निकिता को मगध विवि ने उसका मूल प्रमाण-पत्र दिया।
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निकिता ने सिस्टम पर उठाया सवाल
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निकिता सिन्हा ने सवाल उठाया कि इसमें गलती किसकी है। सिस्टम की न। अगर दिक्कत थी तो पीटी, मेंस या साक्षात्कार लेने वक्त बीपीएससी के अफसरों ने क्यों नहीं पूछा। विवि का टेस्टीमोनियल भी आयोग नहीं मानती। गलती किसी और की लेकिन जीवन तो मेरा बर्बाद किया जा रहा है। विवि की भी गलती है कि उसने ग्रेजुएशन के मूल प्रमाण पत्र देने में आठ साल की देर कर दी।