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    नालंदा साहित्य महोत्सव में ऐतिहासिक विरासत का उत्सव, श्वेनत्सांग स्मारक परिसर के महत्व पर कुलपति ने डाला प्रकाश

    Updated: Tue, 23 Dec 2025 12:30 PM (IST)

    नालंदा साहित्य महोत्सव में श्वेनत्सांग स्मारक परिसर में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा और नालंदा की ऐति ...और पढ़ें

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    दीप प्रज्ज्वलन कर विधिवत उद्घाटन

    संवाद सूत्र, नालंदा।नव नालंदा महाविहार (सम विश्वविद्यालय) के तत्वावधान में आयोजित नालंदा साहित्य महोत्सव के अंतर्गत श्वेनत्सांग स्मारक परिसर में भव्य सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा, नालंदा की ऐतिहासिक विरासत और वैश्विक बौद्धिक संवाद का प्रभावशाली संगम देखने को मिला। कार्यक्रम ने नालंदा को एक बार फिर ज्ञान, संस्कृति और अंतरराष्ट्रीय संवाद के केंद्र के रूप में स्थापित किया।

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    सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ भगवान बुद्ध की वंदना से हुआ। नव नालंदा महाविहार के अंतरराष्ट्रीय बौद्ध विद्यार्थियों ने डॉ. धम्म ज्योति के नेतृत्व में सस्वर बौद्ध वंदना प्रस्तुत कर वातावरण को आध्यात्मिक और शांतिमय बना दिया। इसके बाद कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन मुख्य अतिथि सांसद शशि थरूर ने महाविहार के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह, गंगा कुमार एवं डी आलिया के साथ संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन कर किया।

    इस अवसर पर पद्म विभूषण से सम्मानित प्रख्यात शास्त्रीय नृत्यांगना सोनल मानसिंह, नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष अमिताभ कांत, प्रसिद्ध लेखक विक्रम संपत, चर्चित पुलिस अधिकारी एवं लेखक अमित लोढ़ा, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सदस्य सचिव प्रो. सच्चिदानंद मिश्र सहित देश के अनेक प्रतिष्ठित विद्वान, लेखक, कलाकार और बुद्धिजीवी उपस्थित रहे। इन गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति ने कार्यक्रम की गरिमा को और बढ़ा दिया।

    स्वागत भाषण में नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने श्वेनत्सांग स्मारक परिसर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि महान चीनी यात्री, बौद्ध विद्वान और आचार्य श्वेनत्सांग के अस्थि-अवशेष शीघ्र ही इस स्मारक परिसर में प्रतिष्ठित किए जाएंगे। वर्तमान में ये अस्थि-अवशेष पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखे गए हैं। उन्होंने बताया कि श्वेनत्सांग का नालंदा आगमन और उनका योगदान भारत-चीन के प्राचीन बौद्धिक और सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है।

    प्रो. सिंह ने श्वेनत्सांग, प्राचीन रेशम मार्ग और भारत-चीन के ऐतिहासिक संपर्कों की चर्चा करते हुए कहा कि श्वेनत्सांग स्मारक परिसर दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सेतु के रूप में कार्य करेगा। यह परिसर न केवल बौद्ध अध्ययन का केंद्र बनेगा, बल्कि वैश्विक सांस्कृतिक संवाद को भी नई दिशा देगा।

    उन्होंने महाविहार की अन्य गतिविधियों की जानकारी देते हुए बताया कि यहां संस्कृतिक ग्राम की स्थापना की गई है, जहां लोक कला और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके साथ ही विपश्यना केंद्र में प्रत्येक माह नियमित ध्यान शिविरों का आयोजन किया जाता है। कुलपति ने यह भी जानकारी दी कि नव नालंदा महाविहार को ‘ज्ञान भारतम्’ योजना के अंतर्गत बिहार राज्य का पांडुलिपि क्लस्टर केंद्र के रूप में चयनित किया गया है, जो राज्य की बौद्धिक विरासत के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

    सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की औपचारिक शुरुआत ‘बिहार महिमा’ से हुई, जिसकी भावपूर्ण प्रस्तुति रेखा झा ने दी। इसके बाद लोक संगीत और लोक नृत्य की प्रस्तुतियों ने बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रूप में मंच पर उतारा। कार्यक्रम के अंत में कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने सभी कलाकारों को अंगवस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया और उनकी कला साधना की सराहना की।

    कुल मिलाकर यह सांस्कृतिक संध्या नालंदा की गौरवशाली परंपरा, बौद्धिक विरासत और वैश्विक संवाद को सशक्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में यादगार बन गई।